सचिन गुप्ता
बुधवार को राज ठाकरे की गिरफ्तारी और उसके बाद तीन घंटे में रिहाई ने भारतीय राजनीति को झकझोरकर रख दिया. देश को क्षेत्रवाद की राजनीति में बांटने के बयान देकर महाराष्ट्र में जो हालात बने, हिंसा का दौर चला, उत्तर पूर्वी भारतीयों को खदेडा गया उसने बदलती राजनीति और निजी स्वार्थों की ऐसी तसवीर पेश की जिसे देश की अखंडता के लिए खतरे का संकेत माना जा सकता है. सबसे गौर करने वाला पहलू यह रहा कि जिस प्रदेश में लोगों को सरे आम पीटा गया, उन्हें दौडाया गया, उनके सामान व वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया इतना सब होने के बाद भी राज्य सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी. तीन दिनों तक कोई कार्रवाई नहीं, पुलिस में शिकायत करने पर खाकी पहने हुक्ममरानों ने जान बचाकर घर भाग जाने की हिदायतें तक दे दीं. सभ्य, सहभागिता और विकसित होने का दंभ भरने वाले मराठियों ने ये खेल किस बिनाह पर खेला यह सवाल इतिहास बार-बार दोहरायेगा. मनसे तो योजनापूर्ण ढंग से राजनीति कर रही थी, जिसमें वह पूर्णत सफल रहे हैं. कुछ दशक पहले कुछ इसी प्रकार का राग शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ने भी अलापा था जिसके बाद महाराष्ट्र से दक्षिण भारतीयों को खदेड़ा गया. देश को तोड़ने वाले बयान लगातार सुनने को मिल रहे हैं. कभी दिल्ली की मुख्यमंत्री उत्तर-पूर्वी भारतीयों के खिलाफ मुखर हो जाती हैं, तो कभी पंजाब, राजस्थान से ऐसे ही बयान आते हैं. देश की अखंडता को प्रभावित करने वाले यह भूल जाते हैं कि देश के संविधान ने उन्हें बराबरी का दर्जा दिया है. अगर किसी को भी किसी जगह से हटने को कहा जाता है तो पहले वे संविधान में झांकें और उसे बदल दें उसके बाद खुद को क्योंकि गाहे बगाहे उन्होंने इन राज्यों से सीखा जरूर हैं मराठी हों या दिल्लीवासी सभी राजेन्द्र प्रसाद जयप्रकाश नारायण, जगजीवनराम, राममनोहर लोहिया आदि को आदर्श मानते हैं. जरूरी है इन आदर्श पुरुषों को अपने जेहन देश और इतिहास से अलग करें तभी पूवोत्तर के लोगों को महाराष्ट्र से अलग करने की सोंचे. महाराष्ट्र की राजनीति में कमजोर स्थिति से राज ठाकरे की हिम्मत जब जवाब देने लगी तो उन्होंने मराठी मानुष का नया शिगूफा रच डाला और बयानबाजी का ऐसा तीर छोङा जिसने बाहर से काम-धंधे के लिए महाराष्ट्र गये लोगों में भाईचारे को खत्म कर दिया. वैसे गौरतलब है कि करीब मुट्ठी भर लोगों ने उत्पात मचाया और मीडिया ने इस आग में घी डाल दिया. इस मुददे को ऐसे उछाला मानो देश में विभाजन की आंधी आ गयी. इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने अपने निजी फायदे के लिए गैर जिम्मेदाराना तसवीर पेश कर दी. इसके बाद शुरू हुआ असली ड्रामा पहले राज ने लफ्फाजी की उन्हें सफलता मिलते देख उद्धव ठाकरे भी उतर पड़ और फिर सपा के आजमी ने बचाव वाली राजनीति में हाथ सेंकने में देर नहीं लगायी. राज पर एफआईआर दर्ज हुई, उन्हें गिरफ्तार करने की प्रक्रिया शुरू हुई जो चौबीस घंटे तक चली. अर्ध सैनिक बल की और टुकङिया तैनात हुईं, वे गिरफ्तार भी हुए और तीन घंटे में जमानत पर रिहा होकर राज ठाकरे बन गये पक्के लोकप्रिय राजनीतिज्ञ. इतने कम समय में उन्होंने जो लोकप्रियता बटोरी है वैसी तो हिटलर को भी बटोरने में दो दशक लग गये. फर्क सिर्फ इतना है. हिटलर ने हथियार का प्रयोग किया वहीं राज ने जुबान का.
बुधवार को राज ठाकरे की गिरफ्तारी और उसके बाद तीन घंटे में रिहाई ने भारतीय राजनीति को झकझोरकर रख दिया. देश को क्षेत्रवाद की राजनीति में बांटने के बयान देकर महाराष्ट्र में जो हालात बने, हिंसा का दौर चला, उत्तर पूर्वी भारतीयों को खदेडा गया उसने बदलती राजनीति और निजी स्वार्थों की ऐसी तसवीर पेश की जिसे देश की अखंडता के लिए खतरे का संकेत माना जा सकता है. सबसे गौर करने वाला पहलू यह रहा कि जिस प्रदेश में लोगों को सरे आम पीटा गया, उन्हें दौडाया गया, उनके सामान व वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया इतना सब होने के बाद भी राज्य सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी. तीन दिनों तक कोई कार्रवाई नहीं, पुलिस में शिकायत करने पर खाकी पहने हुक्ममरानों ने जान बचाकर घर भाग जाने की हिदायतें तक दे दीं. सभ्य, सहभागिता और विकसित होने का दंभ भरने वाले मराठियों ने ये खेल किस बिनाह पर खेला यह सवाल इतिहास बार-बार दोहरायेगा. मनसे तो योजनापूर्ण ढंग से राजनीति कर रही थी, जिसमें वह पूर्णत सफल रहे हैं. कुछ दशक पहले कुछ इसी प्रकार का राग शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ने भी अलापा था जिसके बाद महाराष्ट्र से दक्षिण भारतीयों को खदेड़ा गया. देश को तोड़ने वाले बयान लगातार सुनने को मिल रहे हैं. कभी दिल्ली की मुख्यमंत्री उत्तर-पूर्वी भारतीयों के खिलाफ मुखर हो जाती हैं, तो कभी पंजाब, राजस्थान से ऐसे ही बयान आते हैं. देश की अखंडता को प्रभावित करने वाले यह भूल जाते हैं कि देश के संविधान ने उन्हें बराबरी का दर्जा दिया है. अगर किसी को भी किसी जगह से हटने को कहा जाता है तो पहले वे संविधान में झांकें और उसे बदल दें उसके बाद खुद को क्योंकि गाहे बगाहे उन्होंने इन राज्यों से सीखा जरूर हैं मराठी हों या दिल्लीवासी सभी राजेन्द्र प्रसाद जयप्रकाश नारायण, जगजीवनराम, राममनोहर लोहिया आदि को आदर्श मानते हैं. जरूरी है इन आदर्श पुरुषों को अपने जेहन देश और इतिहास से अलग करें तभी पूवोत्तर के लोगों को महाराष्ट्र से अलग करने की सोंचे. महाराष्ट्र की राजनीति में कमजोर स्थिति से राज ठाकरे की हिम्मत जब जवाब देने लगी तो उन्होंने मराठी मानुष का नया शिगूफा रच डाला और बयानबाजी का ऐसा तीर छोङा जिसने बाहर से काम-धंधे के लिए महाराष्ट्र गये लोगों में भाईचारे को खत्म कर दिया. वैसे गौरतलब है कि करीब मुट्ठी भर लोगों ने उत्पात मचाया और मीडिया ने इस आग में घी डाल दिया. इस मुददे को ऐसे उछाला मानो देश में विभाजन की आंधी आ गयी. इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने अपने निजी फायदे के लिए गैर जिम्मेदाराना तसवीर पेश कर दी. इसके बाद शुरू हुआ असली ड्रामा पहले राज ने लफ्फाजी की उन्हें सफलता मिलते देख उद्धव ठाकरे भी उतर पड़ और फिर सपा के आजमी ने बचाव वाली राजनीति में हाथ सेंकने में देर नहीं लगायी. राज पर एफआईआर दर्ज हुई, उन्हें गिरफ्तार करने की प्रक्रिया शुरू हुई जो चौबीस घंटे तक चली. अर्ध सैनिक बल की और टुकङिया तैनात हुईं, वे गिरफ्तार भी हुए और तीन घंटे में जमानत पर रिहा होकर राज ठाकरे बन गये पक्के लोकप्रिय राजनीतिज्ञ. इतने कम समय में उन्होंने जो लोकप्रियता बटोरी है वैसी तो हिटलर को भी बटोरने में दो दशक लग गये. फर्क सिर्फ इतना है. हिटलर ने हथियार का प्रयोग किया वहीं राज ने जुबान का.
Comments