अभिषेक आदित्य
पहला द्रश्य - एक जनवरी की सुबह झारखंड की राजधानी रांची से महज ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित रातु में एक परिवार के घर में फटी सी चादर में लगभग ४५ साल के उम्र के एक आदमी की लाश जिसके सामने विलाप करती उसकी बूढी माँ और वही बगल में बैठे दो मासूम बच्चे जिनके सर से उनके पिता का साया उठ चूका है। उस व्यक्ति की मौत न तो किसी दुर्घटना और न ही किसी बीमारी से हुई है उसकी मौत हुई तो उस ठंड से जिससे पूरी जनता को बचाने का दावा सरकार कर रही है।
दूसरा द्रश्य - एक जनवरी की सुबह ही मुख्यमन्त्री आवास में गर्म कपडे पहने मुख्यमन्त्री जी अपनी पत्नी के साथ रसोई में रेसिपी बनाने में व्यस्त थे और तो और उन्होने इस अवसर पर कुछ समाचार पत्रों के फोटोग्राफरों को भी बुला रखा था ताकि वह सुर्ख़ियों में बने रहे।
यह इस साल की पहली घटना नही थी जब कोइ व्यक्ति ठंड से मरा हो और मुख्यमन्त्री जी को खबर नही लगी हो. इस साल ठंड से करीब दो दर्जन लोग काल के आगोश में आ चुके है, इसकी शुरुआत १८ दिसम्बर से ही हो गयी है और निरंतर जारी है, लेकिन कमबख्त सरकार और सरकार के आला अधिकारियो के कान में जू तक नही रेंगी। भले ही सरकार ने कुछ लोगो को कम्बलो का वितरण कर और राजधानी के कुछ चौक चौराहों पर अलाव की व्यवस्था कर अपना पल्ला झाड़ लिया और साथ ही हर मौत के बाद सरकार और सरकार के आलाधिकारी मृतकके परिजनों को मुआवजा के रुप में कुछ राशी और सरकारी नोकरी देने का आश्वासन देकर अपनी जवाबदेही ख़त्म कर ली। इस राज्य की विडम्बना या अभिशाप है कि यहाँ ५४ प्रतिशत लोग गरीब है और उन्हें कम्बल देने के लिए ३२ लाख रूपये आवंटित है फिर भी राजधानी से महज ६ किलोमीटर की दुरी पर स्थित अंचलों का यह हाल है तो पूरे राज्य का क्या होगा इसकी आप कल्पना कर सकते है। यह भी आपको बताते चले की अभी हाल ही में शीतकालीन सत्र में मंत्रियो और विधायकों ने अपने वेतन वृद्धि में काफी दिलचस्पी दिखाई लेकिन किसी ने सरकार का ध्यान ठंड से निजात दिलाने की जहमत नही उठाई। विदित हो की अकेले राजधानी में बीपीअल परिवारों की संख्या १४२३९३ है। इसके एवज में गरीबो को कम्बल देने के लिए केवल ३.११ लाख आवंटित है। अगर इस राशी को देखे तो पूरे राजधानी के गरीब परिवारों को भी कम्बल नसीब नही हो पायेगा। वही राज्य के मंत्री, विधायक और आलाधिकारी अपने बंगलो को सजाने में ५ करोड रूपये तक खर्च कर देते है इसके बाद भी उनकी मानवता सोई हुई है। बहरहाल देखना है कब सरकार कब तक इन मौतों पर राजनीती करती रहेगी। अलबत्ता जो भी हो मुख्यमंत्री जी अब तो जागिए।
पहला द्रश्य - एक जनवरी की सुबह झारखंड की राजधानी रांची से महज ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित रातु में एक परिवार के घर में फटी सी चादर में लगभग ४५ साल के उम्र के एक आदमी की लाश जिसके सामने विलाप करती उसकी बूढी माँ और वही बगल में बैठे दो मासूम बच्चे जिनके सर से उनके पिता का साया उठ चूका है। उस व्यक्ति की मौत न तो किसी दुर्घटना और न ही किसी बीमारी से हुई है उसकी मौत हुई तो उस ठंड से जिससे पूरी जनता को बचाने का दावा सरकार कर रही है।
दूसरा द्रश्य - एक जनवरी की सुबह ही मुख्यमन्त्री आवास में गर्म कपडे पहने मुख्यमन्त्री जी अपनी पत्नी के साथ रसोई में रेसिपी बनाने में व्यस्त थे और तो और उन्होने इस अवसर पर कुछ समाचार पत्रों के फोटोग्राफरों को भी बुला रखा था ताकि वह सुर्ख़ियों में बने रहे।
यह इस साल की पहली घटना नही थी जब कोइ व्यक्ति ठंड से मरा हो और मुख्यमन्त्री जी को खबर नही लगी हो. इस साल ठंड से करीब दो दर्जन लोग काल के आगोश में आ चुके है, इसकी शुरुआत १८ दिसम्बर से ही हो गयी है और निरंतर जारी है, लेकिन कमबख्त सरकार और सरकार के आला अधिकारियो के कान में जू तक नही रेंगी। भले ही सरकार ने कुछ लोगो को कम्बलो का वितरण कर और राजधानी के कुछ चौक चौराहों पर अलाव की व्यवस्था कर अपना पल्ला झाड़ लिया और साथ ही हर मौत के बाद सरकार और सरकार के आलाधिकारी मृतकके परिजनों को मुआवजा के रुप में कुछ राशी और सरकारी नोकरी देने का आश्वासन देकर अपनी जवाबदेही ख़त्म कर ली। इस राज्य की विडम्बना या अभिशाप है कि यहाँ ५४ प्रतिशत लोग गरीब है और उन्हें कम्बल देने के लिए ३२ लाख रूपये आवंटित है फिर भी राजधानी से महज ६ किलोमीटर की दुरी पर स्थित अंचलों का यह हाल है तो पूरे राज्य का क्या होगा इसकी आप कल्पना कर सकते है। यह भी आपको बताते चले की अभी हाल ही में शीतकालीन सत्र में मंत्रियो और विधायकों ने अपने वेतन वृद्धि में काफी दिलचस्पी दिखाई लेकिन किसी ने सरकार का ध्यान ठंड से निजात दिलाने की जहमत नही उठाई। विदित हो की अकेले राजधानी में बीपीअल परिवारों की संख्या १४२३९३ है। इसके एवज में गरीबो को कम्बल देने के लिए केवल ३.११ लाख आवंटित है। अगर इस राशी को देखे तो पूरे राजधानी के गरीब परिवारों को भी कम्बल नसीब नही हो पायेगा। वही राज्य के मंत्री, विधायक और आलाधिकारी अपने बंगलो को सजाने में ५ करोड रूपये तक खर्च कर देते है इसके बाद भी उनकी मानवता सोई हुई है। बहरहाल देखना है कब सरकार कब तक इन मौतों पर राजनीती करती रहेगी। अलबत्ता जो भी हो मुख्यमंत्री जी अब तो जागिए।
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