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Showing posts from February, 2008

विधानसभा या सब्‍जी मंडी

कुमार विवेक झारखंड विधानसभा की बजट सत्र शुरू हो रही थी. स्‍पीकर आलमगीर आलम ने सदस्‍यों को बताया कि राज्‍यपाल बस कुछ ही पलों में सदन को संबोधित करने आयेंगे, और शुरू हो गया विपक्षियों का हंगामा. उन्‍होंने राज्‍यपाल के सदन को संबेधित करने के औचित्‍य पर ही सवाल खड़ा कर दिया. शुरू हो गया आरोप-प्रत्‍यारोपों का दौर. स्‍पीकर महोदय शांति की अपील करते रहे पर उनकी सुननेवाला था कौन. खैर जैसे तैसे महामहिम जी ने अपना अभिभाषण शुरू किया सरकार के कार्यों पर चर्चा करनी जैसे ही उन्‍होंने शुरू की विपक्षियों को यह नागवार गुजरा और वे उनके समांनांतर गिनाने लगे सरकार की खामियां. महामहिम बोलते रहे और सदस्‍य उनके अभिभाषण की सुनना तो दूर उसकी धज्ज्यां उड़ाते नजर आये. महाममहिम के भाषण को कुछ सदस्‍यों ने झूठ का पुलिंदा तक करार दे दिया. महामहिम के भाषण के दौरान विधानसभा में जो नजारा देखने को मिला शायद यह विश्‍व के गौरवशाली लोकतंत्र के लिए शर्मनाक हैं. सदन में कार्यवाही की जगह सब्‍जी मंडी की तरह मोल-भाव हो रहा थी. खैर यह तो कुछ भी नहीं. जिस देश में लोकतंत्र के मंदिर में जूतम-पैजार तक हो चुकी है, उस देश के नेता इसे स

गोरे लोगों का काला इंसाफ

अभिषेक पोद्दार कल ऑस्‍ट्रेलियाई बल्‍लेबाज मैथ्‍यु हैडन ने जिस तरह से भारतीय गेंदबाज हरभजन सिंह पर टिप्‍पणी की थी और उस पर जिस तरह से क्रिकेट ऑस्‍ट्रेलिया ने त्‍वरित अपनी प्रतिक्रिया दी और उसपर जल्‍द कार्रवाई करने का आश्‍वासन दिया था उससे सभी क्रिकेट प्रशसंकों को लगने लगा था कि शायद ऑस्‍ट्रेलिया में अभी भी शर्म बाकी है और वह क्रिकेट को क्रिकेट की तरह खेलना चाहती है, लेकिन क्रिकेट ऑस्‍ट्रेलिया ने जो आज फैसला लिया उससे एक बार फिर साबित हो गया है वह न सिर्फ घंमडी है बल्कि विश्‍वासघाती व बेईमान भी है. क्रिकेट ऑस्‍ट्रेलिया ने हैडन को इस मामले में दोषी तो पाया लेकिन उसपर बिना कोई जुर्माना और न ही किसी मैच पर बैन लगाये उसे सिर्फ फटकार लगाकर छोड दिया. अगर हम चार दिन पहले की घटना पर अगर नजर डाले जब इंशात शर्मा ने साइमंडस पर कोई टिप्‍पणी नहीं की थी सिर्फ यही कहा था कि मैं जानता हूं तुम यह बोल नहीं खेल सकते इतनी सी बात पर मैच रेफरी ने उसपर मैच फीस का 15 प्रतिशत जुर्माना लगा दिया था, जबकि बाद में साइमंडस ने भी यह बात कबूली थी कि इंशात ने वैसी कोई टिप्‍पणी नहीं की थी. चलिए एकपल के लिए यह मान लेते ह

सपने बिखर गये झारखंडियों के

संजय पांडे झारखंड राज्य की स्थापना के सात वर्षों में राज्‍य के विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुई, शिलान्यास हुए, परन्तु कहीं भी कोई कार्य प्रारंभ नहीं हो सका। कुर्सी के लिए, आवास के लिए, लालबत्ती के लिए मंत्रिमंडल में नित्य मारामारी हो रही है। किसे फुर्सत है, झारखंड का विकास करने की, झारखंडियों की सुख-सुविधा का। आज हम झारखंड स्थापना के और राजग सरकार के चार वर्ष के उपलब्धियों का लेखा-जोखा करते हैं तो एक बेबसी ही हाथ लगती है। सपने जो देखे गये वे साकार नहीं हो सके। विकास के जादुई आंकड़े फाइलों में दम तोड़ रहे हैं। राज्य में बेइमानी, भ्रष्टाचार, लूट, बेरोजगारी, उग्रवाद सुरसा की भांति मुंह बाये आज भी खड़ा है। घोषणाओं और शिलालेखों से झारखंड की इंच-इंच धरती फट गयी है, लेकिन यहां के सूखे, खेतों में पानी नहीं पटाया जा सका है। अपनी सुविधा के लिए मंत्रियों व विधायकों को जनहित के नाम पर भूखंड उपलब्ध कराने की कवायद हो रही है लेकिन भूमिहीनों को भूमि उपलब्ध नहीं हो पा रही है। मंत्री कुछ सिखने व जानने के लिए विदेश जाने का तिकड़म लड़ा रहे हैं लेकिन किसी होनहार छात्र या छात्राओं को सरकार

प्‍यार में हारे एक पूर्व प्रेमी का खत

डीयर डिंपू, तुमने डेढ बरस तक जो मुझसे प्‍यार किया, उसका शुक्रिया. आशा है, पत्र मिलने तक तुमने नया प्रेमी पकड लिया होगा. उसके साथ अब डेटिंग पर भी जा रही होगी. हर प्रेमी को बहुत स्‍ट्रगल करना पडता है. मैं भी स्‍ट्रगल कर रहा हूं. प्‍यार के ढाई आखर कमबख्‍त बडे मुश्किल से पकड में आते हैं. मैंने भी तुम्‍हें मिस करने के बाद मुहल्‍ले की ही शीनो पर लंगर डालना शुरू कर दिया है. प्रेम का मेरा यह चौथा प्रयास है. लेकिन इस प्रयासों ने मुझे एक सीख दी है. डिंपू, तुम तो जानती हो कि प्रेम शुरू करते ही कमबख्‍त लव लेटर लिखने पडते हैं. पता है न, मैंने तुम्‍हें कितने पत्र लिखे. पहले के दो प्रेम प्रकरणों में भी लेटरबाजी करनी पडी. बडा झंझट है प्रेम मार्ग में. इसीलिए तुम मरे समस्‍त प्रेम पत्र लौटा देना. तुम्‍हें लिखे उन प्रेम पत्रों पर सफेदा पोतकर डिंपू की जगह शीनो लिख दूंगा. इससे मेरी मेहनत बच जायेगी. प्‍लीज, मेरे पत्र लौटा देना, क्‍योंकि उनकी फोटो कॉपी भी मेरे पास नहीं है. डिंपू तुम मेरी वह फोटो भी वापस कर देना. तुम तो जानती हो कि वही एकमात्र फोटो ऐसी है, जिसमें मैं ठीक-ठाक दिखता हूं. वह मेरे पहले प्‍यार वाले

चौबीस घंटे की तैयारी, तीन घंटे में ड्रामा खत्‍म

सचिन गुप्‍ता बुधवार को राज ठाकरे की गिरफ्तारी और उसके बाद तीन घंटे में रिहाई ने भारतीय राजनीति को झकझोरकर रख दिया. देश को क्षेत्रवाद की राजनीति में बांटने के बयान देकर महाराष्‍ट्र में जो हालात बने, हिंसा का दौर चला, उत्‍तर पूर्वी भारतीयों को खदेडा गया उसने बदलती राजन‍ीति और निजी स्‍वार्थों की ऐसी तसवीर पेश की जिसे देश की अखंडता के लिए खतरे का संकेत माना जा सकता है. सबसे गौर करने वाला पहलू यह रहा कि जिस प्रदेश में लोगों को सरे आम पीटा गया, उन्‍हें दौडाया गया, उनके सामान व वाहनों को क्षतिग्रस्‍त कर दिया गया इतना सब होने के बाद भी राज्‍य सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी. तीन दिनों तक कोई कार्रवाई नहीं, पुलिस में शिकायत करने पर खाकी पहने हुक्‍ममरानों ने जान बचाकर घर भाग जाने की हिदायतें तक दे दीं. सभ्‍य, स‍हभागिता और विकसित होने का दंभ भरने वाले मराठियों ने ये खेल किस बिनाह पर खेला यह सवाल इतिहास बार-बार दोहरायेगा. मनसे तो योजनापूर्ण ढंग से राजनीति कर रही थी, जिसमें वह पूर्णत सफल रहे हैं. कुछ दशक पहले कुछ इसी प्रकार का राग शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ने भी अलापा था जिसके बाद महाराष्‍ट्र से दक्

Meaning of Valentine

Harsha Sinha Roses, hearts, candies in the month of February reminds of just one thing, the most romantic day of the month or the entire year, "Valentine's Day"। Cupid strikes the arrow and transfixes the hearts of youth and maidens. The gift shops are a sight to be seen as they are flooded with loadsss of sweet and cute gifts. The day is to cherish any kind of love. Though there are many controversies regarding this day in India as many consider it against our culture but I feel that when our culture considers love to be divine and pure then why not dedicate a day to celebrate it. Its not that love which is something as deep as sea be cuckooned in a small shell but when everyone's life is so busy, I do think that this day is a perfect way to express and celebrate love. (Student in Media studies at Patna University)

नक्‍सलवाद पर नकेल जरूरी

सरोज तिवारी नक्‍सलवाद आज हमारे देश में न केवल राजनीतिक बहस का मुद्दा बन गया है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक, सांस्‍कृतिक व प्रशासनिक क्षेत्रों को भी प्रभावित कर रहा है. इन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्‍यकता है. एक ओर हम तीव्र आर्थिक विकास के लिए कदम बढ़ा रहे हैं, जो 2020 तक हमें आर्थिक शक्ति बनाने में मदद देगा, वहीं दूसरी ओर नक्‍सलवाद जैसी समस्‍या परोक्ष रूप से इसमें बाधा उत्‍पन्न कर रही है. वैसे तो देश के कई राज्‍य नक्‍सलवाद की समस्‍या से प्रभावित हैं, लेकिन इस मामले में झारखंड की स्थिति काफी खराब है. यहां नक्‍सली हिंसा का दौर अभी भी जारी है. केन्‍द्र व राज्‍य सरकार के हमेशा आश्‍वासन के बाद भी हालात में कोई सुधार नहीं हो रहा है. नक्‍सलवाद की जड़े कितनी मजबूत हैं, इसका अंदाजा गिरिडीह के पारसनाथ पहाड़ी और पीरटांड़ पर हुए हमले से लगाया जा सकता है. इस घटना में दो पुलिसकर्मी शहीद हो गये. हालांकि इस घटना में एक नक्‍सली ढेर हुआ जबकि दो गिरफ्तार भी हुए हैं. इसे भले ही पुलिस अपनी सफलता मान रही हो, लेकिन सच तो यह है कि घटना के वक्‍त पुलिस बुरी तरह से घिर गयी थी. नक्‍सलियों के डेन पारसनाथ पहाड़ी

सेलि‍ब्रिटी सपूतों से त्रस्‍त मयानगरी

पटना से प्रत्‍यूष कुमार चौबीसों घंटे जागने वाली मुंबई अचानक सुलगने लगी. एक बयान क्‍या आया मानो कुछ मुंबईभक्‍त पूरे तैश में उत्‍तर भारतीयों को खदरने में जुट गये. शुक्र था कि ये आग अंगारों में न तब्‍दील हुए.लेकिन मुंबई के यूं सुलगने की तपिश जिन लोगों ने महसूस की वे इसे लंबे समय तक नहीं भूल पायेंगे. उत्‍तर भारतीयों पर हुए लगातार हमलों के बीच सरकार और मुंबई के बुद्धिजीवियों की खामोशी ने अन्‍य गैर मराठियों को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर उनके लिए यह मायानगरी कब तक सुरक्षित है. आज माहौल में एक ही आशंका तैर रही है आज उत्‍तर भारतीय तो कर पूरा का पूरा गैर मराठी समाज. आज बिहार, झारखंड और उत्‍तर प्रदेश के लोग पिटे है. क्‍या कल अन्य गैर मराठी भी पिटते रहेंगे. ऐसा इसलिए कि मुंबई में गैर मराठियों की संख्‍या महज 18 फीसदी है. शेष भारतीय प्रतिकार की भाषा नहीं जानते, लिहाजा वे पिटते रहे. सच तो यह है कि आम मराठी जनता तो ख्‍वाब में भी किसी को पीटने-पिटाने का ख्‍याल तक नहीं लाती है. क्षेत्रवाद की सोच पर आधारित यह आग तो असल में उन लोगों ने लगायी है जो एयरकंडीशन कमरों में आरामदायक सोफे पर बैठ प्‍लाजम

रंजना ने बदली सैकड़ों की तकदीर

अभिषेक पोद्दार आदि काल से ही हमारे समाज में नारियों को दूसरे दर्जे का सम्‍मान मिलता रहता है, और यह सिलसिला आज भी लगभग जारी है पर इन्‍हीं में कुछ महिलाएं ऐसा कर देती है जिसपर गर्व करने और उसने अपना बताने से कोई नहीं चूकते. कुछ ऐसा ही किया है बिहार के पूर्णिया जिले की रहनेवाली रजंना भारती ने. जिले के जानकीनगर थाना क्षेत्र की एक सामान्‍य महिला की तपस्‍या ने इस क्षेत्र के लगभग पांच सौ से अधिक महिला व पुरूषों को रोजगार प्रदान किया है. आज इस क्षेत्र में लगभग सभी घरों में सिलाई-कटाई, खिलौना निर्माण, आचार, बडी व पशुपालन उघोग फल-फूल रहा है. कल को किसी के घर में काम करनेवाली महिलाएं आज खुद मालकिन है, हालांकि यह चमत्‍कार उन्‍होंने खुद नहीं किया इसमें उनका पूरा-पूरा सहयोग किया सरकार की स्‍वर्णजंयती स्‍वरोजगार योजना व अन्‍य योजनाओं ने लेकिन इसका ताना-बाना इसी महिला ने ही बुना. इसके लिए उसे सबसे पहले राज्‍य सरकार ने फिर राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार ने नवाजा गया. आइये अब नजर डालते है इस महिला के जीवन का अबतक के सफर पर, रजंना का अबतक का सफर भी काफी अजीबोगरीब है. दशक पूर्व यह बाला रंगकर्मियों की टोली के जरिए स

रैलियों की मारी जनता भोली भाली

कुमार विवेक/अभिषेक पोद्दार रैली यानी लोकतंत्र में भीड़ जुटाने का हथकंडा. कोई पीछे नहीं है बॉस हर कोई अपनी बघारने के लिए रैलियों का ही सहारा ले रहा है. लालू से पासवान तक, मोदी से मरांडी तक, माया से मुलायम तक सभी रैली की गंगा में नहाकर पवित्र हो रहे हैं. झारखंड में भी एक रैली हुई, परिवर्तन रैली. नेता भी जुटे. जुटते कैसे नहीं आखिर आदिवासी शेर बाबू लाल मरांडी जी की रैली . थी. भूतपूर्व मुख्‍यमंत्री की शान का सवाल था सो सारे घायल एक मंच पर जमा हो गये. कुछ को यूपीए ने घायल किया था कुछ एनडीए से घायल हुए है. मुलायम, चौटाला, अमर, नायडू सब ने बाबू लाल जी के समर्थन में जनता से अपील की. पर जाने क्‍यों मुझे ऐसा लग रहा है अरे लगा माने महसूस हुआ उनकी बातों को सुनकर कि जनसरोकारों पर तो ये कुछ बोले ही नहीं फिर इस तामझाम के साथ ऐसा संगम क्‍यों. कल तक भाजपायी मरांडी पर बिफरने वाले उनके घूर विरोधी आखिर आज उनसे गले मिलने को क्‍यों तैयार हो गये. कहीं यह सत्‍ता से दूर होने का दर्द एकसाथ बांटने वाली बात तो नहीं. वहीं तीसरे मोर्चे के अन्‍य नेता जो इसमें शामिल हुए और जिन्‍हें यह भी नहीं मालूम होगा कि झारखंड राज्

गेट वेल सून मिस्‍टर ठाकरे

मिस्‍टर ठाकरे आप अपनी बयानबाजी से लोगों को तोड़ने की कोशिश न करें तो शायद आपका राजनीतिक भविष्‍य और अच्‍छा हो सकता है. जिन मुद्दों को लेकर फिलहाल आप विवाद में हैं वे क्षणिक लोकप्रियता तो दे सकते हैं, पर इन तरीकों से आप जनसमर्थन कभी भी हासिल नहीं कर सकते. ईश्‍वर आपको और आपके गुर्गों को जल्‍द से जल्‍द विवेक दे यही हमारी कामना है.

रैली से परिवर्तन का सपना

सचिन गुप्‍ता कांग्रेसी अल्‍टीमेटम के ड्रामे के बाद अब बारी बाबू शो की है. भय, भूख और भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई का नारा देकर झाविमो का गठन करने वाले श्री बाबू लाल मरांडी को वैसे तो सूबे के विकास पुरुष के रूप में जाना जाता है. लेकिन इस रैली के मायने जनहित में कम व्‍यक्तिगत ज्‍यादा लगते हैं. परिवर्तन रैली के बहाने पहली बार श्री मरांडी अपनी ताकत का प्रदर्शन भी करना चाहते हैं और यह भी जताना चाहते हैं कि भले बीजेपी उन्‍होंने छोड़ दी है लेकिन उनकी छवि अब भी उस कद्दावर नेता की है जिसके बिना प्रदेश का कामकाज नहीं चलने वाला. या यूं कहना ज्‍यादा उचित होगा कि वे साफ तौर पर जता देना चाहते हैं कि झारखंड में सरकार की बागडोर थामने वाला उनसे बेहतर विकल्‍प अब भी किसी पार्टी के पास नहीं है. भले उन्‍होंने भाजपा के बागी विधायकों का हाथ थामा हो लेकिन कहीं न कहीं उनकी रैली बिहार में लालू की चेतावनी रैली और पासवान की रैली से प्रेरित लगती है. इसके पीछे के कारण भी स्‍पष्‍ट हैं कि जिस प्रकार कुशासन और कानून व्‍यवस्‍था के खिलाफ लालू ने बिहार में अपनी ताकत का अहसास कराना चाहा और यह बताना चाहा कि सत्‍ता चली गयी तो

... कब तक झेलते रहेंगे हम बिहारी व झारखंडी का दंश

सरोज तिवारी आखिर कब तक बिहार व झारखंड के लोग बिहारी व झारखंडी होने का दंश झेलते रहेंगे. उन्‍हें बिहारी व झारखंडी (बाहरी) कह कर तिरस्‍कृत किया जाता रहेगा. उनके साथ मारपीट की जाती रहेगी. कब तक हम अपने ही देश में बाहरी होने का दंश झेलते रहेंगे. कुछ दिन पहले महाराष्‍ट्र नव निर्माण पार्टी के अध्‍यक्ष राज ठाकरे ने छठ पर्व को बकवास और एक नाटक बताया था और इसे इतना महत्‍व नहीं देने की बात कही थी. इस मामले ने अब काफी तूल पकड़ लिया है. जब राज ठाकरे के बयान का विरोध जगह-जगह होने लगा तो उनके समर्थक बिहारियों और झारखंडियों की पिटाई करने पर उतारू हो गये. इसी का परिणाम है मुंबई का वर्तमान परिदृश्‍य. मुंबई में बिहारियों और झारखंडियों को जिस तरह से दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया, वह शर्मनाक है. राज ठाकरे के समर्थकों की यह दादागिरी मुंबई के कई हिस्‍सों में देखने को मिली. सबसे शर्मनाक बात यह है कि यह दादागिरी मुंबई के कई हिस्‍सों में देखने को मिली. हद तो तब हो गयी जब राज ठाकरे छठ पर्व पर दिये बयान के बाद देश के महानायक अमिताभ बच्‍चन और जया बच्‍चन के खिलाफ भी बोलना शुरू कर दिया. उन्‍हें लग रहा है कि बिहार, उत्‍तर

कब तक लूटती रहेगी नारी

संदर्भ - आदिवासी युवती के साथ दुष्‍कर्म सरोज तिवारी नारी सर्वत्र् पूज्‍यते यानी नारी की सभी जगह पूजा होती है. भारत उसे देवी की संज्ञा दी गयी है. इसके बाद भी हमारे देश में, राज्‍य में, शहर में और गांवो में नारी शो‍षित व पीडित हैं. आज तो नारी सर्वत्र लूटती नजर आ रही है. ऐसी बात नहीं है कि आज के पहले नारी नहीं लूटी व शोषित हुई हो, सबसे शर्म की बात तो यह है कि हर बार नारी शोषित व सुर्खियां बनती है. इसके बाद भी हमारे समाज के लोगों की नींद नहीं खुलती है. खुलेगी भी कैसे. नारियों का शोषण भी तो हमारे समाज के लोगों में से ही किसी द्वारा होता है. इसके बाद शुरू होता है नाम कमाने की वकालत, छूटभैये नेता से लेकर सामाजिक संगठनों के लोग इसके खिलाफ प्रदर्शन करते है. नेताओं द्वारा वोट लेने के लिए इस मामले को विधानसभा में भी उठाया जाता है. हर बार की तरह इस बार भी जांच और कार्रवाई का अश्‍वासन मिल जाता है. इसके बाद यह अध्‍याय समाप्‍त हो जाता है. इस बार भी यही हुआ. इस बार इस घटना की शिकार नाम कमाने की चाहत लेकर दिल्‍ली गयी और फिर दिल्‍ली से अपने गांव लौट रही एक युवती हुई है. उसके साथ रांची में पिठोरिया से ले

झारखंड में तेजी से दौड रही है मौत

अभिषेक पोद्दार झारखंडवासी सावधान हो जायें. क्‍योंकि मौत का चक्‍का आप के पास से गुजर रहा है. जी हां कुछ ऐसे ही चौंकाने वाले हालात बयान कर रहे हैं एड्स पर प्राप्‍त ताजातरीन आंकडे. इससे स्‍पष्‍ट होता हे कि झारखंड में एचआईवी एड्स के रोगियों में आश्‍चर्यजनक ढंग से बढ रही है. एचसीओ नामक गैर सरकारी संगठन द्वारा इस संबंध में जो ताजा रिपोर्ट पेश की गई है उसमें एचआईवी पोजि‍टिव रोगियों की संख्‍या पहले के अपेक्षा काफी अधिक हो गई है. पिछले वर्ष यह आकडा 3865 के आसपास था जो इस वर्ष 5126 के करीब पहुंच गया है. वहीं अब तक 192 लोग इससे काल के गाल में समा चुके हैं. रिपोर्ट में इस बात का उल्‍लेख किया गया है कि इस जानलेवा बिमारी की चपेट में आकर मौत का शिकार बनने वाले लोगों में ज्‍यादातर वे हैं जो रोजगार की तलाश में दूसरे राज्‍यों और विशेषकर दिल्‍ली, मुंबई, लुधियाना आदि शहरों का भ्रमण करते हैं. वहां आसानी से वे सेक्‍स वर्कर्स की ओर आकर्षित हो जाते हैं और इस गंभीर बिमारी को गले लगा अपने राज्‍य की सीमा में ले आते हैं. रिपोर्ट में यह बात भी उभर कर सामने आई है कि इस रोग के शिकार संपन्‍न वर्ग के लोग भी हैं, हाला

ये इंडिया का क्रिकेट है बीरू...

सरोज तिवारी मौका था भारत- आस्‍ट्रेलिया के साथ ट्रवेंटी-20 का. स्‍थाना फिरायालाल चौक. वहां एक दुकान में जमी थी युवाओं की भीड. सभी क्रिकेट मैच देखने की तैयारी में थे. वे दोपहर दो बजे से ही टेलीविजन के सामने कुर्सी लगाकर बैठ गये थे. भारत टॉस जीतकर पहले बल्‍लेबाजी करने का निर्णय लिया. भारत बल्‍लेबाजी के लिए उतरा. कयास लगाये जा रहे थे कि यह मैच काफी रोमांचक होगा. ओपनिंग के लिए गंभीर व सहवाग उतरे. पहले ही ओवर में सहवाग शून्‍य पर क्‍लार्क की गेंद पर रन आउट हो गये. इससे क्रिकेटप्रेमियों को काफी निराशा हुई. इसके बाद भी युवाओं की टोली दिल थाम कर बैठी थी, लेकिन अगले ही ओवर में गौतम गंभीर भी नौ रन बनाकर ब्रेकन की गेंद पर हुप्‍स को कैच थमा दिया. इसके बाद मैच देख रहे युवाओं की टोली में से एक ने कहा कि लागत हउ अब इ मैचवा भारत हार जइतौ. अब इ मैच में टेस्‍ट मैच जइसा बोलेला नइ मिलतो कि अंपायर सबन मिल कर गलत आउट दे देले हउ. इ मैच में तो सब प्‍लेयर अपने से आउट रइले हउ. अब टेस्‍ट मैच वाला कोई बात नहीं रइले हउ. इसके बाद भी किसी तरह लोग बैठे रहे और क्रिकेट मैच देखते रहे. क्‍योंकि सभी को मालूम था कि यह इंडिया

आदिवासियों का धर्म

साभारः वनबन्‍धु (असम के पूर्व राज्‍यपाल के सलाहकार श्री पी.एन. लूथरा द्वारा लिखित यह आलेख वनबन्‍धु के सितंबर-अक्‍टूबर, 1981 अंक में प्रकाशित हुआ था. यह आलेख आदिवासी और धर्म के प्रति उनकी निष्‍ठा से संबंधित हमें कई महत्‍वपूर्ण जानकारी उपलब्‍ध कराता है. आईये जानते हैं कि धर्म को किस रूप में लेता है हमारा आदिवासी समाज) चिरकाल से यह मान्‍यता रही है कि धर्म की उत्‍पत्ति सभ्‍यता से हुई है और तथा‍कथित आदिम जातियों का कोई धर्म न था. यह धारणा तब तक बनी रही, जब ई.बी. टेलर ने वनवासी समाजों के धर्मों के संबंध में अनुसंधान करके उसे गलत सिद्ध नहीं किया. प्राचीन मानव का धर्म केवल यही था कि वह अलौकिक या दैवी शक्तियों में विश्‍वास करता था. वह दो प्रकार के दैवी जीव मानता था - सौम्‍य और क्रूर. सौम्‍य देवताओं के लिए वह कृतज्ञता प्रकट करता था और क्रूर देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के पूजा-पाठ और अनुष्‍ठान करता था. वनवासी सामाजों के धर्म की चार विशेषतायें हैं. पहली विशेषता उनके नैतिक व्‍यवहार की है. वनवासी अपनी जाति से बाहर किसी के लिए नैतिक दायित्‍व की भावना नहीं रखते. दैवी शक्तियों से वे इस प्र