Skip to main content

रैलियों की मारी जनता भोली भाली

कुमार विवेक/अभिषेक पोद्दार
रैली यानी लोकतंत्र में भीड़ जुटाने का हथकंडा. कोई पीछे नहीं है बॉस हर कोई अपनी बघारने के लिए रैलियों का ही सहारा ले रहा है. लालू से पासवान तक, मोदी से मरांडी तक, माया से मुलायम तक सभी रैली की गंगा में नहाकर पवित्र हो रहे हैं. झारखंड में भी एक रैली हुई, परिवर्तन रैली. नेता भी जुटे. जुटते कैसे नहीं आखिर आदिवासी शेर बाबू लाल मरांडी जी की रैली . थी. भूतपूर्व मुख्‍यमंत्री की शान का सवाल था सो सारे घायल एक मंच पर जमा हो गये. कुछ को यूपीए ने घायल किया था कुछ एनडीए से घायल हुए है. मुलायम, चौटाला, अमर, नायडू सब ने बाबू लाल जी के समर्थन में जनता से अपील की. पर जाने क्‍यों मुझे ऐसा लग रहा है अरे लगा माने महसूस हुआ उनकी बातों को सुनकर कि जनसरोकारों पर तो ये कुछ बोले ही नहीं फिर इस तामझाम के साथ ऐसा संगम क्‍यों. कल तक भाजपायी मरांडी पर बिफरने वाले उनके घूर विरोधी आखिर आज उनसे गले मिलने को क्‍यों तैयार हो गये. कहीं यह सत्‍ता से दूर होने का दर्द एकसाथ बांटने वाली बात तो नहीं. वहीं तीसरे मोर्चे के अन्‍य नेता जो इसमें शामिल हुए और जिन्‍हें यह भी नहीं मालूम होगा कि झारखंड राज्‍य की मूलभूत समस्‍याएं क्‍या है वह भी यह कहने से नहीं चूके कि राज्‍य का भला बाबूलाल मरांडी के हाथों ही हो सकता है. और यह कैसे हो सकता है इनका जवाब शायद उनके पास न था. एक तरफ जहां नेताओं की लंबी फेहरिस्‍त थी वहीं जनता भी लाखों की संख्‍या में जुटी जिसमें शायद आधी जनता को यह भी नहीं मालूम होगा कि मंच पर कौन कौन नेता थे और वह किस पार्टी के तारणहार है. उन्‍हें अगर कुछ मालूम था तो बस इतना कि रैली के दिन हमें गाडी से आने जाने का सौभाग्‍य मिलेगा, हम बिना खर्च के रांची घूम लेंगे, एक दिन का खाना फ्री में मिल जायेगा और एक बात जो सबसे महत्‍वपूर्ण है कि हमें बिना कुछ मेहनत किये 100-200 रूपये भी मिल जायेंगे और हम सब जानते हैं कि भारत में बेरोजगारों की कोई कमी नहीं तो भीड जुटाने की टेंशन किसी को तो थी ही नहीं, सो रैली सफल रही. मरांडी जी ने मंच से कहा कि रैली झारखंड के लोगों में विश्‍वास पैदा करेगी पर जनाब यह बताना भूल गये कि विश्‍वास तो झारखंड बनने के समय भी पैदा हुई थी पर उस विश्‍वास को उन्‍होंने या उनके सहयोगियों ने ही चकनाचूर किया. साथ ही वह यह कहना भी नहीं भूले कि यह रैली उस जनता की है जो राज्‍य की सरकार से त्रस्‍त है, जिन्‍हें न्‍याय नहीं मिल रहा और जिन्‍हें इस सरकार के कारण्‍ा अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में भी काफी कष्‍ट उठाना पड रहा है, चलिए एक बार तो यह बात मान लेते हैं कि उनका कहना सही है पर बाबूलाल महोदय ने यह नहीं जानने की कोशिश की उनकी इस रैली के कारण रांची की जनता को कितना कष्‍ट हुआ. जिन बच्‍चों को स्‍कूल से दोपहर तीन बजे घर पहुंच जाना चाहिए था वे बच्‍चे रात के 9 बजे तक सडकों में ही फंसे रहे. उनकी इस रैली के कारण आधे से अधिक आदमी जो कहीं काम करते हैं अपने गंतव्‍य स्‍थान तक नहीं पहुंच सके, उनकी एक दिन की कमाई खत्‍म हो गई. हद तो तब हो गई जब रैली के चक्‍कर में छह लोगों ने अपनी जान ही गंवा दी. हूआ यूं कि रैली से लौटते हुए आपाधापी के चक्‍कर में उन्‍होंने अपनी जीप ही पलट दी और हो गया उनके जीवन का परिवर्तन पृथ्‍वी लोक से यमलोक में. अब बाबूलाल मरांडी जी ही जाने कि वह राज्‍य में परिवर्तन की लकीर क्‍या इसी तरह से खीचंना चाहते हैं अगर हां तो हमारी सहानुभूति उनके साथ है. खैर जो हुआ सो हुआ पर रैली का लाइव टेलीकास्‍ट देखने के बाद किसी समझदार व्‍यक्ति ने यह तो कतई महसूस नहीं किया कि यह परिवर्तन रैली झारखंड के आम आदमी के लिए जो बेरोजगारी, भुखमरी व उग्रवाद जैसी समस्‍याओं से जूझ रहा है, उनके लिए कोई परिवर्तन ला पायेगा. एक रैली पटना के गांधी मैदान में भी हुई यहां बारी थी बहन मायावती की. यह रैली इस मायने में दिलचस्‍प रही कि पूरी रैली के दौरान केवल माया बोली और बाकी सब केवल सुनते ही रह गये और बहनजी बोली भी तो जनसरोकारों को बिल्‍कुल भूल ही गई. बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की बात तो वह न भूली पर यह भूल गई कि बिहार में एक नहीं असंख्‍य समस्‍याएं हैं बाढ के कारण किसानों के बीच भुखमरी है तो सडकें ऐसी है कि साइकिल चलाने वाले भी उतर कर चलना पंसद करते हैं. वहीं अपराध की तो अपनी लीला है ही. पर माया मैडम को इनसे क्‍या लेना था उन्‍हें तो बस चिंता थी कांग्रेस से अपने जान पर खतरे की, सो उन्‍होंने बिहारियों से वादा ले लिया कि अगर कांग्रेस उनपर कोई हमला करें तो बिहारी उसका बदला लें. पता नहीं क्‍यों इस बदले के लिए उन्‍होंने अपने यूपी जहां की वह मुख्‍यमंत्री हैं की जनता को नहीं चुना, शायद उन्‍हें उनपर भरोसा नहीं है कि एक साल में ही वहां के लोग उन्‍हें अच्‍छी तरह पहचान चुके हैं तो कुलमिलाकर हम यह कह सकते हैं कि यह राजनीतिक रैलियां नेताओं के लिए सिर्फ अपना शिगुफा छोडने के लिए हैं तो आम आदमी के लिए टाइम पास. कुछ लोग जो इन रैलियों को सीरियसली ले लेते हैं वे भोले-भाले लोग केवल पछताते हैं और अंत में हारकर नेताओं को गालियां ही देते हैं.

Comments

Popular posts from this blog

हमसे कुछ नहीं होगा हम गुलाम पत्रकार हैं

अभिषेक पोद्दार हमेशा की तरह कल रात अपने अखबार के कार्यालय से काम निपटाकर अपने घर गया, जहां हम सभी रूममेट बैठकर रोज की तरह किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे, अचानक मैंने अपने एक साथी से पूछा यार फ्रीलांस रिपोर्टर को हिंदी में क्‍या कहेंगे उसने कहां स्‍वतंत्र पत्रकार, तभी तपाक से मेरे मुंह से निकल गया तो हम गुलाम पत्रकार हैं. उसने भी भरे मन से हामी भर दी. फिर क्‍या था हमसब इसी मुद्दे पर चर्चा करने लगे. दो दिनों पहले बोलहल्‍ला पर पत्रकारिता के बारे में मैंने जो भडास निकाली थी उसका कारण समझ में आने लगा. आज हकीकत तो यह है कि हम जिस मीडिया घराने से जुड जाते हैं उसके लिए एक गुलाम की भांति काम करने लगते हैं, हम अपनी सोच, अपने विचार और अपनी जिम्‍मेवारियों को उस मीडिया घराने के पास गिरवी रख देते हैं और सामने वाला व्‍यक्ति हमें रोबोट की तरह इस्‍तेमाल करने लगता है, हम उसकी धुन पर कठपुतलियों की तरह नाचना शुरू कर देते हैं. किसी को जलकर मरते देखकर हमारा दिल नहीं पसीजता, किसी की समस्‍याओं में हमें अपनी टॉप स्‍टोरी व ब्रे‍किंग न्‍यूज नजर आती है, सच कहें तो शायद हमारी संवेदना ही मर चुकी हैं. शायद आज पूरी की...

एनडीए के साथ जाना नीतीश का सकारात्मक फैसला : श्वेता सिंह (एंकर, आजतक )

Shweta during coverage बिहार की वर्तमान राजनिति पर नयी नज़र के साथ जानी-मानी आजतक पत्रकार बिहारी श्वेता सिंह से   खास बातचीत  पटना : बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा देने के बाद गुरुवार को सुबह दोबारा एनडीए के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर लिया. इस बीच राजधानी पटना में राजनैतिक चर्चाओं का बाजार उफान पर रहा. गुरुवार को अहले सुबह से ही तमाम मीडियाकर्मी राजभवन के बाहर शपथ ग्रहण को कवरेज करने के लिए मौजूद थे. इस इवेंट को कवरेज करने के लिए आजतक टीवी की जानी-मानी पत्रकार श्वेता सिंह भी विशेष रूप से पटना पहुंची थीं. श्वेता स्वयं एक  बिहारी हैं और बिहार के वैशाली जिले के महुआ से आतीं हैं. श्वेता लोगों से इस राजनैतिक घमासा न पर जमकर सवाल पूछतीं नज़र आईं. इस दौरान नयी नज़र के ब्लॉगर कुमार विवेक ने बिहार के बदलते घटनाक्रम पर श्वेता सिंह से बातचीत की, इसके मुख्य अंश हम आपसे साझा कर रहे है. ___ सवाल : श्वेता, देश की जानी-मानी पत्रकार होने के नाते बिहार के इस वर्त्तमान राजनैतिक घटनाक्रम को किस रूप में देखती हैं? जवाब : देखिये, एक पत्रका...

शादी के लिए किया गया 209 पुरुषों को अगवा

शायद यह सुनकर आपको यकीन न हो लेकिन यह सच है। ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले साल जबर्दस्ती विवाह कराने के लिए 209 पुरुषों को अगवा किया गया। इनम 3 पुरुष ऐसे भी हैं जिनकी उम्र 50 साल से अधिक थी जबकि 2 की उम्र दस साल से भी कम थी। नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी 'भारत में अपराध 2007' रिपोर्ट के अनुसार, मजे की बात है कि बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है जहां महिलाओं की तुलना में पुरुषों की अधिक किडनैपिंग होती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में 1268 पुरुषों की किडनैपिंग की गई थी जबकि महिलाओं की संख्या इस आंकड़े से 6 कम थी। अपहरण के 27, 561 मामलों में से 12, 856 मामले विवाह से संबंधित थे। महिलाओं की किडनैपिंग के पीछे सबसे बड़ा कारण विवाह है। महिलाओं के कुल 20,690 मामलों में से 12,655 किडनैपिंग शादी के लिए हुई थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि किडनैप की गईं लड़कियों अधिकाधिक की उम्र 18 से 30 साल के बीच थी। साभार नवभारत टाइम्‍स