अभिषेक पोद्दार
झारखंड बने 8 साल होने को है, इन आठ सालों में झारखंड ने बहुत उतार चढाव देखे हैं, कई ऐसी घटनाएं हुई है जो लोगों के जेहन में अब भी याद है उनमें से कुछ घटनाएं ऐसी भी है जो घटी तो जरूर लेकिन हमसब उसे जान न पाये और जान पाये तो बस एक दिन के अखबार में फिर उस घटना का क्या हुआ क्या नहीं कुछ पता नहीं, कुछ इसी तरह की घटनाओं को आपके सामने पेश करने जा रहा हूं जो और कही नहीं सिर्फ झारखंड में ही हो सकता है.
अभी कुछ दिनों पहले ही झारखंड की सियासत काफी गरम चल रही थी, सभी राजनीतिक दल कुर्सी के लिए हायतौबा मचाये हुए थे. झामुमो मधु कोडा ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडने के लिए कह रहे थे, सभी राजनीतिक दल इस ताक में लगे हुए थे कि कब मौका लगे और हम अपनी सरकार बनाने का प्रयास करे, निर्दलीय विधायक अपना वजन बढाने में लगे थे. तभी राज्य के मेदिनीनगर में एक घटना घटी जिसे उस समय न तो राजनीतिक दलों ने गंभीरता से लिया और न ही यहां की मीडिया ने.
राज्य के मेदिनीनगर जिले के डाल्टेनगंज में नरेगा अध्यक्ष ने अपने नरेगा मद में बकाये भुगतान की समस्या को लेकर खुदकुशी कर ली. लेकिन न तो प्रशासनिक गलियारों में और न ही राजनीतिक गलियारों में इसकी कोई आहट सुनाई नहीं दी. यहां आपको बता दें कि उस समय झामुमो व अन्य सत्ता पक्ष कांग्रेस राज्य में भ्रष्टाचार, अपराध व आम आदमी तक सरकारी सुविधाएं ने पहुंचने के कारण ही नेत़त्व परिवर्तन की बात कही थी. पंरतु उन लोगों ने भी इस व्यक्ति व उनके परिवारवालों की सुध लेने की जोहमत नहीं उठाई. हद तो तब हो गई जबकि उसी क्षेत्र के विधायक जो सूबे में मंत्री है उन्हें भी नहीं पता चला कि उन्हीं के इलाके में ऐसी कोई घटना हुई है, वहीं विपक्षी दलों ने भी इस खुदकुशी मामले कुछ नहीं कहा और न ही इसकी निष्पक्ष जांच के लिए दबाव बनाया. गौरतलब हो कि अभी कुछ माह पहले ही नरेगा के सदस्य ललित मेहता की इसी इलाके में हत्या कर दी गई थी तब सभी राजनीतिक दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया था सीबीआई जांच की मांग की थी साथ ही इसके लिए धरना प्रदर्शन भी किया था. खैर यह तो रही राजनीतिक दलों की बात लेकिन इस मामले में मीडिया ने भी उदासीनता दिखाई सूबे के एक दो समाचार पत्रों को छोडकर किसी ने भी इस खबर को प्रमुखता से नहीं छापा. बल्कि अंदर के पेजों में भी ऐसी जगह स्थान दिया जहां वह खबर खुद ब खुद किल हो गई. सभी समाचार पत्र नेताओं के सेटिंग गेटिंग और टूर को छापने में ही व्यस्त रहे. ऐसा उदाहरण आपको और कही देखने को नहीं मिलेगा कि जो जनता अपनी सुविधाओं और समाज के विकास के लिए जनप्रतिनिधि चुनकर भेजते हैं वे ही अपने सत्ता की चीढी चढने के बाद इन जनता के मुसीबतों को देखना भी मुनासिब नहीं समझते. झारखंड में ऐसा ही होता है.
झारखंड बने 8 साल होने को है, इन आठ सालों में झारखंड ने बहुत उतार चढाव देखे हैं, कई ऐसी घटनाएं हुई है जो लोगों के जेहन में अब भी याद है उनमें से कुछ घटनाएं ऐसी भी है जो घटी तो जरूर लेकिन हमसब उसे जान न पाये और जान पाये तो बस एक दिन के अखबार में फिर उस घटना का क्या हुआ क्या नहीं कुछ पता नहीं, कुछ इसी तरह की घटनाओं को आपके सामने पेश करने जा रहा हूं जो और कही नहीं सिर्फ झारखंड में ही हो सकता है.
अभी कुछ दिनों पहले ही झारखंड की सियासत काफी गरम चल रही थी, सभी राजनीतिक दल कुर्सी के लिए हायतौबा मचाये हुए थे. झामुमो मधु कोडा ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोडने के लिए कह रहे थे, सभी राजनीतिक दल इस ताक में लगे हुए थे कि कब मौका लगे और हम अपनी सरकार बनाने का प्रयास करे, निर्दलीय विधायक अपना वजन बढाने में लगे थे. तभी राज्य के मेदिनीनगर में एक घटना घटी जिसे उस समय न तो राजनीतिक दलों ने गंभीरता से लिया और न ही यहां की मीडिया ने.
राज्य के मेदिनीनगर जिले के डाल्टेनगंज में नरेगा अध्यक्ष ने अपने नरेगा मद में बकाये भुगतान की समस्या को लेकर खुदकुशी कर ली. लेकिन न तो प्रशासनिक गलियारों में और न ही राजनीतिक गलियारों में इसकी कोई आहट सुनाई नहीं दी. यहां आपको बता दें कि उस समय झामुमो व अन्य सत्ता पक्ष कांग्रेस राज्य में भ्रष्टाचार, अपराध व आम आदमी तक सरकारी सुविधाएं ने पहुंचने के कारण ही नेत़त्व परिवर्तन की बात कही थी. पंरतु उन लोगों ने भी इस व्यक्ति व उनके परिवारवालों की सुध लेने की जोहमत नहीं उठाई. हद तो तब हो गई जबकि उसी क्षेत्र के विधायक जो सूबे में मंत्री है उन्हें भी नहीं पता चला कि उन्हीं के इलाके में ऐसी कोई घटना हुई है, वहीं विपक्षी दलों ने भी इस खुदकुशी मामले कुछ नहीं कहा और न ही इसकी निष्पक्ष जांच के लिए दबाव बनाया. गौरतलब हो कि अभी कुछ माह पहले ही नरेगा के सदस्य ललित मेहता की इसी इलाके में हत्या कर दी गई थी तब सभी राजनीतिक दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया था सीबीआई जांच की मांग की थी साथ ही इसके लिए धरना प्रदर्शन भी किया था. खैर यह तो रही राजनीतिक दलों की बात लेकिन इस मामले में मीडिया ने भी उदासीनता दिखाई सूबे के एक दो समाचार पत्रों को छोडकर किसी ने भी इस खबर को प्रमुखता से नहीं छापा. बल्कि अंदर के पेजों में भी ऐसी जगह स्थान दिया जहां वह खबर खुद ब खुद किल हो गई. सभी समाचार पत्र नेताओं के सेटिंग गेटिंग और टूर को छापने में ही व्यस्त रहे. ऐसा उदाहरण आपको और कही देखने को नहीं मिलेगा कि जो जनता अपनी सुविधाओं और समाज के विकास के लिए जनप्रतिनिधि चुनकर भेजते हैं वे ही अपने सत्ता की चीढी चढने के बाद इन जनता के मुसीबतों को देखना भी मुनासिब नहीं समझते. झारखंड में ऐसा ही होता है.
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
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