बिहार में किसानों को खेती के नये-नये तकनीकी गुर सिखाने के लिए सरकार राज्य में तीन सौ किसान पाठशालाएं खोलेगी. बिहार क़षि प्रबंधन व प्रसार-प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक डॉ आरके सोहाने ने इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इन पाठशालाओं में क़षि विशेषज्ञ किसानों को खेती के तरीके बतायेंगे. किसानों को यह बताया जायेगा कि किस मौसम में किस फसल की खेती लाभदायक हो सकती है. उन्होंने बताया कि किसानों को यह जानकारी प्रत्येक सप्ताह दी जायेगी. यह पाठशाला किसानों के घर में ही खोली जायेगी. इसके लिए उस किसान के पास 2.50 एकड जमीन का होना अनिवार्य है. उन्होंने बताया कि क़षि विभाग की ओर से किसानों को राज्य के बाहर भी भेजे जाने की योजना तैयार की गयी है. उन्होंने कहा कि पाठशाला में किसानों को धान की प्रजातियों का चयन, बिचडा डालने आदि के बारे में भी बताया जायेगा. किसानों को खाद के उपयोग संबंधित जानकारी के साथ मौसम के सदुपयोग की भी जानकारी दी जायेगी.
Shweta during coverage बिहार की वर्तमान राजनिति पर नयी नज़र के साथ जानी-मानी आजतक पत्रकार बिहारी श्वेता सिंह से खास बातचीत पटना : बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा देने के बाद गुरुवार को सुबह दोबारा एनडीए के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर लिया. इस बीच राजधानी पटना में राजनैतिक चर्चाओं का बाजार उफान पर रहा. गुरुवार को अहले सुबह से ही तमाम मीडियाकर्मी राजभवन के बाहर शपथ ग्रहण को कवरेज करने के लिए मौजूद थे. इस इवेंट को कवरेज करने के लिए आजतक टीवी की जानी-मानी पत्रकार श्वेता सिंह भी विशेष रूप से पटना पहुंची थीं. श्वेता स्वयं एक बिहारी हैं और बिहार के वैशाली जिले के महुआ से आतीं हैं. श्वेता लोगों से इस राजनैतिक घमासा न पर जमकर सवाल पूछतीं नज़र आईं. इस दौरान नयी नज़र के ब्लॉगर कुमार विवेक ने बिहार के बदलते घटनाक्रम पर श्वेता सिंह से बातचीत की, इसके मुख्य अंश हम आपसे साझा कर रहे है. ___ सवाल : श्वेता, देश की जानी-मानी पत्रकार होने के नाते बिहार के इस वर्त्तमान राजनैतिक घटनाक्रम को किस रूप में देखती हैं? जवाब : देखिये, एक पत्रका...
Comments
घुघूती बासूती
डा. आरके सोहाने ने एक भर कहा, तो आपने अपने शीर्षक से उसे डेढ़ भर बना डाला।
किसानों की बल्ले-बल्ले कहने से पहले किसी किसान से तो बात कर ली होती।
फिलहाल तो बिहार के किसानों का कालाबाजारी में खाद खरीदने में कचूमर निकला जा रहा है। एनपीके, डीएपी आदि खादों के हरेक बोरे पर डेढ़ सौ से दो सौ रुपये अधिक कीमत वसूल की जा रही है।
पत्रकारिता को जनता की आवाज बनना चाहिये, अधिकारियों का भोंपू नहीं। कम से कम आप तो किसानों के साथ यह ज्यादती नहीं कीजिये। (अपने चिट्ठे के शीर्ष पर आपने एक गरीब बच्चे का फोटो लगा रखा है। किसान परिवारों के उचित पोषण व शिक्षा से वंचित वैसे ही बच्चों का तो ध्यान रखें।)