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Showing posts from June, 2008

बिहार में अब किसानों की बल्‍ले - बल्‍ले

बिहार में किसानों को खेती के नये-नये तकनीकी गुर सिखाने के लिए सरकार राज्‍य में तीन सौ किसान पाठशालाएं खोलेगी. बिहार क़षि प्रबंधन व प्रसार-प्रशिक्षण संस्‍थान के निदेशक डॉ आरके सोहाने ने इस बारे में जानकारी दी. उन्‍होंने बताया कि इन पाठशालाओं में क़षि विशेषज्ञ किसानों को खेती के तरीके बतायेंगे. किसानों को यह बताया जायेगा कि किस मौसम में किस फसल की खेती लाभदायक हो सकती है. उन्‍होंने बताया कि किसानों को यह जानकारी प्रत्‍येक सप्‍ताह दी जायेगी. यह पाठशाला किसानों के घर में ही खोली जायेगी. इसके लिए उस किसान के पास 2.50 एकड जमीन का होना अनिवार्य है. उन्‍होंने बताया‍ कि क़षि विभाग की ओर से किसानों को राज्‍य के बाहर भी भेजे जाने की योजना तैयार की गयी है. उन्‍होंने कहा कि पाठशाला में किसानों को धान की प्रजातियों का चयन, बिचडा डालने आदि के बारे में भी बताया जायेगा. किसानों को खाद के उपयोग संबंधित जानकारी के साथ मौसम के सदुपयोग की भी जानकारी दी जायेगी.

ईमानदारी में हम थोड़ा और फिसले

न्यू यॉर्क : भारत में भ्रष्टाचार कुछ और बढ़ गया है। ट्रांसपैरंसी इंटरनैशनल की 180 देशों की लिस्ट में वह 74 वें पायदान पर है। यह पिछले साल से दो पायदान और नीचे है। पाकिस्तान 140 वें स्थान पर है। इस लिस्ट में उससे ऊपर ईरान (133), लीबिया (134)और नेपाल (135) हैं। साल 2007 के वर्ल्डवाइड करप्शन पर्सेप्शन इंडेक्स (सीपीआई) में भारत और चीन 72वें स्थान पर थे। इस साल चीन भारत से एक स्थान पीछे है। अन्य एशियाई देशों में रूस 145वें, श्रीलंका 96वें और मालदीव 90वें स्थान पर हैं। खास बात यह कि इस इलाके में भूटान में करप्शन काफी कम है। सीपीआई इंडेक्स में उसका स्थान 41वां है। टॉप फाइव में डेनमार्क, फिनलैंड, न्यूजीलैंड, सिंगापुर और स्वीडन ने जगह बनाई है। सबसे नीचे म्यांमार और सोमालिया को जगह मिली है। अमेरिका पहले की तरह 20वें पायदान पर काबिज है। उसके ठीक ऊपर जर्मनी, आयरलैंड, जापान और फ्रांस हैं। ब्रिटेन 13वें स्थान पर है। उसके ठीक पीछे हॉन्गकॉन्ग है। हमारा सुप्रीम कोर्ट सराहा गया ट्रांसपैरंसी इंटरनैशनल ने अपनी रिपोर्ट में सरकार और राजनीतिक जीवन में भ्रष्टाचार के खिलाफ कोशिशों के लिए सुप्रीम कोर्ट को सराहा...

झारखंड में ऐसा ही होता है

नरेगा में अनियमितता की आवाज उठाने वाले ज्‍याद्रेंज पर ही उठा दी उंगली गोविंद बल्‍लभ पंथ सामाजिक विज्ञान संस्‍थान में विजिटिंग प्रोफेसर व देश, दुनिया में बतौर जुझारू व सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में विख्‍यात ज्‍याद्रेंज ने पलामू जिलातंर्गत छत्‍तरपुर अनुमंडल प्रखंड में नरेगा में चल रही योजनाओं का सर्वेक्षण किया था. यहां के एक सामाजिक कार्यकर्ता ललित उरांव के हाथ नरेगा में अनियमि‍तता से संबंधित कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍य हाथ लग गये और इसी बीच ललित की हत्‍या कर दी जाती है. ललित मेहता ज्‍याद्रेंज की टीम के सहयोगी थे जो छत्‍तरपुर प्रखंड में नरेगा से संबंधित घोटाले की सीडी बनाई थी. तभी से नरेगा के घोटालेबाज ललित मेहता के पीछे पड गये और मौका देखकर उसकी हत्‍या कर दी. इस हत्‍या को ज्‍याद्रेंज ने काफी गंभीरता से लिया है इसकी गूंज केंद्र तक पहुंचाई. केंद्र ने इस हत्‍या को काफी गंभीरता से लिया और तभी से जिला प्रशासन इस मामले को हल्‍का करने में लग गया और राज्‍य सरकार को वैसी रिपोर्ट सौंप दी गई जो गले के नीचे नहीं उतरा. पलामू जिला प्रशासन द्वारा भेजी रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है. आइए एक नजर ...

एक ऐसा दोस्‍त चाहिए

आज मुझे रात में फिर एक मेल आया, जिसमें मेरी अबतक की सबसे अच्‍छी दोस्‍त ने एक कविता मेल की, यहां मैं उस दोस्‍त के बारे में बताना चाहूंगा उसे मैं आज तक मिला नहीं हूं हां बस फोन पर दो-चार बार बातें हुई हैं, फिर भी वे मेरे सभी दोस्‍तों से अलग है. उसने सभी हालातों में मेरा पूरा-पूरा साथ दिया है. पिछले दो दिनों से मैं काफी उधेडबुन में था तब भी उसने मुझे काफी सुझाव दिये जिससे कहीं न कहीं मन हल्‍का लग रहा है, यह कविता भी उसी के एक सुझाव का हिस्‍सा हालांकि मैं यहां उसका नाम भी लिखना चाहता था पर उसने मना कर दिया कहा बस अभि लिख दो... ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए, दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए, ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए, मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए, कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ, दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए, उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें, और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए, मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए, बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा द...

क्‍या अदाकारी है, आप भी देंखे

आज सुबह मेरे मेल पर मेर‍े एक दोस्‍त ने एक तस्‍वीर भेजी, जो आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूं, यह तस्‍वीर उन्‍होंने खुद बनाई है. आप सभी देखने वाले से निवेदन है कि आप इस तस्‍वीर पर अपनी टिप्‍पणी जरूर भेंजे इससे उस कलाकार का हौंसला बढेगा. धन्‍यवाद

आधी आबादी का पूरा सच

अभिषेक पोद्दार आज पूरे देश में नारी सशक्तिकरण का जुमला हर जुबान पर है. केंद्र से लेकर राज्‍य सरकारें नारी सशक्तिकरण के लिए तरह-तरह की घोषणाएं करने से नहीं चूक रही हैं. जब बात नारियों के उत्‍थान की हो रही हो तो हम रानी लक्ष्‍मीबाई, सरोजनी नायडू, किरण बेदी, इंदिरा गांधी जैसी तमाम महिलाओं का उदाहरण देने से नहीं थकते हैं. देश भर में ऐसी हजारों स्‍वयंसेवी संस्‍थाएं हैं जो यह दावा करती है कि उनका मुख्‍य काम महिला उत्‍थान के क्षेत्र में काम करना है, पर शायद यह केवल कागजी सच ही है अगर ऐसा न होता तो प्राचीन काल से ही नारी को शक्ति का रूप मानने वाले इस देश में हर 35 वें मिनट में किसी नारी का बलात्‍कार नहीं होता. जी हां कुछ आकडों पर अगर हम गौर करें तो कुछ ऐसे ही कडवें सच सामने आते हैं. आज हमारे देश में हर 26 मिनट में एक लडकी के साथ छेड-छाड की जाती है, हर 42 वें मिनट में घर, कार्यालय, विद्यालय या अन्‍य किसी स्‍थान पर यौन-उत्‍पीडन का शिकार होती है, हर 93 मिनट पर एक महिला दहेज के लिए मार दी जाती है या जला दी जाती है, हर तीन महिला में से एक महिला आज भी निरक्षर है, वहीं विश्‍व स्‍तर पर पुरूषों की बेरो...

झारखंड में एक अखबार जो सिखाता है मैनेजमेंट पत्रकारिता

अभिषेक पोद्रदार सबसे पहले तो हम अपने सुधि पाठकों से क्षमा चाहता हूं कि अपने ब्‍लॉग को काफी दिनों तक अपडेट नहीं कर सका, जिसका खेद हमें हैं. लेकिन इन दिनों में ब्‍लॉग पर कुछ न लखिने का कारण भी जब आप सुनियेगा तो अजीब लगेगा. ऐसा माना जाता है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ है. और बीते एक माह से मैं इसी उधेडबुन में था कि सही में पत्रकारिता अपने स्‍तंभ को बरकरार रख पा रही है. अभी कुछ दिनों पहले ही भोपाल में अखबारों का मेला लगा हुआ था जो आज भी कायम है, अब जाहिर सी बात है जब किसी क्षेत्र में नये अखबार आयेंगे तो प्रतिस्‍पर्द्वा बढेगी ही लेकिन भोपाल में प्रतिस्‍पर्द्वा को प्रतिस्‍पर्द्वा की तरह नहीं देखा गया वहां तो एक अखबार दूसरे अखबार को गाली गलौज करने पर उतर गया. अभी मैं इस प्रकरण को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि मुझे एक झटका और लग गया, झारखंड में पत्रकारिता की नींव रखने वाले अखबार (जो सच में पत्रकारिता करता था, ऐसा मेरा मानना था ) जिसे देखकर मैंने भोपाल से अपने राज्‍य झारखंड आने का निश्‍चय किया था. उसमें प्रकाशित लेख ने मुझे पूरी तरह से झकझोर दिया. उसी अखबार में एक व्‍यक्ति ( जिसक...