लड़ाई में एक बार एक राजा का अंगूठा कट गया. उसे बड़ा सदमा लगा. उसके महामंत्री ने उसे समझाते हुए कहा की जाने दीजिये महाराज जो भी होता है अच्छे केलिए होता है. राजा को गुस्सा आ गया. उसने गुस्से में मंत्री को जेल में डाल दिया. कुछ दिनों के बाद राजा शिकार पर निकला. घने जंगले में वह अपने काफिले से भटक गया. जंगल के आदिवासियों ने उसे पकड़ लिया. आधिवासियों को अपने देवता को नरबली देने केलिए एक इंसान की जरूरत थी सो उन्होंने राजा की बलि देना निश्चित किया. जब वे राजा को बलि देने केलिए ले जा रहे थे तो उनकी नज़र राजा के कटे अंगूठे पर पड़ी. उन्होंने यह देखकर राजा को छोड़ दिया. क्योंकि किसी अंगभंग मनुष्य की बलि नहीं दी जा सकती थी. राजा को अपने मंत्री की बात याद आई. वापस लौटकर उसने मंत्री को छोड़ दिया. राजा ने रिहा होने के बाद मंत्री से पूछा की अंगूठा काटकर मेरे साथ तो अच्छा हो गया मेरी जान बच गई. पर मैंने तुमे जेल में दाल दिया, यातनाएं दी इससे तुम्हारे साथ क्या अच्छा हुआ. तब मंत्री ने कहा महाराज जेल जाने से मेरी भी जान बच गयी. राजा ने पूछा कैसे तो मंत्री ने विस्तार से बताया देखिये महाराज मैं हमेशा आपके साथ शिकार पर जाता हूँ. जब आप जंगल में भटक गए तो भी मैं आपके साथ होता. ऐसे में आपको तो अंगूठा न होने से आदिवासियों ने छोड़ दिया. पर मेरी तो बलि ही चढ़ जाती. ऐसे में जेल जाने से बची न मेरी जान महाराज. इसलिए मैं कहता हूँ जो होता है अच्छे केलिए ही होता है.
अभिषेक पोद्दार हमेशा की तरह कल रात अपने अखबार के कार्यालय से काम निपटाकर अपने घर गया, जहां हम सभी रूममेट बैठकर रोज की तरह किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे, अचानक मैंने अपने एक साथी से पूछा यार फ्रीलांस रिपोर्टर को हिंदी में क्या कहेंगे उसने कहां स्वतंत्र पत्रकार, तभी तपाक से मेरे मुंह से निकल गया तो हम गुलाम पत्रकार हैं. उसने भी भरे मन से हामी भर दी. फिर क्या था हमसब इसी मुद्दे पर चर्चा करने लगे. दो दिनों पहले बोलहल्ला पर पत्रकारिता के बारे में मैंने जो भडास निकाली थी उसका कारण समझ में आने लगा. आज हकीकत तो यह है कि हम जिस मीडिया घराने से जुड जाते हैं उसके लिए एक गुलाम की भांति काम करने लगते हैं, हम अपनी सोच, अपने विचार और अपनी जिम्मेवारियों को उस मीडिया घराने के पास गिरवी रख देते हैं और सामने वाला व्यक्ति हमें रोबोट की तरह इस्तेमाल करने लगता है, हम उसकी धुन पर कठपुतलियों की तरह नाचना शुरू कर देते हैं. किसी को जलकर मरते देखकर हमारा दिल नहीं पसीजता, किसी की समस्याओं में हमें अपनी टॉप स्टोरी व ब्रेकिंग न्यूज नजर आती है, सच कहें तो शायद हमारी संवेदना ही मर चुकी हैं. शायद आज पूरी की...
Comments