सचिन गुप्ता
चिदंबरम का चुनावी बजट आ गया. किसानों को कर्ज माफी, मध्यम वर्ग को टैक्स में राहत, छात्र-छात्राओं को नवोदय विघालय सहित आईआईटी, बुजुर्गों को आयकर का दायरा बढा दिया गया है. साथ ही उनकी पेंशन में बढोतरी के तोहफे देने की बात कह डाली. लेकिन पूरे बजट के दौरान रोज कमाने खाने वाले आम आदमी को कहीं से भी निजात दिलाने वाली बात नहीं कही गयी. न ही न्यूनतम मजदूरी बढाने की बात कही गई. बजट के माध्यम से यूपीए का मतलब साफ है तुम हमें वोट दो हम राहत देंगे... वाले फार्म्यूले पर सरकार चल रही है. उसे न तो उस बेचारे मजदूर की रोजी से प्रेम है जो दिन भर धूप में खटकर शाम को मजदूरी के हाथ फैलाता है, और न ही उन बच्चों से जो कठोर परिश्रम की भट्रठी में झोंके जा रहे हैं. ईंट बनाने, कांच के कारखाने में काम करने, फैक्ट्रियों में हाथ जलाने और अपनी उम्र से कहीं ज्यादा बोझ उठाने को मजबूर हैं. पोलियो, टीवी, एड्रस से निजात दिलाने की बातें भी खूब की गई, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं बढाने और नये अस्पताल, दवाइयों की उपलब्धता की बात नहीं की गई. देश में बढते हदयरोग, कुपोषण व महामारी पर सरकार का ध्यान नहीं गया. आंकडे बताते हैं कि विश्व में सबसे तेज गति से भारत में एड्रस फैल रहा है. आज हम एड्रस पीडित देशों की गिनती में दूसरे नंबर पर पहुंच गये हैं. ये स्थिति तब है जब एड्रस जागरूकता अभियान के विज्ञापन और कंडोम कल्चर का प्रचार हर माध्यम से किया जा रहा है. मतलब साफ है कहीं न कहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां एड्रस जागरूकता की आड में कंडोम का प्रचार कर करोडों ग्राहक तैयार कर रही हैं. काम वासना, वैश्वाव़ति को बढावा दे रही है. यहीं हाल पोलिया का है. पिछले साल सरकार के सारे दावे खोखले साबित हुए जब उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में पोलियो ग्रसित बच्चों के मामले सामने आये. यही हाल तपेदिक यानि टीवी का है. लेकिन सरकार सिर्फ संचार माध्यमों पर पैसा खर्च कर यह जता रही है कि हम बिमारियों के उन्मूलन के लिए काम कर रहे हैं. जमीनी हकीकत यह है कि उन्हें न तो दवाइयां मिलती है और न ही इलाज. सरकार ने इस बार शिक्षा बजट में अभुतपूर्व बढोतरी की है. पिछले साल तक सात फीसदी की बढोतरी होती रही, इस बार इसे बीस फीसदी कर दिया गया. निश्चित रूप से यह अच्छा कदम है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में कोई विशेष बातें सामने नहीं आई. आयकर की बात करें तो वित्त मंत्री वकील चिदंबरम ने खूब दिमाग लगाया और आयकर देने वाले मतदाताओं से वोटों का केस जीतने के लिए अच्छी जुगत भिडाई है. उन्होंने आयकर दायरा डेढ लाख कर मतदाताओं से अपील की कि हमें आपकी जेब की पूरी फ्रिक है. उर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में वित्त मंत्री का धुलमिल रवैया भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं देता. वित्त मंत्री के इस चुनावी बजट की भले ही चहुंओर प्रशंसा की जा रही हो, लेकिन विकास दर में गिरावट अर्थशास्त्रयों के माथे पर बल जरूर पैदा करेंगे. साथ ही आम आदमी के लिए रियायतों की लाख घोषणा के बाद सब्जी और राशन खरीदते समय उसे दिन में तारे आना बरकरार है. यदि पीसी महंगाई की दिशा में कदम उठाते और उसे नियत्रत करते तो निश्चित ही सरकार बचाने की दिशा में वे चाणक्य की भांति रणनीतिकार नजर आते. इस दिशा में थोडी सी ढिलाई बरत कर उन्होंने विपक्षियों को एक मौका छोड दिया है. अब अगर मतदाता रियायतों के झांसे में नहीं आये तो यह तोहफों की बौछार वाला ऐतिहासिक बजट यूपीए की नैया पार लगा पायेगा इसमें हमेशा संदेह रहेगा.
चिदंबरम का चुनावी बजट आ गया. किसानों को कर्ज माफी, मध्यम वर्ग को टैक्स में राहत, छात्र-छात्राओं को नवोदय विघालय सहित आईआईटी, बुजुर्गों को आयकर का दायरा बढा दिया गया है. साथ ही उनकी पेंशन में बढोतरी के तोहफे देने की बात कह डाली. लेकिन पूरे बजट के दौरान रोज कमाने खाने वाले आम आदमी को कहीं से भी निजात दिलाने वाली बात नहीं कही गयी. न ही न्यूनतम मजदूरी बढाने की बात कही गई. बजट के माध्यम से यूपीए का मतलब साफ है तुम हमें वोट दो हम राहत देंगे... वाले फार्म्यूले पर सरकार चल रही है. उसे न तो उस बेचारे मजदूर की रोजी से प्रेम है जो दिन भर धूप में खटकर शाम को मजदूरी के हाथ फैलाता है, और न ही उन बच्चों से जो कठोर परिश्रम की भट्रठी में झोंके जा रहे हैं. ईंट बनाने, कांच के कारखाने में काम करने, फैक्ट्रियों में हाथ जलाने और अपनी उम्र से कहीं ज्यादा बोझ उठाने को मजबूर हैं. पोलियो, टीवी, एड्रस से निजात दिलाने की बातें भी खूब की गई, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं बढाने और नये अस्पताल, दवाइयों की उपलब्धता की बात नहीं की गई. देश में बढते हदयरोग, कुपोषण व महामारी पर सरकार का ध्यान नहीं गया. आंकडे बताते हैं कि विश्व में सबसे तेज गति से भारत में एड्रस फैल रहा है. आज हम एड्रस पीडित देशों की गिनती में दूसरे नंबर पर पहुंच गये हैं. ये स्थिति तब है जब एड्रस जागरूकता अभियान के विज्ञापन और कंडोम कल्चर का प्रचार हर माध्यम से किया जा रहा है. मतलब साफ है कहीं न कहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां एड्रस जागरूकता की आड में कंडोम का प्रचार कर करोडों ग्राहक तैयार कर रही हैं. काम वासना, वैश्वाव़ति को बढावा दे रही है. यहीं हाल पोलिया का है. पिछले साल सरकार के सारे दावे खोखले साबित हुए जब उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में पोलियो ग्रसित बच्चों के मामले सामने आये. यही हाल तपेदिक यानि टीवी का है. लेकिन सरकार सिर्फ संचार माध्यमों पर पैसा खर्च कर यह जता रही है कि हम बिमारियों के उन्मूलन के लिए काम कर रहे हैं. जमीनी हकीकत यह है कि उन्हें न तो दवाइयां मिलती है और न ही इलाज. सरकार ने इस बार शिक्षा बजट में अभुतपूर्व बढोतरी की है. पिछले साल तक सात फीसदी की बढोतरी होती रही, इस बार इसे बीस फीसदी कर दिया गया. निश्चित रूप से यह अच्छा कदम है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में कोई विशेष बातें सामने नहीं आई. आयकर की बात करें तो वित्त मंत्री वकील चिदंबरम ने खूब दिमाग लगाया और आयकर देने वाले मतदाताओं से वोटों का केस जीतने के लिए अच्छी जुगत भिडाई है. उन्होंने आयकर दायरा डेढ लाख कर मतदाताओं से अपील की कि हमें आपकी जेब की पूरी फ्रिक है. उर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में वित्त मंत्री का धुलमिल रवैया भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं देता. वित्त मंत्री के इस चुनावी बजट की भले ही चहुंओर प्रशंसा की जा रही हो, लेकिन विकास दर में गिरावट अर्थशास्त्रयों के माथे पर बल जरूर पैदा करेंगे. साथ ही आम आदमी के लिए रियायतों की लाख घोषणा के बाद सब्जी और राशन खरीदते समय उसे दिन में तारे आना बरकरार है. यदि पीसी महंगाई की दिशा में कदम उठाते और उसे नियत्रत करते तो निश्चित ही सरकार बचाने की दिशा में वे चाणक्य की भांति रणनीतिकार नजर आते. इस दिशा में थोडी सी ढिलाई बरत कर उन्होंने विपक्षियों को एक मौका छोड दिया है. अब अगर मतदाता रियायतों के झांसे में नहीं आये तो यह तोहफों की बौछार वाला ऐतिहासिक बजट यूपीए की नैया पार लगा पायेगा इसमें हमेशा संदेह रहेगा.
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