पटना से प्रत्यूष कुमार
चौबीसों घंटे जागने वाली मुंबई अचानक सुलगने लगी. एक बयान क्या आया मानो कुछ मुंबईभक्त पूरे तैश में उत्तर भारतीयों को खदरने में जुट गये. शुक्र था कि ये आग अंगारों में न तब्दील हुए.लेकिन मुंबई के यूं सुलगने की तपिश जिन लोगों ने महसूस की वे इसे लंबे समय तक नहीं भूल पायेंगे. उत्तर भारतीयों पर हुए लगातार हमलों के बीच सरकार और मुंबई के बुद्धिजीवियों की खामोशी ने अन्य गैर मराठियों को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर उनके लिए यह मायानगरी कब तक सुरक्षित है. आज माहौल में एक ही आशंका तैर रही है आज उत्तर भारतीय तो कर पूरा का पूरा गैर मराठी समाज.
आज बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोग पिटे है. क्या कल अन्य गैर मराठी भी पिटते रहेंगे. ऐसा इसलिए कि मुंबई में गैर मराठियों की संख्या महज 18 फीसदी है. शेष भारतीय प्रतिकार की भाषा नहीं जानते, लिहाजा वे पिटते रहे. सच तो यह है कि आम मराठी जनता तो ख्वाब में भी किसी को पीटने-पिटाने का ख्याल तक नहीं लाती है. क्षेत्रवाद की सोच पर आधारित यह आग तो असल में उन लोगों ने लगायी है जो एयरकंडीशन कमरों में आरामदायक सोफे पर बैठ प्लाजमा टीवी पर दुनिया देखते हैं. शकीरा की हिक्व्स डोंट लाइक से इनकी सुबह शुरू होकर देर रात तक चलने वाली पेज थ्री पार्टियों में खत्म होती है.ये वो लोग हैं जो पबों, क्लबों में हजारों उड़ाते हैं. उन्हें भूख की तड़प का कतई एहसास नहीं. वे क्या जाने कि पूस की ठंडी रात में आधी रोटी खाकर, नंगे बदन फूटपाथ पर सो जाना किसे कहते हैं. दोष असल में इनका नहीं है. इनके प्लाजमा टीवी पर कभी बिहार के बाढ़-सुखाड़ से त्रस्त गांव की विभिषिका नहीं दिखती.फांसी पर झूलते किसान तो इनके लिए एलियन सरीखे हैं. इस समाज की जानी दुश्मन वो आम आदमी है जो ठेले, खोमचे व हाथ गाड़ी खींच कर कही दूर अपने परिवार का पेट भरने की मुहिम में जुटा है. वे आम लोग जो अपने घरों को असुरक्षित छोड़ इन लेट राइजरों के बंगलों की रखवाली में जी जान से जुटे हैं. और अब जरा एक नजर प्लाजमा टीवी वालों पर भी डाली जाए. नाइट क्लब से तेज बाइकों पर शराब की महंगी बोतले लेकर दूसरों की नींद हराम करने का मिशन लेकर निकले लोग. इनके दोस्तों की फेहरिस्त भी लंबी है. ये उन लोगों के लिए मसीहा हैं जो सेवन स्टार होटलों के बाहर भड़ी में लड़कियों को छेड़ने का शौक फरमाते हैं. असम में ये देश के समाजसेवी वर्ग के नुमाइंदे हैं जिनके लिए सड़क पर किसी युवती की इज्जत को तार-तार करना उतना ही आसान है, जिनती आसानी से आज ये मुंबई के हालात की बखिया उधेड़ कर देश की आबरू के चीथड़े उड़ा रहे हैं.
अब देखना यह है कि कौन लोग अपने भारतवर्ष को इन सेलिब्रिटी सपूतों से बचाने के लिए आगे आते है.
चौबीसों घंटे जागने वाली मुंबई अचानक सुलगने लगी. एक बयान क्या आया मानो कुछ मुंबईभक्त पूरे तैश में उत्तर भारतीयों को खदरने में जुट गये. शुक्र था कि ये आग अंगारों में न तब्दील हुए.लेकिन मुंबई के यूं सुलगने की तपिश जिन लोगों ने महसूस की वे इसे लंबे समय तक नहीं भूल पायेंगे. उत्तर भारतीयों पर हुए लगातार हमलों के बीच सरकार और मुंबई के बुद्धिजीवियों की खामोशी ने अन्य गैर मराठियों को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर उनके लिए यह मायानगरी कब तक सुरक्षित है. आज माहौल में एक ही आशंका तैर रही है आज उत्तर भारतीय तो कर पूरा का पूरा गैर मराठी समाज.
आज बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के लोग पिटे है. क्या कल अन्य गैर मराठी भी पिटते रहेंगे. ऐसा इसलिए कि मुंबई में गैर मराठियों की संख्या महज 18 फीसदी है. शेष भारतीय प्रतिकार की भाषा नहीं जानते, लिहाजा वे पिटते रहे. सच तो यह है कि आम मराठी जनता तो ख्वाब में भी किसी को पीटने-पिटाने का ख्याल तक नहीं लाती है. क्षेत्रवाद की सोच पर आधारित यह आग तो असल में उन लोगों ने लगायी है जो एयरकंडीशन कमरों में आरामदायक सोफे पर बैठ प्लाजमा टीवी पर दुनिया देखते हैं. शकीरा की हिक्व्स डोंट लाइक से इनकी सुबह शुरू होकर देर रात तक चलने वाली पेज थ्री पार्टियों में खत्म होती है.ये वो लोग हैं जो पबों, क्लबों में हजारों उड़ाते हैं. उन्हें भूख की तड़प का कतई एहसास नहीं. वे क्या जाने कि पूस की ठंडी रात में आधी रोटी खाकर, नंगे बदन फूटपाथ पर सो जाना किसे कहते हैं. दोष असल में इनका नहीं है. इनके प्लाजमा टीवी पर कभी बिहार के बाढ़-सुखाड़ से त्रस्त गांव की विभिषिका नहीं दिखती.फांसी पर झूलते किसान तो इनके लिए एलियन सरीखे हैं. इस समाज की जानी दुश्मन वो आम आदमी है जो ठेले, खोमचे व हाथ गाड़ी खींच कर कही दूर अपने परिवार का पेट भरने की मुहिम में जुटा है. वे आम लोग जो अपने घरों को असुरक्षित छोड़ इन लेट राइजरों के बंगलों की रखवाली में जी जान से जुटे हैं. और अब जरा एक नजर प्लाजमा टीवी वालों पर भी डाली जाए. नाइट क्लब से तेज बाइकों पर शराब की महंगी बोतले लेकर दूसरों की नींद हराम करने का मिशन लेकर निकले लोग. इनके दोस्तों की फेहरिस्त भी लंबी है. ये उन लोगों के लिए मसीहा हैं जो सेवन स्टार होटलों के बाहर भड़ी में लड़कियों को छेड़ने का शौक फरमाते हैं. असम में ये देश के समाजसेवी वर्ग के नुमाइंदे हैं जिनके लिए सड़क पर किसी युवती की इज्जत को तार-तार करना उतना ही आसान है, जिनती आसानी से आज ये मुंबई के हालात की बखिया उधेड़ कर देश की आबरू के चीथड़े उड़ा रहे हैं.
अब देखना यह है कि कौन लोग अपने भारतवर्ष को इन सेलिब्रिटी सपूतों से बचाने के लिए आगे आते है.
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thks to mr. pratyush kumar