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Showing posts from March, 2008

शाहरूख ने छोडा आईपीएल का साथ

नयी नजर ब्‍यूरो आज एक नाटकीय घटनाक्रम में सौरव गांगुली और शाहरूख खान के बीच लेन-देन व खिलाडियों के चयन को लेकर विवाद के कारण बालीवुड किंग शाहरूख खान ने आईपीएल से अपना हाथ पीछे खिंच लिया है. देर रात उन्‍होंने एक संवाददाता सम्‍मेलन आयोजित कर यह जानकारी दी. उन्‍होंने कहा कि क्रिकेट में संभावनाओं का देखते हुए उन्‍होंने आईपीएल की कोलकाता क्रिकेट टीम को खरीदा था पर बीसीसीआई और आईपीएल के प्रायजकों ने उन्‍हें शुरू से धोखे में रखा. सबसे पहले तो उन्‍हें नियमों की सही-सही जानकारी नहीं दी गई, उनसे बोली की रकम भी ले ली गई और टीम संबंधी अधिकार के नाम पर उन्‍हें कुछ नहीं मिला यहां तक कि कप्‍तान चयन मामले में भी मेरी नहीं सुनी गई थी. मैं चाहता था कि मेरी टीम का कप्‍तान कोई बूढा खिला‍डी न होकर कोई युवा खिलाडी हो, पर मेरी बात को तर्जी न देकर दादा को कप्‍तान बना दिया गया और दादा हमेशा की तरह अपनी मनमानी दिखाने से नहीं चूंके यहां तक कि उन्‍होंने मिस्‍बाह को लेने नहीं दिया व शोएब अख्‍तर को भी अंतिम एकादश में नहीं रखने की बात कह रहे हैं. इसलिए मैंने आईपीएल छोडने का निर्णय ले लिया. शाहरूख की इस सनसनीखेज घोष

गूगल की मजेदार कहानी

गूगल सर्च इंजन को अंग्रेज़ी में लिखा जाता है google लेकिन असल में यह googol की ग़लत स्पैलिंग है. गूगल एक बहुत बड़ी संख्या है जिसमें 1 के आगे 100 शून्य लगते हैं. सन 1920 में अमरीका के एक गणितज्ञ ऐडवर्ड कैसनर, इस संख्या के लिए नाम तलाश कर रहे थे और जब उनके नौ वर्षीय भांजे मिल्टन ने गूगल नाम सुझाया तो उन्होंने उसे दर्ज करा लिया. कैसनर ने एक अन्य गणितज्ञ के साथ मिलकर एक किताब लिखी 'मैथमैटिक्स ऐंड द इमैजिनेशन' जिसमें पहली बार इस शब्द का ज़िक्र हुआ. लेकिन सर्च इंजन का नाम गूगल कैसे पडा इसकी अलग कहानी है. जनवरी 1996 में अमरीका के स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालय में लैरी पेज ने एक शोध शुरू किया. कुछ समय बाद सर्गी ब्रिन भी उनके साथ हो लिए. लैरी की परिकल्पना यह थी कि अगर एक ऐसा सर्च इंजन बनाया जाए जो विभिन्न वैबसाइटों के आपसी संबंध का विश्लेषण कर सके तो बेहतर परिणाम मिल सकेंगे. उन्होंने पहले इसका नाम रखा था बैकरब. लेकिन क्योंकि लैरी की गणित में बहुत रुचि थी इसलिए उन्होंने इस सर्च इंजन का नाम गूगल रख दिया. साभार- बीबीसी हिन्‍दी

तो ये है YAHOO ! का पूरा नाम

याहू डॉटकॉम की स्थापना अमरीका के स्टैनफ़र्ड विश्वविद्यालय में इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे दो छात्रों, डेविड फ़िलो और जैरी यांग ने 1994 में की थी. यह वेबसाइट जैरी ऐन्ड डेविड्स गाइड टू द वर्ल्ड-वाइड-वैब के नाम से शुरु हुई थी लेकिन फिर उसे एक नया नाम मिला, यट अनदर हाइरार्किकल ऑफ़िशियस ओरैकिल. जिसका संक्षिप्त रूप बनता है याहू. जैरी और डेविड ने इसकी शुरुआत इंटरनेट पर अपनी व्यक्तिगत रुचियों के लिंकों की एक गाइड के रूप में की थी लेकिन फिर वह बढ़ती चली गई. फिर उन्होंने उसे श्रेणीबद्ध करना शुरु किया. जब वह भी बहुत लम्बी हो गई तो उसकी उप-श्रेणियां बनाईं. कुछ ही समय में उनके विश्वविद्यालय के बाहर भी लोग इस वेबसाइट का प्रयोग करने लगे. अप्रैल 1995 में सैकोया कैपिटल कम्पनी की माली मदद से याहू को एक कम्पनी के रूप में शुरू किया गया. इसका मुख्यालय कैलिफ़ोर्निया में है और यूरोप, एशिया, लातीनी अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमरीका में इसके कार्यालय हैं.

जानते हो डिटेक्टिव है आपकी नाक

एक ताज़ा शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि अगर आस-पास किसी भी तरह का ख़तरा मंडरा रहा हो तो मनुष्य गंध के ज़रिए उसे भांपने की क्षमता रखता है. अपने प्रयोग में वैज्ञानिकों ने लोगों को एक ही तरह की दो सुगंधों के बीच अंतर करने को कहा. पहले तो वो इसमें नाकाम रहे लेकिन जब उन्हें हल्का सा इलेक्ट्रिक शॉक दिया गया तो वे आसानी से गंध को पहचान गए. बाद में दिमाग के स्कैन से मस्तिष्क के टसूंघने वालेट हिस्से में परिवर्तन की पुष्टि भी हो गई. अमरीकी शोध ‘साइंस’ जरनल में प्रकाशित हुआ है जिसमें सुझाया गया है कि मनुष्य के पूर्वजों ने ये काबिलियत विकसित की थी ताकि ख़तरों से दूर रह सकें. शोध के दौरान 12 लोगों को दो घास जैसी दुर्गंधों को सूंधने को कहा गया. उनमें से कोई भी उसे ठीक से नहीं पहचान सका. फिर सूंघने के दौरान जब उन्हें बिजली का हल्का सा झटका दिया गया तब वो सुगंधों के बीच अंतर करने में कामयाब रहे. शिकागो के नार्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय के फ़िनबर्ग स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के शोधकर्ता डॉक्टर वेन ली ने कहा, " ये काबिलियित धीर-धीरे विकसित हुई है. हमारे आस-पास जो सूचनाओं का अंबार है, उसमें से कौन सी जानकारि

कुछ पुरानी यादें जो बयां कर रही है हकीकत

भारत व ऑस्‍ट्रेलिया के बीच सिडनी में हुए टेस्‍ट मैच के दौरान जो हुआ. यह तस्‍वीर शायद यही बायां कर रही है. बकनर चचा आपसे ऐसी उम्‍मीद न थी.

HOW TO HANDLE DIFFICULT PEOPLE

They are out there. They may either be your boss, college professor, business partner, landlord, or even your own spouse, children, siblings or parents. Anyone can be a difficult person to someone else. You may not admit it, but at one time or another all of us have been difficult people to other people. It is vital to see if you are in a situation with a difficult person or if you yourself are beginning to be one. The first solution to any problem is recognising the problem. Most times, difficult people do not realise they are difficult. They do not see that they are demanding too much from other people. They think their attitude is just normal. Likewise, some of their victims may not see that they are dealing with difficult people. It is vital that at this early point, we grasp the fact that avoiding difficult people does not solve the problem in question. As earlier mentioned, these people are everywhere. There is no privacy they cannot invade. Ironically, the more successful you ge

जारी है टाटा का विजय रथ

सरोज तिवारी टाटा यूरोप, टाटा अफ्रीका, टाटा ऑस्‍ट्रेलिया इंटरनेशनल कंपनी, टाटा समूह का नया साम्राज्‍य है, जो पूरे विश्‍व पर अपनी विजय पताका-लहराने की दिशा में अग्रसर है. वर्ष 200 ेस शुरू अंतराराष्‍ट्रीय कंपनियों की खरीददारी की संख्‍या अब 38 हो गयी है. इसके नये संस्‍करण में जगुआर और लैंड रोवर का नाम भी आ गया है. अगर देश के मल्‍टीनेशनल कंपनियों की बात करें तो बिड़ला, महिन्‍द्रा, रैनबैक्‍सी फार्मा, भारत फोर्ज, सुजलॉन, और आईसीआईसीआई जैसी कई बड़ी कंपनियां हैं, जिनका ऑपरेशन विश्‍व के कई देशों में चल रहा हैञ लेकिन टाटा ग्रुप की बात अलग है, आज छह महादेशों के 85 देशों में टाटा की सैकड़ों कंपनियां कार्यरत हैं. आज इस ग्रुप के टोटल रेवेन्‍यु का 40 प्रतिशत जो‍ कि लगभग 11 बिलियन डॉलर है, केवल विदेशों से आता है, जो इस साल 60 प्रतिशत तक पहुंच जायेगा. टाटा कंसलटेंसी सर्विस, टाटा टी, टाटा स्‍टील, टाटा केमिकल्‍स, टाटा मोटर्स और इंडियन होटल्‍स जैसी टाटा की फ्लैगशिप कंपनियां विदेशों में पूरी तरह स्‍थापित हो चुकी है. अगर टीसीएस की बात करें, तो 1968 में अमेरिका के शुरू होने वाली इस कंपनी का कार्यक्षेत्र आज 4

ये क्‍या हो रहा है, अरे, ये क्‍या हो रहा है

ये देखो अपनी युवा ब्रिग्रेड टीम इंडिया की असलियत. माही तो मस्‍त हैं. पर ये उथप्‍पा, कार्तिक और युवी क्‍या देखने की कोशिश कर रहे है. सचिन मनों कह रहे हों जैसे मैनें तो काफी कुछ देख लिया.

इस जज्‍बे को सलाम...

मंजूनाथ कलमानी उस शख्‍स का नाम है, जो पिछले छह सालों से जिंदगी से लोहा लेता आ रहा है. पेशे से इंजीनियर मंजूनाथ 2002 में एक सड़क हादसे में लकवा से पीडि़त हो गये. तब से आज तक वे वेंटीलेटर पर हैं. अमेरिका में लंबे ईलाज के बाद हाल में उन्‍हें भारत लाया गया है. फिलहाल दिल्ली के सफदरगंज अस्‍पताल में उनका इलाज चल रहा है. मंजूनाथ को अपने इलाज के लिए आर्थिक सहायता की जरूरत है. भले ही पिछले छह सालों में मंजू की दुनिया अस्‍पताल के बेड तक सिमट कर कर रही है, पर जिंदगी को मात देने का जज्‍बा आज भी उनमें बरकरार है. यही कारण है कि जब उनके एक चिकित्‍सक ने उन्‍हें ब्‍लागिंग की सलाह दी तो उन्‍होंने वेंटीलेटर होते हुए भी ब्‍लॉगिंग शुरू कर दी. यहां उनके सम्‍मान में हम उनके ब्‍लॉग की एक पोस्‍ट डाल रहे हैं. उम्‍मीद है आपको पसंद आयेगी. Inspiration to start writing Blog Even though I used to spend considerable time on the computer ( now I can't spend much time on the computer due to several reasons such as diminished vision, overwhelming health problems, weakness and depression ), it never crossed my min

सहवाग नहीं सौ बाघ

सरोज तिवारी दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्‍ट के तीसरे दिन भारतीय बल्‍लेबाज खुलकर खेले. आज सुबह जब बीरू बल्‍लेबाजी के लिए उतरे तो शायद उन्‍हें भी यह अंदेशा नहीं था कि उनका बल्‍ला चौके और छक्‍के के रूप में आग उगलेगा. लेकिन बल्‍लेबाजी करते हुए वे जल्‍द ही लय, लाइन में आ गये. इसके बाद शुरू हुई उनकी ताबडतोड बल्‍लेबाजी. उनके बल्‍ले से अधिकांश बांउडी ही निकल रहा था. लंबे हाथ दिखाते हुए उन्‍होंने छक्‍के भी लगाये. आज चिदंबरम में बने कई रिकॉर्ड भी सहवाग के नाम रहा हालांकि मेहमान दक्षिण अफ्रीका की टीम ने भी कल रिकॉर्डों की बौछार कर दी थी, लेकिन इन सभी रिकॉर्डों में सहवाग का रिकॉर्ड भारी पड गया. उन्‍होंने आज अविजित नाबाद 309 रन बनाये. आज उन्‍होंने 75 साल पुराना विश्‍व रिकॉर्ड तोड दिया. सहवाग ने सिर्फ 278 गेंद पर 300 रन पूरा किया. अब तक यह रिकॉर्ड इंग्‍लैंड के वाल्‍टर हैमंड के नाम था. उन्‍होंने 1932-33 में न्‍यूजीलैंड के खिलाफ अपना तिहरा शतक 355 गेंदों में पूरा किया था. 2003 में ऑस्‍ट्रेलिया के मैथ्‍यु हैडन भी यह कीर्तिमान भंग करने से चूक गये थे. उन्‍होंने कुल 41 चौके और पांच छक्‍के लगाये. टेस्

नगर निकाय चुनाव में खोखले साबित हुए प्रशासनिक दावे

सरोज तिवारी रांची नगर निगम चुनाव में किये गये प्रशासनिक दावे खोखले साबित हुए. चुनाव से पहले चुनाव आयोग और प्रशासन ने चुनाव को निष्‍पक्ष संपन्न रकाने के कई वायदे किये थे. लेकिन बूथ लुटेरों और उपद्रवियों के आगे सभी वायदे धरे के धरे रह गये. जिस जहां मौका मिला, वहीं वोट छाप दिया. इससे एक बार फिर प्रशासन का दवा विफल साबित हुआ है. लगभग सभी इलाके में बूथ कब्‍जा, मारपीट, मत पत्र फाड़ने, वोटर लिस्‍ट में गडबड़ी व बोगस मतदान की शिकायतें मिली हैं. सबसे आश्‍चर्य और महत्‍वपूर्ण बात तो यह है कि यह सब नजारा पुलिस के सामने देखने को मिला. पुलिस मूददर्शक बनी रही. मानो उन्‍हें सांप सुंघ गया हो. ऐसे में तो इन पर भी सवालिया निशाना उठने लगा है. वार्ड 45 से 55 तक के मतदाताओं को मतदान करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. मतदान करने आये मतदाताओं को तो सबसे पहले अपने नाम खोजने में घंटों लगे किसी तरह नाम मिल भी गया, तो बाद में वोट देने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसमे महिलाएं काफी परेशानी हुई. इसी तरह का नजारा वार्ड 45 में देखने को मिला. यहां बूथ संख्‍या 502 व अ वब के बैलेट बाक्‍स में पानी डाल

जड़ों की ओर लौटते नयी पीढी के युवा किसान

चुस्‍त कपड़े, हाथ में लैपटॉप, जेब में महंगे से महंगा मोबाईल. यह पहचान है नयी पीढी के कुछ युवा किसानों की, जो अपनी जड़ों की लौटने का मन बना चुके हैं. बेशक, देश के कई क्षेत्रों किसान आज जल्द पैसा कमाने की होड़ में अपनी उपजाऊ भूमि को बेच रहे हों, परंतु नई पीढ़ी के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने पुश्तैनी व्यवसाय खेती को समाप्‍त होते देखना कतई नहीं चाहते. नई पीढ़ी के ये युवा किसान आधुनिक भले हों पर तेज गर्मी के मौसम में भी अपनी फसल की देख-रेख के लिए पसीना बहाने से पीछे नहीं हटते। आज पंजाब में एक ‘किल्ला’ (एकड़) जमीन की कीमत भले ही 50 लाख से 5 करोड़ रुपये हो, परंतु अनेक पढ़े-लिखे डिग्रीधारी युवा अपनी जमीन पर जोरों-शोरों से खेती शुरू कर चुके हैं।पांच वर्ष पहले न्यूजीलैंड जाकर वहां के स्थाई नागरिक बनने के बाद वापस लौट आए कुल्तार सिंह ने अपने भाई हरजोध सिंह के साथ खेती-बाड़ी के अतिरिक्त एक ‘विवाह पैलेस’ की भी स्थापना की है। पुणे के सिम्बॉयसिस से कर्मचारी प्रबंधन में स्नातकोत्तर कुल्तार सिंह का कहना है कि, "खेती हमारा पुश्तैनी पेशा है और हम इसे नहीं छोड़ेंगे। दरअसल खेती से जुड़ी समस्याओं और बि

रहिमन पानी राखिए...

संजीव गुप्ता मालवीय नगर निवासी अमित कुमार और वसंत कुंज की शकुंतला देवी एक ही समस्या से हैरान हैं। डाक्टर ने उन्हें हर घंटे एक गिलास पानी पीने को कहा है। दोनों घरों में पानी के बड़े जार खरीदे जाते हैं। उनके लिए प्रतिदिन दस लीटर पानी का खर्च होगा 25 रुपये। परिवार के अन्य सदस्यों को भी जोड़ लें, तो कीमत बैठती है करीब 3000 रुपये महीना। दिल्ली से बाहर रहने वालों को यह जानकर झटका लग सकता है कि राष्ट्रीय राजधानी के कुछ इलाकों में पीने का पानी बाजार से खरीदा जाता है। पानी को मुफ्त का माल समझने और उसे बर्बाद करने वाले अगर अब भी सावधान नहीं होंगे, तो वहां भी दिल्ली जैसा हाल हो सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के पठारी क्षेत्रों और राजस्थान के बाशिंदों को यह समस्या दिखने लगी होगी। बुंदेलखंड तो खैर वर्षो से प्यासा है। अब दिल्ली की बात। दक्षिण दिल्ली, मध्य दिल्ली व देहात के विभिन्न हिस्सों में या तो जल बोर्ड का पाइप लाइन नेटवर्क है ही नहीं और अगर है तो जलापूर्ति बहुत कम। ऐसे में यहां के लोग पेयजल के लिए 'कथित मिनरल वाटर' के 20 लीटर वाले जार मंगवाने को विवश हैं। घरों की टंकियां भरने

सचमुच बदल गये हैं धोनी

अभिषेक पोद्दार ऑस्‍ट्रेलिया को उसी के सरजमीं पर वनडे सीरीज हराने के बाद महेंद्र सिंह धोनी पिछले सप्‍ताह अपने शहर रांची लौटे. उनके रांची लौटने से पहले ही महेंद्र सिंह धोनी के व्‍यवहार व सोच में परिवर्तन की बात सभी ने मैच के दौरान की थी, सभी ने कहां क‍ि वह अब गंभीर हो गये हैं और चीजों को अच्‍छी तरह से समझने लगे हैं तो क्‍या था यहां भी उसके चाहने वाले और उनके दोस्‍तों में भी एक उत्‍सकुता जग गई कि क्‍या सचमूच हमारा माही अब भारतीय क्रिकेट टीम के कप्‍तान महेंद्र सिंह धोनी के रूप में बदल गया है. धोनी जिस दिन रांची लौटे उसी समय से सभी ने उनकी गतिविधियों पर नजर रखना शुरू कर दिया खासकर उनके चाहनेवालों ने जिन्‍हें लग रहा था सचमूच धोनी बदल गये हैं. लेकिन उस दिन की उनकी गतिविधियों को देखने के बाद (जब धोनी ने आते के साथ ही अपनी बाइक लेकर रांची की सडकों पर धूमने निकल गये) सभी ने यह समझ लिया कि धोनी हो सकता है मैदान के लिए बदल गये हैं लेकिन अपने शहर में आज भी वह उसी तरह से मौज मस्‍ती करने के लिए तैयार है जैसा वह हर बार करते थे. यह सोच कर लोग अभी सोये ही थे कि अगले सुबह उनकी यह सोच उनका साथ छोडगई धोनी

How To Rediscover The Joy Of Writing

Most people get into the writing business because they love to write. In fact, they can’t imagine doing anything else. However, when you write for a living, you may sometimes feel as if you’re writing by rote and as if the joy of writing has completely evaporated. Almost every freelance writer that I know has experienced this at least once. It’s time to do something about it before the joy disappears completely. Here are some of the steps that I take. Sometimes it helps to step away from the computer. When you spend most of every day there, it’s no surprise that you might feel a bit stale from time to time. I find exercise very helpful in clearing my brain, so I go for a walk or - if I really want to torture myself - take a spin class…. Reading has always been one of my favorite forms of relaxation. When you’re trying to refresh your ideas, the trick is to read something completely different. When I’m relaxing, I almost never read about mortgages or loans. Instead, I pick up a good bio

बिहार से इतनी नफरत क्‍यों

राजीव उपाध्‍याय इस देश को धर्मों में मत बांटो, इस देश को फसादों में मत बांटो एक सागर सा है अपना देश, इसे झीलों-तलाबों में मत बांटो... मशहूर शायर इकबाल ने ये पंक्तियां देश की एकता का संबल देती हैं, लेकिन आज हमारे देश के राजनेताओं को क्‍या हो गया है कि वो अपनी जुबान से देश को लगातार तोडने की भाषा बोल रहे हैं. जी हां यहां हम बात कर रहे हैं शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे और उनके भतीजे महाराष्‍ट्र नवनिर्माण पार्टी के सुप्रीमो राज ठाकरे जी की. अभी कुछ ही दिन बीते हैं जब मनसे सुप्रीमो राज ठाकरे ने यह बयान देकर पूरे देश को क्षेत्रवाद और भाषावाद के नाम पर विडंखित करने का प्रयास किया. उनका यह बयान कि बिहारियों और उत्‍तर प्रदेश के लोगों के लिए महाराष्‍ट्र में कोई जगह नहीं है. इसके बाद पूरे बिहार और उत्‍तर प्रदेश के बुद्विजीवियों के बीच राज ठाकरे को लेकर चहुंओर आलोचना का दौर चला. मुंबई सहित पूरे महाराष्‍ट्र से होते हुए बंगाल तक में बवाल मचा. इसके बदले में बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री व राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने बिहार का अपमान होते देख जवाबी हमला भी किया. उन्‍होंने यहां तक चुनौती दे डाली कि

अब धनबाद भी कम नहीं

सुमन कुकरेजा भारत में कई ऐसे शहर हैं जो दुनिया में तेजी से बढते शहरों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. कुछ वर्षों पहले गिनीज बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकाड्रर्स में महाराष्‍ट्र के औरगांबाद ने अपना नाम दर्ज कराया था. देश के कुछ शहर जो विश्‍व ही नहीं अपने देश में भी अनजाने से थे आज दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्शा रहे हैं इन भारतीय शहरों में चंडीगढ, भोपाल, सूरत, गुवाहटी, दुर्ग, आसनसोल, विशाखापट्रटनम और धनबाद प्रमुख है. ब्रिटेन की एक गैर सरकारी संस्‍था अंतरराष्‍ट्रीय पर्यावरण व विकास संस्‍थान द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के 100 सबसे तेजी से बढते शहरों में भारत के 11 शहर हैं. इनमें फरीदाबाद का छठा स्‍थान है. ग्रामीण इलाकों से तेजी से शहरों की तरफ हो रहे पलायन को देखते हुए यह अध्‍ययन रिपोर्ट में कहा गया है. छत्‍तीसगढ का दुर्ग-भिलाई आज दुनियां का सातवां और धनबाद आठवां शहर है. ऐसा ही दिल्‍ली से सटे गाजियाबाद का नाम भी इस लिस्‍ट में शामिल है. रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के जिन देशों के गांवों से सबसे ज्‍यादा लोगों का शहरों की तरफ पलायन हुआ है उसमें भारत का स्‍थान सिर्फ चीन से पीछे है. चीन

मैं नक्‍सली नहीं हूं

अभिषेक पोद्दार बिहार के औरगांबाद जिले के सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोगों के पास अब तक न तो कोई मूलभुत सुविधाएं मिली है और न ही किसी सरकारी विकास योजनाओं की जानकारी. उल्‍टे उनके पास जिला प्रशासन और सरकार की तरफ से एक तमगा मिला है वह है नक्‍सली होने का. गाहे बगाहे जिला प्रशासन उन्‍हें नक्‍सली घोषित करने की फिराक में लगा रहता है. यहां आपको बता दें कि औरगांबाद जिले के सीमावर्ती इलाकों में नक्‍सली की सामानांतर सरकार चलती है, वहां उनका आना जाना लगा रहता है, वे वहां खुलेआम अपनी पंचायत लगाते हैं. इस पचांयत में अगर किसी के नाम नक्‍सली फरमान जारी हो गया और वह पंचायत में नहीं आया तो फिर उसकी अगली मुलाकात फिर भगवान से ही होती है. लोगों को अपने परिवार व खुद की जान बचाने के लिए न चाहते हुए भी नक्‍सलियों का साथ देना पडता है. यहां साथ देने का मतलब है कि उन्‍हें आश्रय देना पडता है. अगर वह किसी दिन किसी गांव में आ गये तो वहां के लोगों को उनकी खातिरदारी करनी पडती है, उनके रहने की व्‍यवस्‍था करानी पडती है उन्‍हें भोजन कराना पडता है और उनका वह हर आदेश मानना पडता है चाहे वह आदेश कुछ भी क्‍यों न हो. यहा

उम्‍मीदें बढाती जम्‍हूरियत

सचिन गुप्‍ता आखिरकार पाकिस्‍तान में चुनाव हो गये. मुशर्रफ की लाख कोशिशों के बाद भी पार्टी की हार, जरदारी के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए उनके खिलाफ भ्रष्‍टाचार के मामले वापस लेने सहित तमाम दिलासे मियां मुशर्रफ दे चुके थे. लेकिन शायद विपक्ष जनरल की हर रणनीति या यूं कहें उनकी तानाशाही से इस कदर तंग आ चुका है कि उन्‍होंने मतभेदों के बावजूद आपस में हाथ मिलाकर जनरल का सत्‍ता से नियत्रंण खत्‍म करने की ठान ली. विपक्ष की दो प्रमुख पार्टियों पीपीपी, पीएमएल-एन ने एक सुर में चेताते हुए कहा कि अब जम्‍हूरियत की स्‍थापना में एक दिन की भी देर न करें, नवाज शरीफ तो लगातार मुर्शरफ साहब को पद छोडने की हिदायत दे रहे हैं. भारत के संदर्भ में अगर गौर फरमाये तो सीमा पार में चुनाव अच्‍छे संकेत देता है. पाक में जम्‍हूरियत की स्‍थापना का मतलब होगा कि दोनों पक्ष अब शांति और सीमा विवाद सहित कश्‍मीर पर वार्ता के लिए आगे जा सकते हैं. साथ ही बढते आतंकवाद, व्‍यापार जैसे मुद्दों पर संभावनाओं के द्वार खुलेंगे. ऐसा नहीं है कि तानाशाही के दौर में पाक से बातचीत की प्रक्रिया बंद हो गई हो, लेकिन गाहे-बगाहे मुशर्रफ की कट्रटरप

लानत है ऐसे खेलप्रेमियों व मीडिया पर

अभिषेक पोद्दार आज पूरे देश के लिए संडे सुपर संडे बनकर आया. भारत ने आज खेल जग‍त के इतिहास में वह कारनामा कर दिखाया जिसकी सब कल्‍पना मात्र ही कर रहे थे. टीम इंडिया ने सिडनी में आस्‍ट्रेलिया के खिलाफ तीन मैचों के फाइनल के पहले मुकाबले में 6 विकेट से हरा दिया तो वहीं दूसरी ओर टीम इंडिया की अंडर-19 टीम ने विश्‍वविजेता का खिताब पहन लिया. फिर क्‍या था पूरे देश में जश्‍न का माहौल बन गया, लोग गुलाल-अबीर, मिठाई और पटाखों को लेकर उतर पडे सडक पर मनाने लगे जश्‍न और उनका जश्‍न मनाना लाजमी भी है. अब इस मौके को मीडिया कैसे छोड सकती है उसने भी कमाल कर दिखाया कहीं दोनों टीमों के खिलाडियों का बखान हो रहा था तो कहीं बडे मियां छोटे मियां के गाने बज रहे थे दोनों टीमों की खुशी का इजहार करने के लिए और हां अपना पेटेंट गीत चक दे चक दे इंडिया तो चल ही रहा था. अब आप सोच रहे होंगे अगर खेलप्रेमियों और मीडिया ने यह सब किया तो क्‍या गलत क्‍या. भाई जश्‍न का माहौल है जश्‍न नहीं मनायेंगे तो क्‍या मातम मनायेंगे. लेकिन किसी ने भी हॉकी जिसे शायद गलती से भारत का राष्‍ट्रीय खेल घोषित किया गया है उसकी कहीं चर्चा भी नहीं की ग

जागो वोटर जागो

सचिन गुप्‍ता चिदंबरम का चुनावी बजट आ गया. किसानों को कर्ज माफी, मध्‍यम वर्ग को टैक्‍स में राहत, छात्र-छात्राओं को नवोदय विघालय सहित आईआईटी, बुजुर्गों को आयकर का दायरा बढा दिया गया है. साथ ही उनकी पेंशन में बढोतरी के तोहफे देने की बात कह डाली. लेकिन पूरे बजट के दौरान रोज कमाने खाने वाले आम आदमी को कहीं से भी निजात दिलाने वाली बात नहीं कही गयी. न ही न्‍यूनतम मजदूरी बढाने की बात कही गई. बजट के माध्‍यम से यूपीए का मतलब साफ है तुम हमें वोट दो हम राहत देंगे... वाले फार्म्‍यूले पर सरकार चल रही है. उसे न तो उस बेचारे मजदूर की रोजी से प्रेम है जो दिन भर धूप में खटकर शाम को मजदूरी के हाथ फैलाता है, और न ही उन बच्‍चों से जो कठोर परिश्रम की भट्रठी में झोंके जा रहे हैं. ईंट बनाने, कांच के कारखाने में काम करने, फैक्ट्रियों में हाथ जलाने और अपनी उम्र से कहीं ज्‍यादा बोझ उठाने को मजबूर हैं. पोलियो, टीवी, एड्रस से निजात दिलाने की बातें भी खूब की गई, लेकिन स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं बढाने और नये अस्‍पताल, दवाइयों की उपलब्‍धता की बात नहीं की गई. देश में बढते हदयरोग, कुपोषण व महामारी पर सरकार का ध्‍यान नहीं गय

हमसे कुछ नहीं होगा हम गुलाम पत्रकार हैं

अभिषेक पोद्दार हमेशा की तरह कल रात अपने अखबार के कार्यालय से काम निपटाकर अपने घर गया, जहां हम सभी रूममेट बैठकर रोज की तरह किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे, अचानक मैंने अपने एक साथी से पूछा यार फ्रीलांस रिपोर्टर को हिंदी में क्‍या कहेंगे उसने कहां स्‍वतंत्र पत्रकार, तभी तपाक से मेरे मुंह से निकल गया तो हम गुलाम पत्रकार हैं. उसने भी भरे मन से हामी भर दी. फिर क्‍या था हमसब इसी मुद्दे पर चर्चा करने लगे. दो दिनों पहले बोलहल्‍ला पर पत्रकारिता के बारे में मैंने जो भडास निकाली थी उसका कारण समझ में आने लगा. आज हकीकत तो यह है कि हम जिस मीडिया घराने से जुड जाते हैं उसके लिए एक गुलाम की भांति काम करने लगते हैं, हम अपनी सोच, अपने विचार और अपनी जिम्‍मेवारियों को उस मीडिया घराने के पास गिरवी रख देते हैं और सामने वाला व्‍यक्ति हमें रोबोट की तरह इस्‍तेमाल करने लगता है, हम उसकी धुन पर कठपुतलियों की तरह नाचना शुरू कर देते हैं. किसी को जलकर मरते देखकर हमारा दिल नहीं पसीजता, किसी की समस्‍याओं में हमें अपनी टॉप स्‍टोरी व ब्रे‍किंग न्‍यूज नजर आती है, सच कहें तो शायद हमारी संवेदना ही मर चुकी हैं. शायद आज पूरी की