अभिषेक पोद्दार अभी कल ही मैंने अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट डाला था बिहार में किसानों की बल्ले बल्ले इसे कई लोगों ने पंसद किया और मुझे फोन करके अच्छी जानकारी देने के लिए बधाई दी. इसी में किसी सज्जन जिनका नाम अशोक पांडेय है ने मेरी इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी भेजी उनकी टिप्पणी में नीचे हू-ब-हू पोस्ट कर रहा हूं. मित्रो, डा. आरके सोहाने ने एक भर कहा, तो आपने अपने शीर्षक से उसे डेढ़ भर बना डाला। किसानों की बल्ले-बल्ले कहने से पहले किसी किसान से तो बात कर ली होती।फिलहाल तो बिहार के किसानों का कालाबाजारी में खाद खरीदने में कचूमर निकला जा रहा है। एनपीके, डीएपी आदि खादों के हरेक बोरे पर डेढ़ सौ से दो सौ रुपये अधिक कीमत वसूल की जा रही है। पत्रकारिता को जनता की आवाज बनना चाहिये, अधिकारियों का भोंपू नहीं। कम से कम आप तो किसानों के साथ यह ज्यादती नहीं कीजिये। (अपने चिट्ठे के शीर्ष पर आपने एक गरीब बच्चे का फोटो लगा रखा है। किसान परिवारों के उचित पोषण व शिक्षा से वंचित वैसे ही बच्चों का तो ध्यान रखें।) उनकी इस टिप्पणी से मुझे कोई तकलीफ नहीं हुई क्योंकि एक पत्रकार होने के नाते मैं मानता हूं...
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