बुझ गयी ओलपिंक मशाल
अभिषेक पोद्दार
आज फ्रांस से गुजर रहे ओलपिंक मशाल को तिब्बती समर्थकों के विरोधों के कारण अधिकारियों ने ओलपिंक मशाल बुझा दी गई. इसने यह साबित कर दिया कि आज के जमाने में वसुघैव कुटूम्बकम का जमाना खत्म हो गया है. अब जिसकी लाठी उसी के भैंस का जमाना आ गया है. यह सही है कि तिब्बतियों की मांग जायज है, उसके समर्थन में दलाई लामा का प्रदर्शन करना उचित है लेकिन यह उन्हें भी सोचना चाहिए था कि जो पाठ वह अपने अनुयायियों का पढा रहे है अगर वह सही है तो वह पाठ कहा गया जब वे लोगों को समाज सेवा व विश्व की रक्षा का पाठ पढाते थे, क्या वह पाठ गलत था. इससे पहले भी प्रथम विश्व युद्ध व द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी ओलपिंक का विरोध हुआ था, जिस कारण ओलपिंक खेल को टाला भी गया था, उसके बाद भी जब ओलपिंक खेल का आयोजन हुआ था तो उस समय मैं तो नहीं था लेकिन किताबों में पढा था कि ओलपिंक मशाल का विरोध हुआ था लेकिन इस विरोध के सामने वह विरोध कहीं ज्यादा था लेकिन उस समय भी ओलपिंक मशाल के साथ कोई छेडछाड नहीं हुई थी. लेकिन आज जो यह घटना हुई उसने न सिर्फ पूरे विश्व को शर्मशार कर दिया बल्कि पूरे विश्व के गौरवशाली इतिहास पर जोरदार तमाचा मारा है.
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