बुधवार की शाम मैच देख रहा था, मैच खत्म हो गया था मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार भी वीरू को मिल चुका था तभी स्पेशल रिपोर्ट के लिए समाचार चैनल लगाया वहां कपिल देव अपनी बात कह ही रहे थे कि अचानक मुंबई से एक बडी खबर आई कि मुंबई में फायरिंग हो रही है. 10 लोग घायल हुए हैं. मैंने भी उसे हल्के से लिया, डाक एडिशन छोड चुका था अब सिटी एडिशन की तैयारी थी, सोचा देख लेते है कुछ लोग मरेंगे तो पहले पेज पर लगाने की सोचूंगा नहीं तो देश-विदेश पेज है न जिंदाबाद. यही सोचते सोचते खाना खाने चला गया. जब खाना खा कर आया तो पता चला कि 25 लोग मारे जा चुके हैं. अब क्या करू यह सोचने लगा क्योंकि आज ऑफिस में मैं ही एकलौता सीनियर आदमी था बाकी सभी छुट्रटी पर चले गये थे और कुछ एक पार्टी में चले गये थे अब कल ही वे आते. और तो और हमारे संपादक जी भी बाहर थे, जिनसे बात नहीं हो पाई. तभी दिमाग में आया कि अपने प्रबंधक को फोन लगाया जाये मैंने उन्हें फोन किया तो उन्होंने कहा कि हां पता है लोग मर रहे हैं. अब तुम जैसा चाहो कर लो देख लेना ठीक-ठाक कवरेज हो जाये. और फोन रख दिया. मैंने फिर उन्हें फोन किया कि सर कोई स्पेशल पेज दिया जाये कि नहीं. तो उन्होंने कहा कि तुम्हें कहा न जैसा तुम चाहो करो साथ ही उन्होंने कहा कि अब ज्यादा टेंशन भी मत लो जब ....... इस स्थान पर उन्होंने कुछ गालियां दी जो लिख नहीं सकता. पीएम, होम मिनिस्टर और वहां के सीएम को कोई फिर्क ही नहीं है तो तू क्यों परेशान हो रहा है. देख लेना और आराम से जाकर सो जा और मुझे भी चैन से सोने दे यार. पहले मुझे लगा कि मैं उनसे मजाक करता हूं शायद उन्होंने मुझे ऐसा जवाब दिया लेकिन रात में दो बजे उनका फोन आया और उन्होंने पुछा कि अभी तक पेज छोडा नहीं अबे जा और जा कर सो यार. फिर अगले सप्ताह तक कहीं न कहीं ऐसा विस्फोट हो ही जायेगा अब कब तक अपनी नींद बेकार करेगा. उनकी इस बात ने मुझे भी झकझोर दिया कि आखिर क्यूं ऐसी घटनाएं बार-बार होती है और अगर हो भी जाती है तो पुलिस क्यों नहीं चेतती है सरकार इसके लिए कुछ क्यों नहीं करती है. यही सब सोच रहा था तभी मेरे एक जूनियर स्टाफ ने मुझसे पूछा कि क्या सोच रहे हैं भैया. तो मैंने उससे सारी बातें कहीं तो उन्होंने कहा कि क्या भैया अगर ऐसा होगा नहीं तो हमें लीड खबरें कैसे मिलेगी. अब अखबार भी तो सजना चाहिए न. और साथ ही वहीं सलाह दी जो मेरे प्रबंधक ने मुझे दी थी. अंततः मैंने भी इसे ही सच मानने में अपनी भलाई समझी पर दिल नहीं मान रहा था और पहले पेज में खबर लगाई तब तक 80 के मरने की पुष्टि हुई थी तो मैंने 100 कर दी कि रात तक तो इतने मर ही जायेंगे. और रूम पर आकर सोने की कोशिश कर रहा हूं कि किसी तरह से नींद आ जाये ताकि सुबह और अखबारों के अपने अखबार की तुलना कर संकू कि हमने कैसा किया है. सही है हमले हो गये तो होने दो जब हमारे देश के नेता सो रहे हैं जो लोगों को हर संभव सुरक्षा का दंभ भरते हैं तो हम क्या करें और कर भी क्या सकते हैं. शायद इसका जवाब में हमें जल्द ही ढूढना होगा नहीं तो किसी दिन यह छापने वाला भी इस देश में कोई नहीं मिलेगा.
बुधवार की शाम मैच देख रहा था, मैच खत्म हो गया था मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार भी वीरू को मिल चुका था तभी स्पेशल रिपोर्ट के लिए समाचार चैनल लगाया वहां कपिल देव अपनी बात कह ही रहे थे कि अचानक मुंबई से एक बडी खबर आई कि मुंबई में फायरिंग हो रही है. 10 लोग घायल हुए हैं. मैंने भी उसे हल्के से लिया, डाक एडिशन छोड चुका था अब सिटी एडिशन की तैयारी थी, सोचा देख लेते है कुछ लोग मरेंगे तो पहले पेज पर लगाने की सोचूंगा नहीं तो देश-विदेश पेज है न जिंदाबाद. यही सोचते सोचते खाना खाने चला गया. जब खाना खा कर आया तो पता चला कि 25 लोग मारे जा चुके हैं. अब क्या करू यह सोचने लगा क्योंकि आज ऑफिस में मैं ही एकलौता सीनियर आदमी था बाकी सभी छुट्रटी पर चले गये थे और कुछ एक पार्टी में चले गये थे अब कल ही वे आते. और तो और हमारे संपादक जी भी बाहर थे, जिनसे बात नहीं हो पाई. तभी दिमाग में आया कि अपने प्रबंधक को फोन लगाया जाये मैंने उन्हें फोन किया तो उन्होंने कहा कि हां पता है लोग मर रहे हैं. अब तुम जैसा चाहो कर लो देख लेना ठीक-ठाक कवरेज हो जाये. और फोन रख दिया. मैंने फिर उन्हें फोन किया कि सर कोई स्पेशल पेज दिया जाये कि नहीं. तो उन्होंने कहा कि तुम्हें कहा न जैसा तुम चाहो करो साथ ही उन्होंने कहा कि अब ज्यादा टेंशन भी मत लो जब ....... इस स्थान पर उन्होंने कुछ गालियां दी जो लिख नहीं सकता. पीएम, होम मिनिस्टर और वहां के सीएम को कोई फिर्क ही नहीं है तो तू क्यों परेशान हो रहा है. देख लेना और आराम से जाकर सो जा और मुझे भी चैन से सोने दे यार. पहले मुझे लगा कि मैं उनसे मजाक करता हूं शायद उन्होंने मुझे ऐसा जवाब दिया लेकिन रात में दो बजे उनका फोन आया और उन्होंने पुछा कि अभी तक पेज छोडा नहीं अबे जा और जा कर सो यार. फिर अगले सप्ताह तक कहीं न कहीं ऐसा विस्फोट हो ही जायेगा अब कब तक अपनी नींद बेकार करेगा. उनकी इस बात ने मुझे भी झकझोर दिया कि आखिर क्यूं ऐसी घटनाएं बार-बार होती है और अगर हो भी जाती है तो पुलिस क्यों नहीं चेतती है सरकार इसके लिए कुछ क्यों नहीं करती है. यही सब सोच रहा था तभी मेरे एक जूनियर स्टाफ ने मुझसे पूछा कि क्या सोच रहे हैं भैया. तो मैंने उससे सारी बातें कहीं तो उन्होंने कहा कि क्या भैया अगर ऐसा होगा नहीं तो हमें लीड खबरें कैसे मिलेगी. अब अखबार भी तो सजना चाहिए न. और साथ ही वहीं सलाह दी जो मेरे प्रबंधक ने मुझे दी थी. अंततः मैंने भी इसे ही सच मानने में अपनी भलाई समझी पर दिल नहीं मान रहा था और पहले पेज में खबर लगाई तब तक 80 के मरने की पुष्टि हुई थी तो मैंने 100 कर दी कि रात तक तो इतने मर ही जायेंगे. और रूम पर आकर सोने की कोशिश कर रहा हूं कि किसी तरह से नींद आ जाये ताकि सुबह और अखबारों के अपने अखबार की तुलना कर संकू कि हमने कैसा किया है. सही है हमले हो गये तो होने दो जब हमारे देश के नेता सो रहे हैं जो लोगों को हर संभव सुरक्षा का दंभ भरते हैं तो हम क्या करें और कर भी क्या सकते हैं. शायद इसका जवाब में हमें जल्द ही ढूढना होगा नहीं तो किसी दिन यह छापने वाला भी इस देश में कोई नहीं मिलेगा.
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घुघूती बासूती
अब
आईये हम सब मिलकर विलाप करें