अभिषेक पोद्दार
आदि काल से ही हमारे समाज में नारियों को दूसरे दर्जे का सम्मान मिलता रहता है, और यह सिलसिला आज भी लगभग जारी है पर इन्हीं में कुछ महिलाएं ऐसा कर देती है जिसपर गर्व करने और उसने अपना बताने से कोई नहीं चूकते. कुछ ऐसा ही किया है बिहार के पूर्णिया जिले की रहनेवाली रजंना भारती ने. जिले के जानकीनगर थाना क्षेत्र की एक सामान्य महिला की तपस्या ने इस क्षेत्र के लगभग पांच सौ से अधिक महिला व पुरूषों को रोजगार प्रदान किया है. आज इस क्षेत्र में लगभग सभी घरों में सिलाई-कटाई, खिलौना निर्माण, आचार, बडी व पशुपालन उघोग फल-फूल रहा है. कल को किसी के घर में काम करनेवाली महिलाएं आज खुद मालकिन है, हालांकि यह चमत्कार उन्होंने खुद नहीं किया इसमें उनका पूरा-पूरा सहयोग किया सरकार की स्वर्णजंयती स्वरोजगार योजना व अन्य योजनाओं ने लेकिन इसका ताना-बाना इसी महिला ने ही बुना. इसके लिए उसे सबसे पहले राज्य सरकार ने फिर राष्ट्रीय पुरस्कार ने नवाजा गया. आइये अब नजर डालते है इस महिला के जीवन का अबतक के सफर पर, रजंना का अबतक का सफर भी काफी अजीबोगरीब है. दशक पूर्व यह बाला रंगकर्मियों की टोली के जरिए सांस्क़तिक चेतना जगाती रही है, जिससे यह शुरू से ही इस क्षेत्र में अच्छी खासी पहचान बना ली थी. इसी क्रम मे वर्ष वर्ष 2003 में नाबार्ड के तत्कालीन डीडीएम ने भी उनसे सम्पर्क साधा और प्रगतिशील किसान क्लब के गठन की बात कही. मन में कुछ करने की जुनून में उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. इसमें वह मुख्य स्वयंसेवक बनी और प्रगतिशील किसान क्लब का गठन संभव हो गया. हालांकि उनके शर्त के मुताबिक प्रथम ग्रुप में उन्होंने केवल बीस महिलाओं को ही शामिल किया, फिर तो यह उनका एक मिशन ही हो गया. आज बनमनखी के अनुमंडल के कुल 28 में 15 पंचायत में वह ग्रूप निर्माण कर चुकी है, जिसकी संख्या दो सौ के करीब है. इसमें तकरीबन 98 ग्रूप बैंक से लिंकेज भी हो चुका है. अधिकांश द्वितीय ऋण भी प्राप्त हो चुका है. यह ग्रूप केवल कागजों पर ही नहीं जमीन पर पूर्णत: कारगर है. क्षेत्र की महिला पुरुष को इस तरफ मोड़ने के लिए न केवल उन्होंने गांव-गांव बैठक की बल्कि इसके रंगमंच का सहारा भी लिया. गांव-गांव में एसजीएसवाई पर आधारित नाटक का मंचन कर उन्होंने किसानों व आम लोगों को सरकार की गरीबी उन्मूलन की इस महत्वाकांक्षी योजना से जोड़ने का काम किया. इतना ही नहीं समूहों के उत्पाद की नियमित खपत के लिए चोपड़ा में एक ग्रामीण हाट ही लगवाया दिया, हालांकि इसमें उसे भरपूर प्रशासनिक सहयोग भी मिला. इसी तरह अति पिछड़े मधुबन गांव में लोगों की असुविधा को देखते हुए श्रमदान से एक पक्की सड़क के निर्माण का श्रेय भी रंजना को ही है. रंजना की इस खासियत के चलते नाबार्ड द्वारा वर्ष 2005 में वहां एक विशेष मेला का भी आयोजन किया गया था, जिसमें नाबार्ड के डीजीएम भी पहुंचे थे. बहरहाल महिला व पुरुषों को पंजाबी अर्थशास्त्र की यह घूंट पिलाने वाली रंजना क्षेत्रीय लोगों के लिए दीदी बन चुकी है. इतना ही नहीं नाबार्ड द्वारा राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में रंजना को प्रथम पुरस्कार भी मिल चुका है, जबकि नाबार्ड द्वारा ही राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रथम पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है.
आदि काल से ही हमारे समाज में नारियों को दूसरे दर्जे का सम्मान मिलता रहता है, और यह सिलसिला आज भी लगभग जारी है पर इन्हीं में कुछ महिलाएं ऐसा कर देती है जिसपर गर्व करने और उसने अपना बताने से कोई नहीं चूकते. कुछ ऐसा ही किया है बिहार के पूर्णिया जिले की रहनेवाली रजंना भारती ने. जिले के जानकीनगर थाना क्षेत्र की एक सामान्य महिला की तपस्या ने इस क्षेत्र के लगभग पांच सौ से अधिक महिला व पुरूषों को रोजगार प्रदान किया है. आज इस क्षेत्र में लगभग सभी घरों में सिलाई-कटाई, खिलौना निर्माण, आचार, बडी व पशुपालन उघोग फल-फूल रहा है. कल को किसी के घर में काम करनेवाली महिलाएं आज खुद मालकिन है, हालांकि यह चमत्कार उन्होंने खुद नहीं किया इसमें उनका पूरा-पूरा सहयोग किया सरकार की स्वर्णजंयती स्वरोजगार योजना व अन्य योजनाओं ने लेकिन इसका ताना-बाना इसी महिला ने ही बुना. इसके लिए उसे सबसे पहले राज्य सरकार ने फिर राष्ट्रीय पुरस्कार ने नवाजा गया. आइये अब नजर डालते है इस महिला के जीवन का अबतक के सफर पर, रजंना का अबतक का सफर भी काफी अजीबोगरीब है. दशक पूर्व यह बाला रंगकर्मियों की टोली के जरिए सांस्क़तिक चेतना जगाती रही है, जिससे यह शुरू से ही इस क्षेत्र में अच्छी खासी पहचान बना ली थी. इसी क्रम मे वर्ष वर्ष 2003 में नाबार्ड के तत्कालीन डीडीएम ने भी उनसे सम्पर्क साधा और प्रगतिशील किसान क्लब के गठन की बात कही. मन में कुछ करने की जुनून में उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. इसमें वह मुख्य स्वयंसेवक बनी और प्रगतिशील किसान क्लब का गठन संभव हो गया. हालांकि उनके शर्त के मुताबिक प्रथम ग्रुप में उन्होंने केवल बीस महिलाओं को ही शामिल किया, फिर तो यह उनका एक मिशन ही हो गया. आज बनमनखी के अनुमंडल के कुल 28 में 15 पंचायत में वह ग्रूप निर्माण कर चुकी है, जिसकी संख्या दो सौ के करीब है. इसमें तकरीबन 98 ग्रूप बैंक से लिंकेज भी हो चुका है. अधिकांश द्वितीय ऋण भी प्राप्त हो चुका है. यह ग्रूप केवल कागजों पर ही नहीं जमीन पर पूर्णत: कारगर है. क्षेत्र की महिला पुरुष को इस तरफ मोड़ने के लिए न केवल उन्होंने गांव-गांव बैठक की बल्कि इसके रंगमंच का सहारा भी लिया. गांव-गांव में एसजीएसवाई पर आधारित नाटक का मंचन कर उन्होंने किसानों व आम लोगों को सरकार की गरीबी उन्मूलन की इस महत्वाकांक्षी योजना से जोड़ने का काम किया. इतना ही नहीं समूहों के उत्पाद की नियमित खपत के लिए चोपड़ा में एक ग्रामीण हाट ही लगवाया दिया, हालांकि इसमें उसे भरपूर प्रशासनिक सहयोग भी मिला. इसी तरह अति पिछड़े मधुबन गांव में लोगों की असुविधा को देखते हुए श्रमदान से एक पक्की सड़क के निर्माण का श्रेय भी रंजना को ही है. रंजना की इस खासियत के चलते नाबार्ड द्वारा वर्ष 2005 में वहां एक विशेष मेला का भी आयोजन किया गया था, जिसमें नाबार्ड के डीजीएम भी पहुंचे थे. बहरहाल महिला व पुरुषों को पंजाबी अर्थशास्त्र की यह घूंट पिलाने वाली रंजना क्षेत्रीय लोगों के लिए दीदी बन चुकी है. इतना ही नहीं नाबार्ड द्वारा राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में रंजना को प्रथम पुरस्कार भी मिल चुका है, जबकि नाबार्ड द्वारा ही राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रथम पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है.
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