संजीव गुप्ता
मालवीय नगर निवासी अमित कुमार और वसंत कुंज की शकुंतला देवी एक ही समस्या से हैरान हैं। डाक्टर ने उन्हें हर घंटे एक गिलास पानी पीने को कहा है। दोनों घरों में पानी के बड़े जार खरीदे जाते हैं। उनके लिए प्रतिदिन दस लीटर पानी का खर्च होगा 25 रुपये। परिवार के अन्य सदस्यों को भी जोड़ लें, तो कीमत बैठती है करीब 3000 रुपये महीना।
दिल्ली से बाहर रहने वालों को यह जानकर झटका लग सकता है कि राष्ट्रीय राजधानी के कुछ इलाकों में पीने का पानी बाजार से खरीदा जाता है। पानी को मुफ्त का माल समझने और उसे बर्बाद करने वाले अगर अब भी सावधान नहीं होंगे, तो वहां भी दिल्ली जैसा हाल हो सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के पठारी क्षेत्रों और राजस्थान के बाशिंदों को यह समस्या दिखने लगी होगी। बुंदेलखंड तो खैर वर्षो से प्यासा है।
अब दिल्ली की बात। दक्षिण दिल्ली, मध्य दिल्ली व देहात के विभिन्न हिस्सों में या तो जल बोर्ड का पाइप लाइन नेटवर्क है ही नहीं और अगर है तो जलापूर्ति बहुत कम। ऐसे में यहां के लोग पेयजल के लिए 'कथित मिनरल वाटर' के 20 लीटर वाले जार मंगवाने को विवश हैं। घरों की टंकियां भरने टैंकर आते हैं। टंकी फुल कराने के लिए प्रति टैंकर 300 रुपये देने पड़ते हैं, जबकि 20 लीटर वाला एक जार 50 रुपये में मिलता है। टंकी हर दो-तीन दिन में भरानी पड़ती है। बाथरूम, घर की सफाई, कपड़े, बर्तन के लिए यही पानी इस्तेमाल होता है। दिल्ली में हालात इतने खराब हैं कि यहां के नौ में सात जिलों में भूजल दोहन प्रतिबंधित है। इन इलाकों में रहने वाले लोग बोर वेल भी नहीं करा सकते। दिल्ली में हर साल करीब पांच लाख लोगों का इजाफा हो जाता है और उनके लिए करीब आठ करोड़ लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। दिल्ली में पहले ही पानी की मांग [950 एमजीडी] एवं आपूर्ति [750 एमजीडी] में 200 एमजीडी का अंतर है। ऊपर से जब तब हरियाणा एवं उत्तार प्रदेश दिल्ली के हिस्से का पानी और घटा देते हैं। नतीजतन जल बोर्ड को पानी संरक्षण प्रोत्साहन के लिए जागरूकता अभियान चलाना पड़ा, हालांकि इसका 'रिस्पांस' निराशाजनक है। बोर्ड भूजल दोहन रोकने के लिए अधिनियम लाने की तैयारी में भी है।
दिल्ली से बाहर रहने वालों को यह जानकर झटका लग सकता है कि राष्ट्रीय राजधानी के कुछ इलाकों में पीने का पानी बाजार से खरीदा जाता है। पानी को मुफ्त का माल समझने और उसे बर्बाद करने वाले अगर अब भी सावधान नहीं होंगे, तो वहां भी दिल्ली जैसा हाल हो सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के पठारी क्षेत्रों और राजस्थान के बाशिंदों को यह समस्या दिखने लगी होगी। बुंदेलखंड तो खैर वर्षो से प्यासा है।
अब दिल्ली की बात। दक्षिण दिल्ली, मध्य दिल्ली व देहात के विभिन्न हिस्सों में या तो जल बोर्ड का पाइप लाइन नेटवर्क है ही नहीं और अगर है तो जलापूर्ति बहुत कम। ऐसे में यहां के लोग पेयजल के लिए 'कथित मिनरल वाटर' के 20 लीटर वाले जार मंगवाने को विवश हैं। घरों की टंकियां भरने टैंकर आते हैं। टंकी फुल कराने के लिए प्रति टैंकर 300 रुपये देने पड़ते हैं, जबकि 20 लीटर वाला एक जार 50 रुपये में मिलता है। टंकी हर दो-तीन दिन में भरानी पड़ती है। बाथरूम, घर की सफाई, कपड़े, बर्तन के लिए यही पानी इस्तेमाल होता है। दिल्ली में हालात इतने खराब हैं कि यहां के नौ में सात जिलों में भूजल दोहन प्रतिबंधित है। इन इलाकों में रहने वाले लोग बोर वेल भी नहीं करा सकते। दिल्ली में हर साल करीब पांच लाख लोगों का इजाफा हो जाता है और उनके लिए करीब आठ करोड़ लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। दिल्ली में पहले ही पानी की मांग [950 एमजीडी] एवं आपूर्ति [750 एमजीडी] में 200 एमजीडी का अंतर है। ऊपर से जब तब हरियाणा एवं उत्तार प्रदेश दिल्ली के हिस्से का पानी और घटा देते हैं। नतीजतन जल बोर्ड को पानी संरक्षण प्रोत्साहन के लिए जागरूकता अभियान चलाना पड़ा, हालांकि इसका 'रिस्पांस' निराशाजनक है। बोर्ड भूजल दोहन रोकने के लिए अधिनियम लाने की तैयारी में भी है।
साभार-याहू-जागरण
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