अभिषेक आदित्य
अभी चंद दिनों पहले ही मीडिया में एक खबर काफी सुर्खियों में बनी रही वह थी नए साल के अवसर पर मुम्बई में लड़कियों से की गयी छेड़छाड़। इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। सभी चैनल वाले इसकी क्लिपिंग जुगाड़ कर इसे दिखाना शुरू कर दिया। जब इससे भी बात नही बनी तो उन्होने अन्य शहरो से भी इस तरह की घटना की कवरेज खोज कर दिखाने लगे। उस लड़की के साथ जो हुआ वह तो हुआ ही पर मीडिया ने भी कोई कसर नही छोडी। उसके साथ तो यह हादसा एक बार हुआ पर मीडिया ने तो अनगिनत बार उसके सम्मान की धज्जियाँ उडाई। यह घटना कोई पहली घटना नही थी अगर एक रिपोर्ट पर गौर करे तो हर एक घंटे में किसी न किसी लड़की का शोषण होता है। यह लिखने से मेरा इरादा कतई नही है कि उसके साथ जो हुआ उसे नही दिखाना चाहिए था बल्कि मेरी पूरी सहानभूति उसके साथ है परन्तु मीडिया ने जिस तरीके से उसे पेश किया वह गलत था। हद तो तब हो गयी जब उस लड़की व उसके भाई से किसी समाचार चैनल वाले ने पूछा कि उस समय आपको कैसा लग रहा था मानो जैसे उसने कोई कारगिल फतह किया हो और वह अपना साक्षात्त्कार देने आई हो। हालाकि यह कोई पहली घटना नही है जब इस तरह कि खबर को मीडिया ने दिखाया हो। अभी कुछ दिनों पहले ही एक समाचार चैनल ने यह बच्चो का पार्क है शीर्षक देकर पार्क में प्रेमी युगल को दिखाया था और तो और उन्होने पार्क में प्रेमियो को एक दुसरे को खुलेआम किस करते हुए दिखाया था। यह कोन सा संदेश है और क्या दिखाना चाहती है मीडिया। क्या सिर्फ प्रेमी युगल को दिखाकर उन्हें संतुष्टि नही मिली या जनता को समझ नही आया की वह क्या दिखाना चाहते है, जो ऐसे क्लिप को दिखाना पड़ा। इसी क्रम में एक और वाकया सामने आता है जब बकरीद के दिन सुबह सुबह पाकिस्तान में मस्जिद में विस्फोट हुआ था और करीब ५० लोग मारे गए थे, उसी दिन दोपहर को एक और खबर आई कि अमिताभ बच्चन की माँ का देहांत हो गया बस क्या था सभी चेंनलो में बिग बी की माँ ही दिखने लगी जैसे ५० आम लोगो के जान की कोई कीमत ही नही हो, एक बात समझ में आती है कि बिग बी की माँ का देहांत बड़ी खबर थी पर मानवता की नज़र से अगर देखा जाये तो विस्फोट में ५० लोगो का मारा जाना निश्चित ही इस खबर पर भारी पड़ती है, चलो एक बार मन भी लिया जाये की इस जगह हमारी मीडिया सही थी पर एक सवाल में उन मीडिया के सर्वेसर्वा से पूछना चाहता हू कि उस समय मीडिया कहा सोयी हुई थी जब बिग बी की माँ पिछले एक साल से अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी तब तो मीडिया ने एक बार भी उसकी रिपोर्ट दिखाना मुनासिब नही समझा। इस संबंध में जब मैंने उन दोस्तो से बात की जो समाचार चैनलो में काम करते है तो उन्होने तपाक से जवाब दिया यार इसी तरह तो खबरों से खेला जाता है, मैं उस समय तो कुछ कह नही पाया पर रात भर यही सोचता रहा कि क्या आज मीडिया का धर्म केवल खबरों से खेलना भर रह गया है। मीडिया का कोई भी रूप चाहे वह प्रिंट हो या एलेट्रोनिक केवल खबरों से खेलकर अपनी जिम्मेदारियो को विराम से सकता है। शायद नही। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है ऐसे में अगर यह महत्वपूर्ण इकाई ही अगर इस ग़ैर जिम्मेदाराना ढंग से आचरण करे तो इस देश का वैचारिक भविष्य क्या होगा। आज यह जरुरी हो चला है की मीडिया के धुरंधर आत्ममंथन कर यह निश्चित करे कि आम लोगो के बीच क्या परोसा जाये क्या नही।
अभी चंद दिनों पहले ही मीडिया में एक खबर काफी सुर्खियों में बनी रही वह थी नए साल के अवसर पर मुम्बई में लड़कियों से की गयी छेड़छाड़। इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। सभी चैनल वाले इसकी क्लिपिंग जुगाड़ कर इसे दिखाना शुरू कर दिया। जब इससे भी बात नही बनी तो उन्होने अन्य शहरो से भी इस तरह की घटना की कवरेज खोज कर दिखाने लगे। उस लड़की के साथ जो हुआ वह तो हुआ ही पर मीडिया ने भी कोई कसर नही छोडी। उसके साथ तो यह हादसा एक बार हुआ पर मीडिया ने तो अनगिनत बार उसके सम्मान की धज्जियाँ उडाई। यह घटना कोई पहली घटना नही थी अगर एक रिपोर्ट पर गौर करे तो हर एक घंटे में किसी न किसी लड़की का शोषण होता है। यह लिखने से मेरा इरादा कतई नही है कि उसके साथ जो हुआ उसे नही दिखाना चाहिए था बल्कि मेरी पूरी सहानभूति उसके साथ है परन्तु मीडिया ने जिस तरीके से उसे पेश किया वह गलत था। हद तो तब हो गयी जब उस लड़की व उसके भाई से किसी समाचार चैनल वाले ने पूछा कि उस समय आपको कैसा लग रहा था मानो जैसे उसने कोई कारगिल फतह किया हो और वह अपना साक्षात्त्कार देने आई हो। हालाकि यह कोई पहली घटना नही है जब इस तरह कि खबर को मीडिया ने दिखाया हो। अभी कुछ दिनों पहले ही एक समाचार चैनल ने यह बच्चो का पार्क है शीर्षक देकर पार्क में प्रेमी युगल को दिखाया था और तो और उन्होने पार्क में प्रेमियो को एक दुसरे को खुलेआम किस करते हुए दिखाया था। यह कोन सा संदेश है और क्या दिखाना चाहती है मीडिया। क्या सिर्फ प्रेमी युगल को दिखाकर उन्हें संतुष्टि नही मिली या जनता को समझ नही आया की वह क्या दिखाना चाहते है, जो ऐसे क्लिप को दिखाना पड़ा। इसी क्रम में एक और वाकया सामने आता है जब बकरीद के दिन सुबह सुबह पाकिस्तान में मस्जिद में विस्फोट हुआ था और करीब ५० लोग मारे गए थे, उसी दिन दोपहर को एक और खबर आई कि अमिताभ बच्चन की माँ का देहांत हो गया बस क्या था सभी चेंनलो में बिग बी की माँ ही दिखने लगी जैसे ५० आम लोगो के जान की कोई कीमत ही नही हो, एक बात समझ में आती है कि बिग बी की माँ का देहांत बड़ी खबर थी पर मानवता की नज़र से अगर देखा जाये तो विस्फोट में ५० लोगो का मारा जाना निश्चित ही इस खबर पर भारी पड़ती है, चलो एक बार मन भी लिया जाये की इस जगह हमारी मीडिया सही थी पर एक सवाल में उन मीडिया के सर्वेसर्वा से पूछना चाहता हू कि उस समय मीडिया कहा सोयी हुई थी जब बिग बी की माँ पिछले एक साल से अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी तब तो मीडिया ने एक बार भी उसकी रिपोर्ट दिखाना मुनासिब नही समझा। इस संबंध में जब मैंने उन दोस्तो से बात की जो समाचार चैनलो में काम करते है तो उन्होने तपाक से जवाब दिया यार इसी तरह तो खबरों से खेला जाता है, मैं उस समय तो कुछ कह नही पाया पर रात भर यही सोचता रहा कि क्या आज मीडिया का धर्म केवल खबरों से खेलना भर रह गया है। मीडिया का कोई भी रूप चाहे वह प्रिंट हो या एलेट्रोनिक केवल खबरों से खेलकर अपनी जिम्मेदारियो को विराम से सकता है। शायद नही। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है ऐसे में अगर यह महत्वपूर्ण इकाई ही अगर इस ग़ैर जिम्मेदाराना ढंग से आचरण करे तो इस देश का वैचारिक भविष्य क्या होगा। आज यह जरुरी हो चला है की मीडिया के धुरंधर आत्ममंथन कर यह निश्चित करे कि आम लोगो के बीच क्या परोसा जाये क्या नही।
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