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विधानसभा या सब्‍जी मंडी

कुमार विवेक
झारखंड विधानसभा की बजट सत्र शुरू हो रही थी. स्‍पीकर आलमगीर आलम ने सदस्‍यों को बताया कि राज्‍यपाल बस कुछ ही पलों में सदन को संबोधित करने आयेंगे, और शुरू हो गया विपक्षियों का हंगामा. उन्‍होंने राज्‍यपाल के सदन को संबेधित करने के औचित्‍य पर ही सवाल खड़ा कर दिया. शुरू हो गया आरोप-प्रत्‍यारोपों का दौर. स्‍पीकर महोदय शांति की अपील करते रहे पर उनकी सुननेवाला था कौन. खैर जैसे तैसे महामहिम जी ने अपना अभिभाषण शुरू किया सरकार के कार्यों पर चर्चा करनी जैसे ही उन्‍होंने शुरू की विपक्षियों को यह नागवार गुजरा और वे उनके समांनांतर गिनाने लगे सरकार की खामियां. महामहिम बोलते रहे और सदस्‍य उनके अभिभाषण की सुनना तो दूर उसकी धज्ज्यां उड़ाते नजर आये. महाममहिम के भाषण को कुछ सदस्‍यों ने झूठ का पुलिंदा तक करार दे दिया. महामहिम के भाषण के दौरान विधानसभा में जो नजारा देखने को मिला शायद यह विश्‍व के गौरवशाली लोकतंत्र के लिए शर्मनाक हैं. सदन में कार्यवाही की जगह सब्‍जी मंडी की तरह मोल-भाव हो रहा थी. खैर यह तो कुछ भी नहीं. जिस देश में लोकतंत्र के मंदिर में जूतम-पैजार तक हो चुकी है, उस देश के नेता इसे सामान्‍य समझते हैं. वे क्‍या जाने लोकतंत्र, लोकतंत्र की गरिमा. उन्‍हें तो बस मतलब है अपनी कुर्सी से अपने मंसूबों से. पर उस जनता का क्‍या जो अपने प्रतिनिधि चुनकर सदन तक भेजती है. इस हंगामे इस जूतम पैजार से उन्‍हें क्‍या मिलता है. शायद कुछ नहीं.

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हमसे कुछ नहीं होगा हम गुलाम पत्रकार हैं

अभिषेक पोद्दार हमेशा की तरह कल रात अपने अखबार के कार्यालय से काम निपटाकर अपने घर गया, जहां हम सभी रूममेट बैठकर रोज की तरह किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे, अचानक मैंने अपने एक साथी से पूछा यार फ्रीलांस रिपोर्टर को हिंदी में क्‍या कहेंगे उसने कहां स्‍वतंत्र पत्रकार, तभी तपाक से मेरे मुंह से निकल गया तो हम गुलाम पत्रकार हैं. उसने भी भरे मन से हामी भर दी. फिर क्‍या था हमसब इसी मुद्दे पर चर्चा करने लगे. दो दिनों पहले बोलहल्‍ला पर पत्रकारिता के बारे में मैंने जो भडास निकाली थी उसका कारण समझ में आने लगा. आज हकीकत तो यह है कि हम जिस मीडिया घराने से जुड जाते हैं उसके लिए एक गुलाम की भांति काम करने लगते हैं, हम अपनी सोच, अपने विचार और अपनी जिम्‍मेवारियों को उस मीडिया घराने के पास गिरवी रख देते हैं और सामने वाला व्‍यक्ति हमें रोबोट की तरह इस्‍तेमाल करने लगता है, हम उसकी धुन पर कठपुतलियों की तरह नाचना शुरू कर देते हैं. किसी को जलकर मरते देखकर हमारा दिल नहीं पसीजता, किसी की समस्‍याओं में हमें अपनी टॉप स्‍टोरी व ब्रे‍किंग न्‍यूज नजर आती है, सच कहें तो शायद हमारी संवेदना ही मर चुकी हैं. शायद आज पूरी की...

एनडीए के साथ जाना नीतीश का सकारात्मक फैसला : श्वेता सिंह (एंकर, आजतक )

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