संदीप वर्मा
प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन भाकपा माओवादियों ने झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, मुख्यमत्री मधु कोडा व उपमुख्यमंत्री सुधीर महतो के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया है. माओवादियों का मानना है कि इनलोगों द्वारा क्रांति विरोधी दुष्प्रचार व क्रियाकलापों का विरोध किया जा रहा है. इस बावत भारत की कम्युनिष्ट पार्टी माओवादी के झारखंड रिजनल कमेटी द्वारा एक पर्चा जारी किया गया है आठ पन्नों के जारी इस पन्ने में माओवादियों ने शिबू सोरेन के खिलाफ जमकर आग उगला है वहीं जनता को झारखंड में शोषण मुक्त जनता की जनवादी व्यवस्था स्थापित करने के लिए लोकयुद्ध जारी रखने का पाठ पढाया है. पर्चे को गिरिडीह जिले के अति उग्रवाद प्रभावित इलाकों में वितरित किया गया है. पर्चे में कहा गया है कि जोतने वालों के हाथ में जमीन और क्रांतिकारी किसान कमेटी के हाथ में हुकूमत तथा क्रांतिकारी जन कमेटी के हाथ में सत्ता को कार्यान्वित करने के लिए सशस्त्र क़षि क्रांतिकारी आंदोलन जारी है. असल में आज यह जनयुद्ध मुखर होते हुए एक नई उंचाई छूने के मुहाने पर खडी है. ऐसे में शोषक शासक वर्ग व सभी पार्टी नेताओं, एमपी, एमएलए व मंत्री घबरा गये है. पर्चे में कहा गया है कि रोजदिन क्रांतिकारी जनता पर निर्मम दमन-उत्पीडन का कहर बरपाया जा रहा है. ऐसी स्थिति में जोरदार ढंग से मुकाबला करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर क्रांतिकारी ज्वार ने न केवल केंद्र व राज्य सरकार को झकझोर कर रख दिया है बल्कि झारखंड सरकार में हिस्सेदारी निभा रहे झामुमो के अंदर भी हलचल मचा दिया है. इन तीनों ने राज्य के गौरवशाली इतिहास को कंलकित करने का काम किया है. शिबू व उपमुख्यमंत्री सुधीर महतो जो झामुमो से जुडे हैं उन्होंने बिरसा मुंडा, बाबा तिलक मांझी को अपना आर्दश बनाकर दुश्मन के सामने घुटने टेक रहे हैं. ऐसे में उनकी गरिमा समाप्त हो रही है. इसलिए उन्हें इसके लिए अब दंड देने का समय आ गया है.
अभिषेक पोद्दार हमेशा की तरह कल रात अपने अखबार के कार्यालय से काम निपटाकर अपने घर गया, जहां हम सभी रूममेट बैठकर रोज की तरह किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे, अचानक मैंने अपने एक साथी से पूछा यार फ्रीलांस रिपोर्टर को हिंदी में क्या कहेंगे उसने कहां स्वतंत्र पत्रकार, तभी तपाक से मेरे मुंह से निकल गया तो हम गुलाम पत्रकार हैं. उसने भी भरे मन से हामी भर दी. फिर क्या था हमसब इसी मुद्दे पर चर्चा करने लगे. दो दिनों पहले बोलहल्ला पर पत्रकारिता के बारे में मैंने जो भडास निकाली थी उसका कारण समझ में आने लगा. आज हकीकत तो यह है कि हम जिस मीडिया घराने से जुड जाते हैं उसके लिए एक गुलाम की भांति काम करने लगते हैं, हम अपनी सोच, अपने विचार और अपनी जिम्मेवारियों को उस मीडिया घराने के पास गिरवी रख देते हैं और सामने वाला व्यक्ति हमें रोबोट की तरह इस्तेमाल करने लगता है, हम उसकी धुन पर कठपुतलियों की तरह नाचना शुरू कर देते हैं. किसी को जलकर मरते देखकर हमारा दिल नहीं पसीजता, किसी की समस्याओं में हमें अपनी टॉप स्टोरी व ब्रेकिंग न्यूज नजर आती है, सच कहें तो शायद हमारी संवेदना ही मर चुकी हैं. शायद आज पूरी की...
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