Skip to main content

झारखंड में एक अखबार जो सिखाता है मैनेजमेंट पत्रकारिता

अभिषेक पोद्रदार
सबसे पहले तो हम अपने सुधि पाठकों से क्षमा चाहता हूं कि अपने ब्‍लॉग को काफी दिनों तक अपडेट नहीं कर सका, जिसका खेद हमें हैं. लेकिन इन दिनों में ब्‍लॉग पर कुछ न लखिने का कारण भी जब आप सुनियेगा तो अजीब लगेगा. ऐसा माना जाता है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्‍तंभ है. और बीते एक माह से मैं इसी उधेडबुन में था कि सही में पत्रकारिता अपने स्‍तंभ को बरकरार रख पा रही है.
अभी कुछ दिनों पहले ही भोपाल में अखबारों का मेला लगा हुआ था जो आज भी कायम है, अब जाहिर सी बात है जब किसी क्षेत्र में नये अखबार आयेंगे तो प्रतिस्‍पर्द्वा बढेगी ही लेकिन भोपाल में प्रतिस्‍पर्द्वा को प्रतिस्‍पर्द्वा की तरह नहीं देखा गया वहां तो एक अखबार दूसरे अखबार को गाली गलौज करने पर उतर गया. अभी मैं इस प्रकरण को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि मुझे एक झटका और लग गया, झारखंड में पत्रकारिता की नींव रखने वाले अखबार (जो सच में पत्रकारिता करता था, ऐसा मेरा मानना था ) जिसे देखकर मैंने भोपाल से अपने राज्‍य झारखंड आने का निश्‍चय किया था. उसमें प्रकाशित लेख ने मुझे पूरी तरह से झकझोर दिया. उसी अखबार में एक व्‍यक्ति ( जिसका उस अखबार से दूर-दूर तक लेना देना नहीं है और उस अखबार में काम करनेवाले भी उसे नहीं पहचानते कि वह कौन है ) के द्वारा राज्‍य के सीएम व मंत्री को गाली गलौज किया जाता है, और फिर बाद में उस लेख के बारे में उनकी टिप्‍पणी छापना यह मेरे समझ से परे था. उस व्‍यक्ति द्वारा उपयुक्‍त लेख में जिन भाषाओं का प्रयोग किया गया था निश्चित तौर पर वह मर्यादित नहीं थी, किसी के पिता को बाप कहना, किसी पत्रकार के लिए यह शोभा नहीं देता. खैर यह अलग बात है सूबे के विधायकों ने जब उस व्‍यक्ति पर टिप्‍पणियां सहज लहजे में की तो उसे भी प्रमुखता से छापा गया जिसमें कहा गया कि वे खुद उस व्‍यक्ति से मिलना चाहते हैं जिसने ऐसा लिखा है पर वह अखबार उस व्‍यक्ति को सामने नहीं ला सका कि वह व्‍यक्ति कौन है और उसकी पहचान क्‍या है इससे कहीं न कहीं मेरी समझ से पत्रकारिता की छवि घूमिल होती है, अपने पत्रकारिता की पढाई करने के दौरान यह सिखाया गया था कि पत्रकार अपने सूत्रों को नहीं उजागर करते अगर इस प्रकरण में कहीं से सूत्र की बात आती तो यह बात समझ में आती मगर यहां तो सूत्र की कोई भुमिका ही नहीं थी. तो फिर यह सब क्‍या है इससे पत्रकारिता कहां जा रही है यह सवाल अभी भी मेरे मन में उभरे हुए हैं और वह अखबार उन विधायकों की टिप्‍पणी छाप कर क्‍या साबित करना चाह रहा है यह कुछ कुछ समझ में आ रहा है कि वे अपने सुधि पाठकों के बीच यह संदेश फैलाना चाहते हैं कि हम कितने निष्‍पक्ष हैं जो अपनी बुराई व अपने अखबार के बारे में जो लोग बुरा-भला कहते हैं उसे भी प्रमुखता से छापते हैं तो उन श्रीमान संपादक महोदय ने निवेदन है कि महाशय अब झारखंड के पाठक वह पाठक नहीं रहे कि आप जो लिखेंगे और जो समझाना चाहेंगे वहीं वह पाठक समझेगा ( जो अब तक समझता था ) अब पाठक भी सब कुछ समझता है. पाठक यह समझने से पहले आपसे यह जरूर पूछना चाहेगा कि वह लेखक कौन है जिसको आपके संस्‍थान में काम करने वाले वरिष्‍ट अधिकारी भी नहीं जानते. और कम से कम आपमें इतनी तो समझ है कि इस प्रकार के कोई लेख आप बिना जांचे परखे तो नहीं छाप सकते. तो फिर यह कौन सी पत्रकारिता है मेरी समझ से तो यह कहीं न कहीं मैनेजमेंट पत्रकारिता है जो पत्रकारिता के इतिहास में आपने शुरू की है. चलिए अब आप से निवेदन है कि आप अपने पत्रकारिता संस्‍थान के साथ-साथ इस कोर्स को सभी पत्रकारिता विश्‍वविद्यालयों में भी भेज दें ताकि वह इसका पाठ भी पढा सके. हो सकता है कि मैं गलत हूं अगर हां तो एक यक्ष प्रश्‍न अभी भी सभी के दिमाग में है कि वह लेखक कौन है, हो सकता है आप खुद अपना नाम बदल कर यह सब लिख रहे हैं तो महाशय जी ऐसा क्‍यों, अगर आपको लगता है कि ऐसा सही में है तो आप इतने प्रभावशाली तो जरूर है कि लोग इसका सम्‍मान करते, या फिर आप डरते हैं कि मैं खुद ऐसा कैसे लिखूं क्‍योंकि आगे फिर उन्‍हीं से काम पड सकता है तो फिर मेरी समझ से आप पत्रकार कहलाने के लायक नहीं है. आपने पत्रकारिता को धूमिल करने का काम किया है. मुझे आज भी याद है कि भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान आपने कहा था कि पत्रकारों को पीत पत्रकारिता से बचना चाहिए, तो फिर आप यह क्‍या कर रहे हैं अगर पीत पत्रकारिता नहीं तो मैनेजमेंट पत्रकारिता. और मैं अबतक पत्रकारिता के क्षेत्र में आपको अपना आर्दश मानता था, जिसे आपने कहीं न कहीं झटका दिया है. एक पाठक के नजरिये से आपने या आपके अखबार ने यह कदम सही उठाया है मगर एक पत्रकार के नजरिये से यह सारी बातें समझ से परे हैं.

Comments

Popular posts from this blog

एनडीए के साथ जाना नीतीश का सकारात्मक फैसला : श्वेता सिंह (एंकर, आजतक )

Shweta during coverage बिहार की वर्तमान राजनिति पर नयी नज़र के साथ जानी-मानी आजतक पत्रकार बिहारी श्वेता सिंह से   खास बातचीत  पटना : बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा देने के बाद गुरुवार को सुबह दोबारा एनडीए के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर लिया. इस बीच राजधानी पटना में राजनैतिक चर्चाओं का बाजार उफान पर रहा. गुरुवार को अहले सुबह से ही तमाम मीडियाकर्मी राजभवन के बाहर शपथ ग्रहण को कवरेज करने के लिए मौजूद थे. इस इवेंट को कवरेज करने के लिए आजतक टीवी की जानी-मानी पत्रकार श्वेता सिंह भी विशेष रूप से पटना पहुंची थीं. श्वेता स्वयं एक  बिहारी हैं और बिहार के वैशाली जिले के महुआ से आतीं हैं. श्वेता लोगों से इस राजनैतिक घमासा न पर जमकर सवाल पूछतीं नज़र आईं. इस दौरान नयी नज़र के ब्लॉगर कुमार विवेक ने बिहार के बदलते घटनाक्रम पर श्वेता सिंह से बातचीत की, इसके मुख्य अंश हम आपसे साझा कर रहे है. ___ सवाल : श्वेता, देश की जानी-मानी पत्रकार होने के नाते बिहार के इस वर्त्तमान राजनैतिक घटनाक्रम को किस रूप में देखती हैं? जवाब : देखिये, एक पत्रका...

हमसे कुछ नहीं होगा हम गुलाम पत्रकार हैं

अभिषेक पोद्दार हमेशा की तरह कल रात अपने अखबार के कार्यालय से काम निपटाकर अपने घर गया, जहां हम सभी रूममेट बैठकर रोज की तरह किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे, अचानक मैंने अपने एक साथी से पूछा यार फ्रीलांस रिपोर्टर को हिंदी में क्‍या कहेंगे उसने कहां स्‍वतंत्र पत्रकार, तभी तपाक से मेरे मुंह से निकल गया तो हम गुलाम पत्रकार हैं. उसने भी भरे मन से हामी भर दी. फिर क्‍या था हमसब इसी मुद्दे पर चर्चा करने लगे. दो दिनों पहले बोलहल्‍ला पर पत्रकारिता के बारे में मैंने जो भडास निकाली थी उसका कारण समझ में आने लगा. आज हकीकत तो यह है कि हम जिस मीडिया घराने से जुड जाते हैं उसके लिए एक गुलाम की भांति काम करने लगते हैं, हम अपनी सोच, अपने विचार और अपनी जिम्‍मेवारियों को उस मीडिया घराने के पास गिरवी रख देते हैं और सामने वाला व्‍यक्ति हमें रोबोट की तरह इस्‍तेमाल करने लगता है, हम उसकी धुन पर कठपुतलियों की तरह नाचना शुरू कर देते हैं. किसी को जलकर मरते देखकर हमारा दिल नहीं पसीजता, किसी की समस्‍याओं में हमें अपनी टॉप स्‍टोरी व ब्रे‍किंग न्‍यूज नजर आती है, सच कहें तो शायद हमारी संवेदना ही मर चुकी हैं. शायद आज पूरी की...

शादी के लिए किया गया 209 पुरुषों को अगवा

शायद यह सुनकर आपको यकीन न हो लेकिन यह सच है। ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले साल जबर्दस्ती विवाह कराने के लिए 209 पुरुषों को अगवा किया गया। इनम 3 पुरुष ऐसे भी हैं जिनकी उम्र 50 साल से अधिक थी जबकि 2 की उम्र दस साल से भी कम थी। नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी 'भारत में अपराध 2007' रिपोर्ट के अनुसार, मजे की बात है कि बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है जहां महिलाओं की तुलना में पुरुषों की अधिक किडनैपिंग होती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में 1268 पुरुषों की किडनैपिंग की गई थी जबकि महिलाओं की संख्या इस आंकड़े से 6 कम थी। अपहरण के 27, 561 मामलों में से 12, 856 मामले विवाह से संबंधित थे। महिलाओं की किडनैपिंग के पीछे सबसे बड़ा कारण विवाह है। महिलाओं के कुल 20,690 मामलों में से 12,655 किडनैपिंग शादी के लिए हुई थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि किडनैप की गईं लड़कियों अधिकाधिक की उम्र 18 से 30 साल के बीच थी। साभार नवभारत टाइम्‍स