सरोज तिवारी
रांची नगर निगम चुनाव में किये गये प्रशासनिक दावे खोखले साबित हुए. चुनाव से पहले चुनाव आयोग और प्रशासन ने चुनाव को निष्पक्ष संपन्न रकाने के कई वायदे किये थे. लेकिन बूथ लुटेरों और उपद्रवियों के आगे सभी वायदे धरे के धरे रह गये. जिस जहां मौका मिला, वहीं वोट छाप दिया. इससे एक बार फिर प्रशासन का दवा विफल साबित हुआ है. लगभग सभी इलाके में बूथ कब्जा, मारपीट, मत पत्र फाड़ने, वोटर लिस्ट में गडबड़ी व बोगस मतदान की शिकायतें मिली हैं. सबसे आश्चर्य और महत्वपूर्ण बात तो यह है कि यह सब नजारा पुलिस के सामने देखने को मिला. पुलिस मूददर्शक बनी रही. मानो उन्हें सांप सुंघ गया हो. ऐसे में तो इन पर भी सवालिया निशाना उठने लगा है. वार्ड 45 से 55 तक के मतदाताओं को मतदान करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. मतदान करने आये मतदाताओं को तो सबसे पहले अपने नाम खोजने में घंटों लगे किसी तरह नाम मिल भी गया, तो बाद में वोट देने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. इसमे महिलाएं काफी परेशानी हुई. इसी तरह का नजारा वार्ड 45 में देखने को मिला. यहां बूथ संख्या 502 व अ वब के बैलेट बाक्स में पानी डाल दिया गया. कई लोगों ने बोगस मतदान किया. वार्ड 46 में कई मतदाताओं ने शिकायत कि की यहां बोगस मतदान हुआ है. साथ ही मतदाताओं से परिचय पत्र नहीं मांगा जा रहा था. वार्ड 48 में भी बोगस मतदान की शिकायत मिली. यहां कुछ देर के लिए मतदान रुका भी, लेकिन फिर मतदान शुरू हो गया. इसी तरह की शिकायतें कई वार्डों से मिली. कई स्थानों पर मतपेटी फाड दिये गये. मतदानकर्मियों के साथ मारपीट भी की गई. प्रशासन के बावजूद सभी स्थानों पर बोगस मतदान चलता रहा. प्रशासन अपनी डयूटी में नाकाम रहा. हालांकि कुछ स्थानों पर पुलिस और उपद्रवियों के साथ झडपें हुई. जो भी हो 22 वर्षों के होनेवाले नगर निकाय चुनाव को लेकर यहां की जनता की काफी उपेक्षाएं थी. उनके अरमान थे कि हमारे क्षेत्र के प्रत्याशी हमारी समस्याएं सुनेगा और उसका समाधान करेगा. लेकिन यहां तो पहले ही दिन जीत-हार को लेकर प्रत्याशी ही आपस में ही मारपीट करने लगे. गाली-गलौज की. मतदाताओं को डांटा, डराया, धमकाया, मारपीट की और सभी हदें पार कर दी. ऐसे में आम जनता अपने प्रत्याशी के बारे में क्या सोचेंगी. जब जीत के पहले यह बानगी है, तो जीतने के बाद की क्या होगा. जीतने के बाद तो यह प्रत्याशी फिर आम जनता तो दूर वे किसी की भी नहीं सुनेंगे. ऐसे में जनता के सामने कई सवाल पैदा हो गये हैं. जनता सोच रही है कि जो भी प्रत्याशी हो, उसे तो वोट तो देनी ही है. आखिर इतने वर्षों के बाद नगर निकाय चुनाव हो रहा है. ऐसे में जनता को एक बडे आंदोलन की जरूरत जोगी.
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