फाइल फोटो |
सपा के अंदरखाने से ख़बरें आ रहीं हैं कि मुलायम ने अपनी ओर से चुनाव आयोग में साइकिल सिंबल के लिए हलफनामा दिया ही नहीं था. साफ है साइकिल के लिए मुलायम खेमा चुनाव आयोग में आधी - अधूरी लड़ाई लड़ाई लड़ रहे थे जबकि अखिलेश खेमे ने समर्थन में 228 में 205 विधायकों, 68 में 56 विधान पार्षदों, 24 में से 15 सांसदों और 46 में से 28 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों ने हलफनामा दिया दिया था जिससे पार्टी पर अंततः अखिलेश का वर्चस्व चुनाव आयोग में साबित हुआ.
परिवार में झगड़ा कहाँ से शुरू हुआ ?
समाजवादी पार्टी में झगड़ा टिकट बांटने के अधिकार को लेकर शुरू हुआ था. मुलायम और अखिलेश ने अलग-अलग टिकट प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी थी. उसके बाद 30 दिसंबर को मुलायम ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी से निकाल दिया था.
इसके बाद एक जनवरी को मुलायम के भाई रामगोपाल यादव ने लखनऊ में पार्टी का अधिवेशन बुलाया और यहीं अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष घोषित कर दिया गया और मुलायम को समाजवादी पार्टी संरक्षक बना दिया गया. इसके बाद दोनों ने अलग-अलग पार्टी की मीटिंग बुलाई थी.
अखिलेश की ओर से बुलाई गयी बैठक में जहाँ 207 विधायक पहुंचे थे, वहीँ मुलायम के यहां सिर्फ 17 विधायकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. इसके बाद अखिलेश गुट ने दिल्ली में चुनाव आयोग में पार्टी पर अपना दावा ठोका और अब चुनाव आयोग ने अखिलेश को पार्टी की कमान और साइकिल चुनाव चिन्ह सौंप दी है. अब अंदरखाने से खबरें आ रहीं है कि इस फैसले के बाद पिता मुलायम भी बेटे के प्रति नरम पर गए हैं, अपने छोटे भाई शिवपाल यादव को कोर्ट न जाने की सलाह दी है.
Comments