जनता की सेवा या अपनी जेब की सेवा
अभिषेक पोद्दार
22 सालों के लंबे अंतराल के बाद रांची निकाय चुनाव संपन्न हो गये और उसके परिणाम भी सामने आ गये. चुनाव को लेकर पूरे रांचीवासियों के मन मे कई तरह की कल्पनाएं थी कि अगर चुनाव हो गया तो यह हो जायेगा, वह हो जायेगा. पर जब इसके परिणाम आये तो वहीं लोग इसे कोसने लगे कहने लगे हे भगवान यह क्या हो गया. इस निकाय चुनाव ने भ्रष्टाचार की एक नई पौध तैयार कर दी. अब तक इस राज्य का चिरहरण मंत्री व विधायक ही करते थे लेकिन अब मेयर, डिप्टी मेयर व पार्षद भी करेंगे. ऐसा इस चुनाव को देखने से तो साफ झलकता है चुनाव के नतीजे आने को सप्ताह भर होने के हैं लेकिन उसकी आग अभी तक रांची के निवासियों के अंदर जल रही है. प्रत्याशियों ने चुनाव जीतने के लिए क्या क्या जतन नहीं किये. किसी ने बोगस वोट मरवाये, तो किसी ने निर्वाचन पदाधिकारी को ही खरीद लिया. और तो और अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए राज्य के एक मंत्री ने खुद खडा होकर बोगस मतदान करवाया और वोटों की गिनती कर रहे कर्मचारियों को हडकाया भी अगर नतीजे उलट हुए तो वे इसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे. जब मंत्री यह सब कह सकता है तो आम प्रत्याशी क्या करता उसने भी जहां तक संभव हो सका अपना साम, दाम, दंड, भेद सब लगा दिया. पैसे देकर सीट खरीदा गया और जब इसकी सच्चाई यहां के एक लोकल चैनल ने लाइव दिखा दिया तो इसी राज्य के प्रशासन ने उसके पत्रकार को पीटा व उसका कैमरा तोड दिया. अब इसे क्या कहेगा, परंतु इससे भी तानाशाही और चुनाव में हो रहे भ्रष्टाचार का अंत नहीं हुआ. वार्ड नंबर 38 में रात में पुष्पा देवी को वार्ड पार्षद के रूप में जिताया गया लेकिन सुबह जब वह मतगणना स्थल पर पहुंची तो बताया गया कि किसी ओर प्रत्याशी की जीत हुई है. अगर हम सूत्रों की माने तो रात में पुष्पा देवी ने इसके एवज में कुछ रूपये की मांग की गई लेकिन जब वह देने में असर्मथ हुई तो क्या था पलटी मार गया नतीजा. अब इस तरह के तिकडम लगाकर जो भी प्रत्याशी जीते है हम उनसे यह कल्पना करें कि वह जनता का भला करने के लिए यह सारे जतन लगाये हैं तो शायद बेइमानी होगी. यह जनता की सेवा नहीं अपनी जेब की सेवा करने आये हैं.
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