आज मुझे रात में फिर एक मेल आया, जिसमें मेरी अबतक की सबसे अच्छी दोस्त ने एक कविता मेल की, यहां मैं उस दोस्त के बारे में बताना चाहूंगा उसे मैं आज तक मिला नहीं हूं हां बस फोन पर दो-चार बार बातें हुई हैं, फिर भी वे मेरे सभी दोस्तों से अलग है. उसने सभी हालातों में मेरा पूरा-पूरा साथ दिया है. पिछले दो दिनों से मैं काफी उधेडबुन में था तब भी उसने मुझे काफी सुझाव दिये जिससे कहीं न कहीं मन हल्का लग रहा है, यह कविता भी उसी के एक सुझाव का हिस्सा हालांकि मैं यहां उसका नाम भी लिखना चाहता था पर उसने मना कर दिया कहा बस अभि लिख दो...
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए.
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए.
Comments