सचिन गुप्ता
आखिरकार पाकिस्तान में चुनाव हो गये. मुशर्रफ की लाख कोशिशों के बाद भी पार्टी की हार, जरदारी के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले वापस लेने सहित तमाम दिलासे मियां मुशर्रफ दे चुके थे. लेकिन शायद विपक्ष जनरल की हर रणनीति या यूं कहें उनकी तानाशाही से इस कदर तंग आ चुका है कि उन्होंने मतभेदों के बावजूद आपस में हाथ मिलाकर जनरल का सत्ता से नियत्रंण खत्म करने की ठान ली. विपक्ष की दो प्रमुख पार्टियों पीपीपी, पीएमएल-एन ने एक सुर में चेताते हुए कहा कि अब जम्हूरियत की स्थापना में एक दिन की भी देर न करें, नवाज शरीफ तो लगातार मुर्शरफ साहब को पद छोडने की हिदायत दे रहे हैं. भारत के संदर्भ में अगर गौर फरमाये तो सीमा पार में चुनाव अच्छे संकेत देता है. पाक में जम्हूरियत की स्थापना का मतलब होगा कि दोनों पक्ष अब शांति और सीमा विवाद सहित कश्मीर पर वार्ता के लिए आगे जा सकते हैं. साथ ही बढते आतंकवाद, व्यापार जैसे मुद्दों पर संभावनाओं के द्वार खुलेंगे. ऐसा नहीं है कि तानाशाही के दौर में पाक से बातचीत की प्रक्रिया बंद हो गई हो, लेकिन गाहे-बगाहे मुशर्रफ की कट्रटरपंथियों को खुश करने की कोशिश ने आगरा वार्ता को विफल कर दिया. बार-बार कश्मीर का मुद्दा उठाकर जनरल साहब सत्ता पर अपनी पकड ढीली नहीं होने देना चाहते थे. उपर से अमेरिका से दोस्ती या दूसरे शब्दों में बुश से दोस्ती का लाभ मुश बराबर उठा रहे थे. यह बुश साहब की मेहरबानी का ही नतीजा था कि पाक में जम्हूरियत की स्थापना के प्रयास में आठ साल से भी ज्यादा वक्त बीत गया. वैसे मुश और बुश स्वभावगत एक ही प्रकृति के इंसान नजर आते हैं. बस अंतर दो देशों है. बुश साहब अपनी तानाशाही और अमेरिका के महाशक्ति होने के दंभ में दुनिया को गुलाम बनाने का ख्वाब देखते रहे तो मुश साहब कश्मीर और जम्हूरियत का गला घोंट कर आवाम को दबाये रखना चाहते थे. खैर, दे ही सही पाक में अब आवाम अपना फैसला दे चुकी है. जम्हूरियत जीत गयी है. अब जरा चुनाव के बाद पाकिस्तान में हालात की चर्चा करते हैं. वहां अराजकता की स्थिति और गंभीर होती जा रही है. हर दूसरे दिन धमाके हो रहे हैं, अने जानें जा रही हैं, संपत्ति क्षतिग्रस्त हो रही है. इन धमाकों के पीछे किसका हाथ है. जाहिर है कट्टरपंथ का, जो जम्हूरियत को फलीभूत होते नहीं देखना चाहता. उसे डर है कि कहीं सत्ता में लोकतंत्र की वापसी हो गयी तो उनके द्वारा इस्लाम के नाम पर खेले जाने वाले खूनी खेल का अंत हो जायेगा.
इन सबके बीच एक बहम बात जो हुई वह है जरदारी का ताजा बयान. उन्होंने कहा है कि भारत-पाक के बीच रिश्तों में कश्मीर कभी दरार नहीं बनेगा. जरूरत पड़ी तो वह कश्मीर पर से हक जताना भी दोड़ देंगे. शांति प्रक्रिया को हर हाल में बहाल करेंगे, बातचीत का दौर फिर शुरू करेंगे. इस वक्तव्य से उम्मीद जरूर बंधती है. वहीं शरीफ साहब ने एक साक्षात्कार के दौरान कारगिल में मुशर्रफ की भूमिका की जांच करवाने की बात कहकर जनरल की मुसिबतें और बढ़ा दी हैं. उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि 5 मार्च को सरकार के गठन के बाद वे कारगिल युद्ध के कारणों की जांच करवायेंगे और उसकी समीक्षा करेंगे. कुल मिलाकर चुनाव के बाद पाक में बनने जा रही सरकार अच्छे संकेत तो जरूर दे रही है, लेकिन पाकिस्तानी लोकतंत्र को सावधान होने की जरूरत है. क्योंकि वर्तमान में चल रहा आतंक का दौर हमेशा जम्हूरियत के रास्ते में रूकावट डालेगा. हालांकि इसमें भी हमेशा संदेह रहेगा कि पाक में लोकतंत्र कितने समय के लिए वापस आ गया है. साथ ही भारत को भी सतर्क रहना होगा क्योंकि भारत के साथ जब भी कुछ बेहतरी के लिए हुआ है, उस पर भी हमले झेलने पड़े, चाहे वह हमला सीमा पर हो, या सीमा के अंदर घुसपैठ और सिर उठाते आतंकवाद के रूप में उम्मीद की जानी चाहिए की इस बार ऐसा न हो.
Shweta during coverage बिहार की वर्तमान राजनिति पर नयी नज़र के साथ जानी-मानी आजतक पत्रकार बिहारी श्वेता सिंह से खास बातचीत पटना : बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा देने के बाद गुरुवार को सुबह दोबारा एनडीए के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर लिया. इस बीच राजधानी पटना में राजनैतिक चर्चाओं का बाजार उफान पर रहा. गुरुवार को अहले सुबह से ही तमाम मीडियाकर्मी राजभवन के बाहर शपथ ग्रहण को कवरेज करने के लिए मौजूद थे. इस इवेंट को कवरेज करने के लिए आजतक टीवी की जानी-मानी पत्रकार श्वेता सिंह भी विशेष रूप से पटना पहुंची थीं. श्वेता स्वयं एक बिहारी हैं और बिहार के वैशाली जिले के महुआ से आतीं हैं. श्वेता लोगों से इस राजनैतिक घमासा न पर जमकर सवाल पूछतीं नज़र आईं. इस दौरान नयी नज़र के ब्लॉगर कुमार विवेक ने बिहार के बदलते घटनाक्रम पर श्वेता सिंह से बातचीत की, इसके मुख्य अंश हम आपसे साझा कर रहे है. ___ सवाल : श्वेता, देश की जानी-मानी पत्रकार होने के नाते बिहार के इस वर्त्तमान राजनैतिक घटनाक्रम को किस रूप में देखती हैं? जवाब : देखिये, एक पत्रकार के तौर पर इस विषय
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Md.Aslam
Delhi