कहते हैं कि शादी के लिए जोडी भगवान ही बनाकर इस धरती पर भेजता है, सभी इसे सच भी मानते हैं और कहते भी है कि अगर किसी की शादी किसी से न हो पाई और अगर किसी से हो गई तो भाई हम क्या कर सकते हैं यह सब तो उस भगवान का किया खेल है. परंतु ईश्वर ने रांची के रहने वाले मलयेश के लिए कुछ अजब ही खेल खेला. मलयेश जो रांची का रहनेवाला था और फिलहाल मुंबई में रिलांयस कंपनी में साफटवेयर इंजीनियर के पोस्ट पर कार्यरत था. उसकी शादी 6 दिसंबर को होने वाली थी. वह भी उससे नहीं जिसे ईश्वर ने उसके लिए बनाया था बल्कि उससे जिससे उसने प्यार किया था और प्यार भी कोई ऐसा वैसा नहीं उसकी दिवानगी ऐसी थी कि उसने अपनी शादी के लिए अपनी एक वेबसाइट भी बना रखी थी जिसपर उसे जानने वाले या उसे चाहने वाले उसे शुभकामनाएं दे सके और उन दोनों के जिंदगी की हर बात जान सके मसलन कैसे उनकी मुलाकात हुई कैसे वह एक दूसरे के करीब आये और कैसे प्यार हुआ. यहां यह बता दूं कि मलयेश खडगपुर से आईआईटी करने के बाद जैन इंस्टीटच्यूट से एमबीए किया. आईआईटी करने के दौरान ही उसकी नजर खुशबू नाम की एक लडकी पर पडी और उनदोनों के बीच पहले तो दोस्ती हुई और फिर प्यार और फिर दोनों ने एक दूसरे के साथ रहने का फैसला किया. सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थी. कार्ड छप गये थे बंटने भी लगे थे घर के लोग एक दूसरे को निमत्रंण भी दे चुके थे घर भी सजने लगा था अब बस इंतजार था तो बस उस घडी की यानि 6 दिसंबर की जब मलयेश और खुशबू एक दूजे के होकर इस घर में अपनी खुशबू बिखेरते. पर इस घर के लिए 26 नवंबर की रात काल बनकर टूटी. जहां आतंक के आगे भगवान के द्वारा बनाई गई जोडी भी बेबस नजर आई. मलयेश अपनी कंपनी की एक मीटिंग के दौरान होटल ताज में उस रात मौजूद था जिस रात वहां आतंकी हमला हुआ. वह आतंकवादियों की गोली का शिकार हुआ और उसी स्थान पर जिदंगी और अपनी मंगेतर खुशबू से किये हुए सारे वादे तोडकर हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया. जिस घर में जहां फूलों की खुशबू बिखर रही थी वहां अब मातमी सन्नाटा पसर गया. वहां अगरबत्ती की खुशबू और जिस घर में शादी के गानों की आवाज गूंज रही थी वहां चीखने चिल्लाने की आवाज निकलने लगी. आज शाम मलयेश का शव भी रांची पहुंच गया. उसके पिता ने जो अपने एकलौते बेटे के शादी के लिए जो सपने देख रखे थे अब अपने बेटे की दाह संस्कार की तैयारी कर रहे हैं. सब कुछ एक झटके में खत्म हो गया. जिस वेबसाइट पर अभी तक शादी की शुभकामनाएं आ रही थी वहां का भी मंजर बदल गया. अब सवाल यह उठता है कि इसमें किसका क्या कसूर था. क्या कसूर मलयेश का था कि जिसने प्यार किया, कसूर खुशबू का था कि जिसने अपने प्यार को हमेशा के लिए पाने के लिए यह फैसला उठाया, या कसूर उस पिता का था कि जिसने अपने एकलौते बेटे की शादी के लिए इतनी जोरदार तैयारी कर ली थी जो उसे नहीं करनी चाहिए थी. यह सिर्फ एक मलयेश की कहानी नहीं हो सकती यह तो सिर्फ एक उदाहरण हो सकता है पता नहीं ऐसे कितने मलयेश होंगे जो किसी का बेटा होगा किसी का पति, किसी का दोस्त किसी का भाई पर सबने एक झटके में सबकुछ खो दिया जिसे वह वर्षों से जानता था. कहते हैं प्यार की हमेशा जीत होती है तो क्या इनका प्यार सच्चा नहीं था जो ये एक दूसरे के नहीं हो पाये. या आज के समय में भगवान या प्यार कुछ तय नहीं कर पाता अगर कोई कर पाता है तो वह सिर्फ आतंकी और इस आतंकी नाम की बीमारी खत्म करने के लिए हमसबको जल्द ही कोई कदम उठाना पडेगा नहीं तो धीरे धीरे लोग प्यार करना ही भूल जायेंगे.
अभिषेक पोद्दार हमेशा की तरह कल रात अपने अखबार के कार्यालय से काम निपटाकर अपने घर गया, जहां हम सभी रूममेट बैठकर रोज की तरह किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे, अचानक मैंने अपने एक साथी से पूछा यार फ्रीलांस रिपोर्टर को हिंदी में क्या कहेंगे उसने कहां स्वतंत्र पत्रकार, तभी तपाक से मेरे मुंह से निकल गया तो हम गुलाम पत्रकार हैं. उसने भी भरे मन से हामी भर दी. फिर क्या था हमसब इसी मुद्दे पर चर्चा करने लगे. दो दिनों पहले बोलहल्ला पर पत्रकारिता के बारे में मैंने जो भडास निकाली थी उसका कारण समझ में आने लगा. आज हकीकत तो यह है कि हम जिस मीडिया घराने से जुड जाते हैं उसके लिए एक गुलाम की भांति काम करने लगते हैं, हम अपनी सोच, अपने विचार और अपनी जिम्मेवारियों को उस मीडिया घराने के पास गिरवी रख देते हैं और सामने वाला व्यक्ति हमें रोबोट की तरह इस्तेमाल करने लगता है, हम उसकी धुन पर कठपुतलियों की तरह नाचना शुरू कर देते हैं. किसी को जलकर मरते देखकर हमारा दिल नहीं पसीजता, किसी की समस्याओं में हमें अपनी टॉप स्टोरी व ब्रेकिंग न्यूज नजर आती है, सच कहें तो शायद हमारी संवेदना ही मर चुकी हैं. शायद आज पूरी की...
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