मोदी के मंत्रालय डिजिटल मोर्चे पर कर रहे हैं निराश
प्रधानमंत्री का डिजिटल इंडिया का सपना अधर में
जब मई २०१४ में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो मीडिया ने उन्हें सोशल मीडिया प्राइम मिनिस्टर के नाम से नवाजा. तकनीक के प्रति उनके रुझान की तुलना अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा तक से की गयी. इतना ही नहीं, साल २०१६ में टाइम मैगज़ीन ने उन्हें दुनिया के ३० सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया.
तकरीबन ४ करोड़ फेसबुक फॉलोवर्स के साथ नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे अधिक फॉलो किये जाने वाले विश्व नेताओं में एक हैं. अपने मुखिया के सोशल मीडिया और ऑनलाइन माध्यमों में इस दिलचस्पी और सक्रियता की वजह से लोगो को उम्मीद थी कि भारत सरकार के अन्य विभाग भी ऑनलाइन प्लेटफार्म पर अधिकाधिक सक्रिय होंगे.
डिजिटल इंडिया को लेकर हो रहे प्रयास नाकाफी
पर सच्चाई में हुआ बिलकुल उसके उलट. पीयू रिसर्च सेंटर के अनुसार, ८७ प्रतिशत अमेरिकी व्यस्क इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जबकि भारत के मामले में यह आकड़ा केवल २७ फीसदी का हैं. भारत में दस में से केवल २ लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का नियमित रूप से इस्तेमाल करते हैं, वहीँ अमरीका में दस में से तक़रीबन ७ लोग ऐसा करते हैं.
डिजिटल इंडिया के तहत भारत सरकार की प्राथमिकता अधिक से अधिक लोगों के वेब से जोड़ने का रहा है. इस दिशा में काफी हद तक सफलता भी मिली हैं. २५०००० ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ा गया है. भारत की पहली बायोमेट्रिक पहचान प्रणाली के रूप में आधार का इकोसिस्टम तैयार कर लिया गया है. इससे मोबाइल बैंकिंग, ऑनलाइन बैंकिंग और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (लाभुक को सीधे खाते में भुगतान) काफी हद तक आसान हुआ है.
गवर्नेंस में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने mygov.in नमक प्लेटफार्म भी विकसित किया है. अब तक ४० लाख लोग इस पर रजिस्ट्रेशन कर चुके हैं. लगभग १८ लाख लोगो ने अपने विचार इस पर साझा किये हैं और तकरीबन साढ़े तीन करोड़ कमेंट इस पर आ चुके हैं. भारत में इंफ्रास्ट्रचर को बेहतर करने की दिशा में ये कदम मील का पत्थर साबित हुए हैं.
समय - समय पर पीएमओ की और से दूसरे मंत्रालयों को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर सजग रहने के सलाह दी गयी है. कुछ मंत्रालय इस मामले में काफी एक्टिव भी रहे हैं उदहारण के तौर पर रेलवे (सुरेश प्रभु / पीयूष गोयल) , विदेश मंत्रालय (सुषमा स्वराज) और पीडीएस (रामविलास पासवान) का मंत्रालय। पर अधिकतर मंत्रालयों ने अपने सोशल मीडिया खातों को सिद्दत से अपडेट करने में रुचि नहीं दिखाई हैं. ये निराशा की बात हैं, ऐसे समय में जब सरकार का मुखिया सोशल मीडिया पर इतना एक्टिव हैं.
गंभीर मुद्दों पर चुप्पी हैरान करने वाला
सामान्य तौर पर ऐसा देखा जा रहा है की विभिन्न मंत्रालयों के ट्विटर अकाउंट जनहित में सवाल पूछे जाने पर और आलोचना किये जाने पर आश्चर्यजनक रूप से खामोश हो जाते हैं. खुद प्रधानमंत्री मोदी जो लगभग हर दिन ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं, ने दादरी घाटना के बाद दस दिनों चुप्पी साध रखी थी. दादरी में एक युवक को गो हत्या शक में पीट पीट कर मार डाला गया था.
सोशल मीडिया पर अपने आलोचकों को ब्लॉक करने और उचित सवाल के जवाब देने में कतराने से निश्चित तौर पर सरकार की साख और विश्वाश गिरावट लाता है. किसी मंत्री का स्टेशन पर बेबी diapers से संबंधित ट्वीट करना और किसी एक्सीडेंट के मामले में सोशल मीडिया पर खामोश रह जाना. धार्मिक उन्माद के समय में जब लोगो को नेताओं से प्रतिक्रिया की उम्मीद होती है, किसी नेता द्वारा चुप रह जाना सरकार की साख पर जरूर ही बट्टा लगाता है.
सूचनाओं के आदान - प्रदान के मामले में भी सजग नहीं सरकार
सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थंति के साथ ही मोदी साकार के मंत्रालय जरूरी सूचनाओं के आदान - प्रदान के मामले भी कमतर साबित हुए हैं. २०१५ में चेन्नई में बाढ़ के कारण हज़ारों लोग बेघर हो गए. लगभग ५०० लोगो की मौत हो गयी. इस विपदा की घडी में भी सिविल सोसाइटी की और से लोगो को जरूरी सूचना पहुंचाने के लिए नेटवर्क तैयार किया गया जबकि ये काम समय रहते सरकार की ओर से किया जाना चाहिए था. इसके साथ ही कई सरकारी वेबसाइट पर आंकड़े अपडेट ही नहीं किये जाते या पुराने आंकड़े पड़ोस दिए जा रहे हैं.
निराशा की एक और वजह यह भी है की सरकार को यह भी कतई बर्दाश्त नहीं की उसके अंदर का कोई व्यक्ति उसके सही या गलत कदम पर कोई नकारात्मक टिपण्णी करे हाल ही में सिविल सेवा के अधिकारिओं के लिए एक सोशल मीडिया कोड ऑफ़ कंडक्ट जारी किया गया था, जो अपने आप में ही आधा अधूरा था.
भक्तों की ओर से पड़ोसा जा रहा ऑनलाइन कचड़ा
सरकारी तंत्र के सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर सामान विचाररधारा के पार्टियों और ऐसे लोग के जिन्हे हम अंध भक्त सकते हैं वे भी खासा प्रभाव डालते हैं. राइट, लेफ्ट या किसी और विचारधारा की आड़ में सोशल मीडिया पर हाल के दिनों में इतना कचड़ा पड़ोसा गया है कि वहां किसी मामले में स्वस्थ बहस की सम्भावना ही समाप्त हो गयी है. दुर्भाग्य की बात ये है की ऐसा पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से किया जा रहा है.
सरकार से उम्मीद
लोकतान्त्रिक सरकारों से सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर मुख्य रूप से दो उम्मीद की जानी चाहिए पहला उचित विनियमन और बेहतरीन सेवा के प्रावधान। भारत सरकार इन दोनों ही मामलो में विफल साबित होती दिख रही है. ग्लोबल कंपनियों द्वारा डेटा चोरी के ताज़ा मामले सच को बयां कर रहे हैं.
एक विनियामक के रूप में सरकार को चाहिये वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्र को बनाये रखते हुए सोशल मीडिया पर पडोसी जानी वाली सामग्री का बिना कोई पक्षपात किये सम्मानजनक स्तर बनाये रखे. नियामक के रूप में मोदी प्रशासन का काम अधिकारिओं की इच्छाशक्ति में कमी और ट्रेनिंग के आभाव में काफी निराशाजनक रहा है. दूसरी तरफ एक डिजिटल सेवा प्रदाता के रूप में सरकार को अपने ऑनलाइन यूजर को एक ऑनलाइन सिटीजन मानते हुए आलोचना की स्थिति में भी उसके साथ यथोचित व्यवहार करना चाहिए।
निश्चित तौर पर व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑनलाइन माध्यमों और सोशल मीडिया का बहुत ही प्रभावशाली इस्तेमाल किया है, पर उनके सरकार के मुखिया रहते पूरी सरकार के बारे में आज के समय में ऐसा नहीं कहा जा सकता हैं, ये दुर्भाग्यपूर्ण है.
By : Kumar Vivek
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